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सार
प्रसिद्ध चिंतक, राजनीतिक विशेषज्ञ और लेखक डॉ. राघव शरण शर्मा कहते हैं, देश में कहीं तो कोई सीक्रेट डील हुई है। उसका ‘इफेक्ट’ भी सामने है। सवाल तो ऐसे भी उठने लगे हैं कि सोनिया गांधी पर ऐसा क्या दबाव है कि जिसके चलते ‘कांग्रेस’ पार्टी डूबता जहाज बन रही है। उत्तर प्रदेश में मतदान से पहले ही ‘वोट कटवा’ का आरोप लग गया…
भाजपा में शामिल होते हुए आरपीएन सिंह
– फोटो : Agency
कांग्रेस पार्टी के ‘वर्तमान और भविष्य’ को लेकर सवाल किए जा रहे हैं। आरपीएन सिंह, अकेले ऐसे नेता नहीं हैं, जिन्होंने कांग्रेस को अलविदा बोला है। उनसे पहले कई चर्चित एवं दमदार चेहरे पार्टी से बाहर हो चुके हैं। उत्तर प्रदेश सहित पांच राज्यों के चुनावी नतीजे आने के बाद पार्टी से नाता तोड़ने वाले नेताओं की सूची ज्यादा लंबी हो सकती है। भाजपा तो कह ही रही है कि वह ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ अभियान की दिशा में सफलता की तरफ अग्रसर है।
प्रसिद्ध चिंतक, राजनीतिक विशेषज्ञ और लेखक डॉ. राघव शरण शर्मा कहते हैं, देश में कहीं तो कोई सीक्रेट डील हुई है। उसका ‘इफेक्ट’ भी सामने है। सवाल तो ऐसे भी उठने लगे हैं कि सोनिया गांधी पर ऐसा क्या दबाव है कि जिसके चलते ‘कांग्रेस’ पार्टी डूबता जहाज बन रही है। उत्तर प्रदेश में मतदान से पहले ही ‘वोट कटवा’ का आरोप लग गया। आखिर राहुल और प्रियंका, उस तरह से सक्रिय नहीं हो पा रहे हैं। कांग्रेस के पास 15 करोड़ लोगों का वोट बैंक है, इसके बावजूद पार्टी नेताओं केंद्र में सत्ता प्राप्ति ‘सपना’ लगने लगा है।
कांग्रेस पार्टी, जान बाकी है, खत्म नही हुई है
पंजाब, राजस्थान व छत्तीसगढ़ में कांग्रेस पार्टी सत्ता में होने के अलावा महाराष्ट्र सरकार में भी हिस्सेदारी रखती है। मध्यप्रदेश में भी कांग्रेस पार्टी ने सरकार बनाई थी, लेकिन बाद में नेताओं की अदला-बदली से भाजपा का पलड़ा भारी हो गया। देश में तकरीबन सभी जगहों पर कांग्रेस का संगठन और कार्यकर्ता मौजूद हैं। प्रसिद्ध चिंतक और लेखक डॉ. राघव शरण शर्मा ने बताया, देखिए कांग्रेस पार्टी में अभी जान बाकी है, वो मरी तो नहीं है। हां ये जरूर है कि मौजूदा समय में जिस तरह से सोनिया गांधी, राहुल या प्रियंका की कार्यशैली नजर आ रही है, उससे कई सवाल बाहर आने लगे हैं। जैसे कोई सीक्रेट डील तो नहीं हुई है। अगर ऐसा है तो वह डील किसके बीच हुई है। उस डील इफेक्ट के चलते कांग्रेस पार्टी को सक्रिय होने से रोका जा रहा हो। चुनाव में राहुल गांधी का विदेश जाना और राजनीतिक कार्यक्रमों से उनकी दूरी, इससे शक तो होने लगता है। भारतीय राजनीति में डील कोई नया शब्द नहीं है। बतौर डॉ. राघव शरण शर्मा, आजादी के बाद ही यह प्रक्रिया शुरू हो गई थी। प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष तौर से सरदार पटेल और वीर सावरकर भी इस ‘डील’ से प्रभावित हुए थे।
कई दलों के मौजूदा नेताओं पर भी रहा है डील का साया…
