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बरसाना के लोगों को सूचना मिली कि पीली पोखर पर नंदगांव के हुरियारे सजधज कर पहुंच चुके हैं। वहां उनका स्वागत किया गया। पीरी पोखर पर हुरियारों ने लाठियों से बचने का इंतजाम किया। सिर पर पगड़ी बांधी। ढालों की रस्सी और हत्थे कसकर बांधे। किसी ने अपनी पगड़ी मोर पंख से सजाई तो किसी ने पत्तों और दूल्हा वाली पगड़ी से।
शाम करीब साढे़ चार बजे नंदगांव के हुरियारे बुजुर्गों के पैर छूकर और धोती ऊपर कर ऊंचागांव वाले पुल के समीप एकत्रित हो गए। हंसी-ठिठोली करते हुरियारे श्रीराधारानी मंदिर पहुंचे और श्रीजी से कान्हा संग होली खेलने का आग्रह किया। इस दौरान नंदगांव-बरसाना के समाजियों द्वारा समाज गायन किया गया।
श्रीराधारानी मंदिर की छतों पर ड्रमों में पहले से तैयार किया गया टेसू के फूलों का रंग हुरियारों पर पिचकारियों, बाल्टियों से उडे़ला गया। टेसू के फूल बरसाए। गुलाल के सतरंगी बादल घुमड़-घुमड़ कर लठामार होली का आगाज कराते रहे। समाज गायन का दौर करीब एक घंटे से अधिक चलता रहा।
बरसाना की रंगीली गली में ध्वज पताका के आते ही हुरियारिनों की लाठियां हुरियारों पर बरसने लगीं। हुरियारिनों ने घूंघट की ओट से प्रेमपगी लाठियों से चोट की। भंग की तरंग में झूमते हुरियारे उन प्रहारों को कभी मयूरी नृत्य करके तो कभी लेटकर खुशी-खुशी सह जाते। लाठियों के प्रहारों को और तेज करने के लिए हुरियारे शब्द बाण छोड़ देते। इससे हुरियारिनों की लाठियों के प्रहारों और तेज हो जाते।
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