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सार
उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ आज दूसरी बार मुख्यमंत्री का कार्यभार संभाल लेंगे। इसी के साथ योगी पार्ट-2 का आगाज हो जाएगा।
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अजय के योगी बनने की कहानी 1993 में शुरू हुई। तब वह ऋषिकेश के ललित मोहन शर्मा पीजी कॉलेज से मैथ्स में एमएससी कर रहे थे। इसी दौरान वह महंत अवैद्यनाथ के संपर्क में आए। अवैद्यनाथ गोरक्षधाम पीठ के महंत थे। अवैद्यनाथ की एक दूसरी पहचान भी थी। उनके बचपन का नाम कृपाल सिंह बिष्ट था। उनका जन्म भी उत्तराखंड के पौढ़ी गढ़वाल के कांदी नामक गांव में 28 मई, 1921 को हुआ था। माता-पिता का जल्दी देहांत हो गया और फिर कृपाल ने घर छोड़ दिया।
1940 में पश्चिम बंगाल की यात्रा के दौरान उनकी मुलाकात गोरक्षपीठ के पीठाधीश्वर दिग्विजयनाथ से हुई। कृपाल की धार्मिक रुचि को देखते हुए दिग्विजयनाथ ने उन्हें गोरखपुर बुला लिया। यहां संन्यास लेकर वह कृपाल से अवैद्यनाथ हो गए। 1942 में महंत दिग्विजयनाथ ने अवैद्यनाथ को गोरक्षपीठ का उत्तराधिकारी बना दिया।
योगी आदित्यनाथ स्कूल के दिनों से ही विद्यार्थी परिषद के वर्कर के रूप में कार्य करते थे। शायद यही वजह थी कि हिंदुत्व के प्रति उनका लगाव शुरू से रहा। वह अक्सर वाद विवाद प्रतियोगिता में भाग लिया करते थे। विद्यार्थी परिषद का कोई कार्यक्रम था, जहां पर तत्कालीन गोरक्ष पीठाधीश्वर महंत अवैद्यनाथ को मुख्य अतिथि के रूप में बुलाया गया था।
उस कार्यक्रम में देश भर से आए कई छात्रों ने अपनी बात रखी। जब योगी ने अपनी बात रखनी शुरू की तो लोगों ने खूब सराहना की। भाषण सुन अवैद्यनाथ बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने योगी आदित्यनाथ को अपने पास बुलाया और पूछा, कहां से आए हो, तब उन्होंने बताया कि वह उत्तराखंड के पौड़ी के पंचूर से तो वह काफी खुश हो गए। उन्होंने कहा कि कभी मौका मिले तो मिलने जरूर आओ। इसके बाद दो-तीन बार अजय और महंत अवैद्यनाथ की मुलाकात हुई। इस बीच उन्होंने अजय से संन्यास धारण करने के बारे में भी पूछा लेकिन तब उन्होंने मना कर दिया।
बात अक्टूबर 1993 की है, महंत अवैद्यनाथ दिल्ली एम्स अस्पताल में हृदयरोग विभाग में इलाज करवा रहे थे। इस दौरान संक्षिप्त निंद्रा में अपनी आंख खोली तो देखा, सामने योगी खड़े थे। उनके चेहरे पर फीकी मुस्कान दौड़ पड़ी। उनकी आंखें, हालांकि अभी भी वही सवाल पूछ रही थीं, जो उन्होंने कुछ महीने पहले ही पौड़ी के इस युवा से पूछी थी, ‘क्या तुम मेरे शिष्य बनोगे?’ उस समय योगी ने विनम्रता पूर्वक इनका प्रस्ताव ठुकरा दिया था।
इस बार वह पुराना सवाल ही पूछना चाहते थे। महंत अवैद्यनाथ ने अजय से कहा, ‘मैंने अपना जीवन रामजन्मभूमि आंदोलन के लिए समर्पित कर दिया है, किन्तु अपना शिष्य नहीं चुन सका हूं। अगर मुझे कुछ हो गया तो क्या होगा?
इसके बाद अजय ने कहा कि आप बिल्कुल ठीक हो जाएंगे, मैं जल्द गोरखपुर आऊंगा। इसके बाद योगी अपने घर गए और अपनी मां से गोरखपुर जाने की बात कही तो उन्हें लगा कि बेटा नौकरी करने जा रहा है और वह गोरखपुर आ गए। यहां उन्होंने संन्यास धारण कर लिया और अजय का नाम योगी आदित्यनाथ हो गया। करीब छह महीने बाद उनके परिजनों को इसकी जानकारी हुई।
संन्यास के बाद एक बार योगी आदित्यनाथ को वापस अपने घर जाना था। ये संन्यास का नियम होता है। इसके अनुसार, किसी भी संन्यासी को भिक्षुक बनने पर अपनी माता से पहली भिक्षा मांगनी पड़ती है। तभी उसका संन्यास सही मायनों में शुरू माना जाता है। योगी के साथ भी ऐसा हुआ।
वह 1998 में अपने घर गए। तब तक योगी आदित्यनाथ गोरखपुर के सांसद बन चुके थे। वह घर आए और उनके साथ उनके गुरु महंत अवैद्यनाथ थे। मां सावित्री देवी ने उन्हें भिक्षा दी। फल, चावल और कुछ रुपए उनकी झोली में डालते ही जोर-जोर से रोनी लगीं। योगी की बहन शशि ने एक इंटरव्यू में बताया कि मां के रोते ही महाराज जी (योगी आदित्यनाथ) भी रोने लगे।
विस्तार
योगी आदित्यनाथ भाजपा विधायक दल के नेता चुन लिए गए हैं। आज शाम चार बजे वो दूसरी बार राज्य के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे। संन्यास धारण करने से पहले योगी आदित्यनाथ का नाम अजय सिंह बिष्ट था। उत्तराखंड के पौढ़ी गढ़वाल जिले के पंचुर गांव में पांच जून 1972 को उनका जन्म हुआ था। पिता आनंद सिंह बिष्ट एक फॉरेस्ट रेंजर थे।
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