केवल कांग्रेस पार्टी ही उस सीक्रेट डील का शिकार नहीं है, बल्कि दूसरे दल भी उससे पीड़ित हैं। डॉ. राघव के अनुसार, ऐसा क्या हुआ कि बसपा के संस्थापक कांशीराम की मौत के बाद मायावती, बसपा को आगे नहीं बढ़ा सकीं। वे कई वर्षों से खुद को सक्रिय राजनीति से दूर रखे हुए हैं। अखिलेश यादव को मुलायम सिंह के जरिए कौन यह कहलवाता है कि वह उत्तर प्रदेश से बाहर जानें की न सोचें। यहीं खेलते रहें। कई दूसरे दलों के भी ऐसे नेता मिल जाएंगे, जो खुद को समय की चाल के साथ आगे नहीं ले जा सके। राहुल, प्रियंका से आज कोई सामान्य नागरिक नहीं मिल सकता। ये हाल तब है, जब पार्टी हाशिये की ओर चल पड़ी है। वफादारी का जमाना चला गया है। अब नेताओं को सत्ता चाहिए। वे इसके लिए लंबे समय तक इंतजार नहीं कर सकते। खासतौर पर युवा पीढ़ी तो बहुत जल्द प्लेटफार्म बदल लेती है। मायावती ने उत्तर प्रदेश में कहा, कांग्रेस जैसी पार्टियां लोगों की नजर में वोट काटने वाली पार्टियां हैं। इससे पहले प्रियंका गांधी ने अपने एक साक्षात्कार में बसपा प्रमुख पर चुनाव प्रचार में ‘निष्क्रिय’ रहने का आरोप लगा दिया था।
कांग्रेस, विचारधारा वाली पार्टी है, मगर बीच में परिवार है…
आज के दौर में कांग्रेस के लिए प्लस प्वाइंट यह है कि वह विचारधारा वाली पार्टी है। उसे किसी मंदिर-मस्जिद विवाद या धर्म से जुड़ने की आवश्यकता नहीं है। कांग्रेस एक मध्यमवर्गीय पार्टी है। उसके पास लंबा अनुभव भी है। डॉ. राघव के मुताबिक, नेहरु परिवार किसी को आगे नहीं आने देता, यह बात सही है। अगर वीपी सिंह को छोड़ दें तो बाकी नेताओं को कांग्रेस पार्टी ने कुछ ज्यादा नहीं लेने दिया। वीपी सिंह, जरूर लाभ लेने में सफल हो गए थे। आज पार्टी में विरोध के स्वर उठ रहे हैं। गुलाम नबी आजाद को सम्मान मिलता है, तो जयराम रमेश और कपिल सिब्बल के अलग बयान देखे जा रहे हैं। जयराम ने ट्विटर पर लिखा, पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य ने पद्म भूषण लेने से मना कर दिया है। सही कदम उठाया, वह आजाद रहना चाहते हैं, न कि गुलाम। कपिल सिब्बल ने कहा, गुलाम नबी आजाद को पदम भूषण मिला है। बधाई हो भाईजान। विडंबना यह है कि जब देश सार्वजनिक जीवन में उनके योगदान को मान्यता दे रहा है और कांग्रेस को उनकी सेवाओं की आवश्यकता नहीं है।
प्रगतिशील बनकर कांग्रेस पार्टी को बचा सकते हैं
पार्टी के पास सूझबूझ वाले नेता हैं। अगर खुद को नेहरू खानदान और हाई कमान जैसे शब्दों से दूर ले जाकर प्रगतिशील नेताओं की तर्ज पर कांग्रेस पार्टी आगे बढ़ती है तो बात बन सकती है। डॉ. राघव कहते हैं, यह नियम सबसे पहले सोनिया और राहुल को अपनाना है। देश में प्रगतिशील लोग जैसे केजरीवाल, स्टालिन या नवीन पटनायक राजनीति को अपने तरीके से आगे ले जा रहे हैं। कांग्रेस पार्टी को इन नेताओं से सीखने की जरूरत है। अगर कांग्रेस पार्टी किसी डील का शिकार हुई है तो उसे खुद को जल्द से जल्द बाहर निकालना होगा। अब न तो नेताओं को पार्टी पर भरोसा रहा और न ही पार्टी को नेताओं पर। पांच दस साल पार्टी, सत्ता से बाहर रह जाती है तो नेताओं और कार्यकर्ता को संभालकर रखना मुश्किल होता है। वे इधर-उधर भागने लगते हैं। आज कांग्रेस में वही हो रहा है। भाजपा ने तो 2029 और 2034 तक का कार्यक्रम बता दिया है। ऐसे में कांग्रेस नेतृत्व को बहुत संभलकर चलना होगा। यह बात दिमाग में रखनी होगी कि नेताओं में धीरज तो कतई नहीं है।
