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वृंदावन के कथावाचक देवकीनंदन ठाकुर ने सुप्रीम कोर्ट में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम 1992 की धारा 2 सी की वैधता को चुनौती देते हुए जनहित याचिका दायर की है। याचिका में जनसंख्या, धार्मिक एवं भाषाई आधार पर अल्पसंख्यक माने गए समुदाय को विशेष अधिकार देने और देश के विभिन्न राज्यों एवं जिलों में हिंदुओं की कम आबादी के बावजूद ऐसे अधिकारों से वंचित रखने को संविधान की मूल भावना के विपरीत बताया गया है। देवकीनंदन ने याचिका में राज्यों के साथ जिलेवार अल्पसंख्यकों के निर्धारण की मांग रखी है।
याचिकाकर्ता ने यह कहा
देवकीनंदन ठाकुर द्वारा शनिवार को सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में अल्पसंख्यक अधिनियम कानून को संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21, 29 और 30 के विपरीत बताया गया है। याचिका में कहा गया है कि 17 मई1992 को अधिनियम के प्रभाव में आने पर केंद्र ने मनमाने ढंग से मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध और पारसी आदि पांच समुदायों को अधिसूचित किया है। जबकि हिंदू धर्म के अनुयायी जो लद्दाख, मिजोरम, लक्षद्वीप, कश्मीर, नगालैंड, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, पंजाब, मणिपुर में वास्तविक अल्पसंख्यक हैं, राज्य स्तर पर ‘अल्पसंख्यक’ की पहचान न होने के कारण अपनी पसंद के शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और संचालन नहीं कर सकते हैं।
प्रियाकान्तजू मंदिर संस्थापक देवकीनंदन की याचिका में राज्यों में विभिन्न धर्मों के अनुयाइयों की संख्या के आंकड़े प्रस्तुत करते हुए चिंता जाहिर की है। याचिका में कहा गया है कि नौ राज्यों में हिंदू अल्पसंख्यक हो चुके हैं। लेकिन फिर भी वो अपने पसंद के शैक्षणिक संस्थान नहीं खोल सकते जबकि संविधान अल्पसंख्यकों को यह अधिकार देता है।
यहां घटी हिंदुओं की संख्या
याचिका में कहा गया है कि लद्दाख में सिर्फ एक प्रतिशत, मिजोरम में 2.75 फीसदी, लक्षद्वीप में 2.77 फीसदी, कश्मीर में 4 फीसदी, नगालैंड में 8.74 फीसदी, मेघालय में 11.52 फीसदी, अरुणाचल प्रदेश में 29 फीसदी, पंजाब में 38.49 फीसदी और मणिपुर में 41.29 फीसदी हिंदू हैं। सरकार ने उन्हें एनसीएम अधिनियम की धारा 2 (सी) और एनसीएमईआई अधिनियम की धारा 2 (एफ) के तहत ‘अल्पसंख्यक’ घोषित नहीं किया है। यहां हिंदू अनुच्छेद 29-30 के तहत संरक्षित नहीं हैं।
दूसरी ओर, लक्षद्वीप में 96.58 प्रतिशत, कश्मीर में 95 प्रतिशत, लद्दाख में 46 प्रतिशत मुस्लिम हैं। लेकिन अधिनियम के तहत केंद्र ने मनमाने ढंग से मुसलमानों को अल्पसंख्यक घोषित किया है। इसी तरह ईसाइयों को भी अल्पसंख्यक घोषित किया गया है, जबकि नगालैंड में 88.10 प्रतिशत, मिजोरम में 87.16 प्रतिशत, मेघालय में 74.59 प्रतिशत ईसाई निवास करते हैं। पंजाब में सिख 57.69 प्रतिशत हैं और लद्दाख में बौद्ध 50 प्रतिशत हैं, यह भी अल्पसंख्यक माने गए हैं।
प्रियाकान्तजू मंदिर के सचिव विजय शर्मा ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में वकील आशुतोष दुबे के माध्यम से जनहित याचिका दायर की गई है, जिसमें अल्पसंख्यक कानून में हिंदुओं के साथ भेदभाव को असवैंधानिक बताते हुए इसकी समीक्षा करने की मांग की है। याचिका में राज्यों के साथ जिलेवार अल्पसंख्यकों के निर्धारण की मांग रखी है।
विस्तार
वृंदावन के कथावाचक देवकीनंदन ठाकुर ने सुप्रीम कोर्ट में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम 1992 की धारा 2 सी की वैधता को चुनौती देते हुए जनहित याचिका दायर की है। याचिका में जनसंख्या, धार्मिक एवं भाषाई आधार पर अल्पसंख्यक माने गए समुदाय को विशेष अधिकार देने और देश के विभिन्न राज्यों एवं जिलों में हिंदुओं की कम आबादी के बावजूद ऐसे अधिकारों से वंचित रखने को संविधान की मूल भावना के विपरीत बताया गया है। देवकीनंदन ने याचिका में राज्यों के साथ जिलेवार अल्पसंख्यकों के निर्धारण की मांग रखी है।
याचिकाकर्ता ने यह कहा
देवकीनंदन ठाकुर द्वारा शनिवार को सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में अल्पसंख्यक अधिनियम कानून को संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21, 29 और 30 के विपरीत बताया गया है। याचिका में कहा गया है कि 17 मई1992 को अधिनियम के प्रभाव में आने पर केंद्र ने मनमाने ढंग से मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध और पारसी आदि पांच समुदायों को अधिसूचित किया है। जबकि हिंदू धर्म के अनुयायी जो लद्दाख, मिजोरम, लक्षद्वीप, कश्मीर, नगालैंड, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, पंजाब, मणिपुर में वास्तविक अल्पसंख्यक हैं, राज्य स्तर पर ‘अल्पसंख्यक’ की पहचान न होने के कारण अपनी पसंद के शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और संचालन नहीं कर सकते हैं।
प्रियाकान्तजू मंदिर संस्थापक देवकीनंदन की याचिका में राज्यों में विभिन्न धर्मों के अनुयाइयों की संख्या के आंकड़े प्रस्तुत करते हुए चिंता जाहिर की है। याचिका में कहा गया है कि नौ राज्यों में हिंदू अल्पसंख्यक हो चुके हैं। लेकिन फिर भी वो अपने पसंद के शैक्षणिक संस्थान नहीं खोल सकते जबकि संविधान अल्पसंख्यकों को यह अधिकार देता है।
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