विस्तार
कांग्रेस पार्टी के ‘वर्तमान और भविष्य’ को लेकर सवाल किए जा रहे हैं। आरपीएन सिंह, अकेले ऐसे नेता नहीं हैं, जिन्होंने कांग्रेस को अलविदा बोला है। उनसे पहले कई चर्चित एवं दमदार चेहरे पार्टी से बाहर हो चुके हैं। उत्तर प्रदेश सहित पांच राज्यों के चुनावी नतीजे आने के बाद पार्टी से नाता तोड़ने वाले नेताओं की सूची ज्यादा लंबी हो सकती है। भाजपा तो कह ही रही है कि वह ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ अभियान की दिशा में सफलता की तरफ अग्रसर है।
प्रसिद्ध चिंतक, राजनीतिक विशेषज्ञ और लेखक डॉ. राघव शरण शर्मा कहते हैं, देश में कहीं तो कोई सीक्रेट डील हुई है। उसका ‘इफेक्ट’ भी सामने है। सवाल तो ऐसे भी उठने लगे हैं कि सोनिया गांधी पर ऐसा क्या दबाव है कि जिसके चलते ‘कांग्रेस’ पार्टी डूबता जहाज बन रही है। उत्तर प्रदेश में मतदान से पहले ही ‘वोट कटवा’ का आरोप लग गया। आखिर राहुल और प्रियंका, उस तरह से सक्रिय नहीं हो पा रहे हैं। कांग्रेस के पास 15 करोड़ लोगों का वोट बैंक है, इसके बावजूद पार्टी नेताओं केंद्र में सत्ता प्राप्ति ‘सपना’ लगने लगा है।
कांग्रेस पार्टी, जान बाकी है, खत्म नही हुई है
पंजाब, राजस्थान व छत्तीसगढ़ में कांग्रेस पार्टी सत्ता में होने के अलावा महाराष्ट्र सरकार में भी हिस्सेदारी रखती है। मध्यप्रदेश में भी कांग्रेस पार्टी ने सरकार बनाई थी, लेकिन बाद में नेताओं की अदला-बदली से भाजपा का पलड़ा भारी हो गया। देश में तकरीबन सभी जगहों पर कांग्रेस का संगठन और कार्यकर्ता मौजूद हैं। प्रसिद्ध चिंतक और लेखक डॉ. राघव शरण शर्मा ने बताया, देखिए कांग्रेस पार्टी में अभी जान बाकी है, वो मरी तो नहीं है। हां ये जरूर है कि मौजूदा समय में जिस तरह से सोनिया गांधी, राहुल या प्रियंका की कार्यशैली नजर आ रही है, उससे कई सवाल बाहर आने लगे हैं। जैसे कोई सीक्रेट डील तो नहीं हुई है। अगर ऐसा है तो वह डील किसके बीच हुई है। उस डील इफेक्ट के चलते कांग्रेस पार्टी को सक्रिय होने से रोका जा रहा हो। चुनाव में राहुल गांधी का विदेश जाना और राजनीतिक कार्यक्रमों से उनकी दूरी, इससे शक तो होने लगता है। भारतीय राजनीति में डील कोई नया शब्द नहीं है। बतौर डॉ. राघव शरण शर्मा, आजादी के बाद ही यह प्रक्रिया शुरू हो गई थी। प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष तौर से सरदार पटेल और वीर सावरकर भी इस ‘डील’ से प्रभावित हुए थे।
कई दलों के मौजूदा नेताओं पर भी रहा है डील का साया…
केवल कांग्रेस पार्टी ही उस सीक्रेट डील का शिकार नहीं है, बल्कि दूसरे दल भी उससे पीड़ित हैं। डॉ. राघव के अनुसार, ऐसा क्या हुआ कि बसपा के संस्थापक कांशीराम की मौत के बाद मायावती, बसपा को आगे नहीं बढ़ा सकीं। वे कई वर्षों से खुद को सक्रिय राजनीति से दूर रखे हुए हैं। अखिलेश यादव को मुलायम सिंह के जरिए कौन यह कहलवाता है कि वह उत्तर प्रदेश से बाहर जानें की न सोचें। यहीं खेलते रहें। कई दूसरे दलों के भी ऐसे नेता मिल जाएंगे, जो खुद को समय की चाल के साथ आगे नहीं ले जा सके। राहुल, प्रियंका से आज कोई सामान्य नागरिक नहीं मिल सकता। ये हाल तब है, जब पार्टी हाशिये की ओर चल पड़ी है। वफादारी का जमाना चला गया है। अब नेताओं को सत्ता चाहिए। वे इसके लिए लंबे समय तक इंतजार नहीं कर सकते। खासतौर पर युवा पीढ़ी तो बहुत जल्द प्लेटफार्म बदल लेती है। मायावती ने उत्तर प्रदेश में कहा, कांग्रेस जैसी पार्टियां लोगों की नजर में वोट काटने वाली पार्टियां हैं। इससे पहले प्रियंका गांधी ने अपने एक साक्षात्कार में बसपा प्रमुख पर चुनाव प्रचार में ‘निष्क्रिय’ रहने का आरोप लगा दिया था।
कांग्रेस, विचारधारा वाली पार्टी है, मगर बीच में परिवार है…
आज के दौर में कांग्रेस के लिए प्लस प्वाइंट यह है कि वह विचारधारा वाली पार्टी है। उसे किसी मंदिर-मस्जिद विवाद या धर्म से जुड़ने की आवश्यकता नहीं है। कांग्रेस एक मध्यमवर्गीय पार्टी है। उसके पास लंबा अनुभव भी है। डॉ. राघव के मुताबिक, नेहरु परिवार किसी को आगे नहीं आने देता, यह बात सही है। अगर वीपी सिंह को छोड़ दें तो बाकी नेताओं को कांग्रेस पार्टी ने कुछ ज्यादा नहीं लेने दिया। वीपी सिंह, जरूर लाभ लेने में सफल हो गए थे। आज पार्टी में विरोध के स्वर उठ रहे हैं। गुलाम नबी आजाद को सम्मान मिलता है, तो जयराम रमेश और कपिल सिब्बल के अलग बयान देखे जा रहे हैं। जयराम ने ट्विटर पर लिखा, पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य ने पद्म भूषण लेने से मना कर दिया है। सही कदम उठाया, वह आजाद रहना चाहते हैं, न कि गुलाम। कपिल सिब्बल ने कहा, गुलाम नबी आजाद को पदम भूषण मिला है। बधाई हो भाईजान। विडंबना यह है कि जब देश सार्वजनिक जीवन में उनके योगदान को मान्यता दे रहा है और कांग्रेस को उनकी सेवाओं की आवश्यकता नहीं है।
प्रगतिशील बनकर कांग्रेस पार्टी को बचा सकते हैं
पार्टी के पास सूझबूझ वाले नेता हैं। अगर खुद को नेहरू खानदान और हाई कमान जैसे शब्दों से दूर ले जाकर प्रगतिशील नेताओं की तर्ज पर कांग्रेस पार्टी आगे बढ़ती है तो बात बन सकती है। डॉ. राघव कहते हैं, यह नियम सबसे पहले सोनिया और राहुल को अपनाना है। देश में प्रगतिशील लोग जैसे केजरीवाल, स्टालिन या नवीन पटनायक राजनीति को अपने तरीके से आगे ले जा रहे हैं। कांग्रेस पार्टी को इन नेताओं से सीखने की जरूरत है। अगर कांग्रेस पार्टी किसी डील का शिकार हुई है तो उसे खुद को जल्द से जल्द बाहर निकालना होगा। अब न तो नेताओं को पार्टी पर भरोसा रहा और न ही पार्टी को नेताओं पर। पांच दस साल पार्टी, सत्ता से बाहर रह जाती है तो नेताओं और कार्यकर्ता को संभालकर रखना मुश्किल होता है। वे इधर-उधर भागने लगते हैं। आज कांग्रेस में वही हो रहा है। भाजपा ने तो 2029 और 2034 तक का कार्यक्रम बता दिया है। ऐसे में कांग्रेस नेतृत्व को बहुत संभलकर चलना होगा। यह बात दिमाग में रखनी होगी कि नेताओं में धीरज तो कतई नहीं है।
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