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सार
आगरा के रामलाल वृद्धाश्रम में कई माताएं अपने परिवार से अलग जीवन गुजार रही हैं। मदर्स डे पर कुछ महिलाओं के बेटे उनसे मिलने पहुंचे तो मांओं का दर्द आंखों से छलका उठा।
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विस्तार
वृद्धाश्रम में अपनों की राह देखते-देखते बुजुर्गों की आंखें मानो पथरा सी गई हैं। बेटे और परिवार का नाम सुनते ही उनकी आंखों में आंसू आ जाते हैं। ऐसे में अगर बेटा उनसे मिलने आ जाए या फिर फोन पर ही हालचाल ले ले तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहता। ऐसा ही हुआ रविवार को मातृ दिवस पर। आगरा के रामलाल वृद्धाश्रम में वर्षों से रह रही कुछ माताओं से मिलने उनके बेटे वृद्धाश्रम पहुंचे। वहीं कुछ ने फोन पर मां की खैर खबर ली। ऐसी माताओं की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उनकी आंखें भीग गईं और कुछ तो फोन पर ही रो पड़ी। माताएं घूम-घूम कर लोगों से बताती दिखीं कि आज उनके बेटे ने याद किया।
बेलनगंज निवासी मुन्नी देवी दो साल से आश्रम में रह रही हैं। उनका कहना है कि बेटा तो अच्छा है लेकिन बहू झगड़ती है। घर में शांति बनी रहे इसलिए वह यहां रहती हैं। मातृ दिवस पर बेटे को मां की याद आई तो मिलने आ पहुंचा। बेटे को देख मां दौड़कर उसके गले लग गई और उस पर प्यार लुटाने लगी।
मांओं की आंखों से छलका दर्द
रामबाग निवासी ओमवती एक बेटे की मां हैं। उन्होंने बताया कि वह चार साल से वृद्धाश्रम में रह रही हैं। उन्होंने बताया कि उनका यहां मन नहीं लगता, हर समय परिवार की याद सताती है। बेटे और पौत्रों के साथ रहने का मन होता है। बेटा मिलने आया तो आंखें छलक उठीं। बेटा भी मां को देख भावुक हो गया। वह मां के लिए कुछ उपहार लेकर आया था। दिल्ली की नीलम भाटिया बताती हैं कि वह आश्रम में पांच साल से रह रही हैं। पति भी साथ रहते थे। तीन साल पहले आश्रम में ही वह चल बसे। बेटा पिता के अंतिम संस्कार के लिए आया और फिर अब तक नहीं लौटा। फोन पर बात कर लेता है तो इससे भी खुशी मिलती है। कम से कम मैं उसे आज भी याद तो हूं।
इसके अलावा सादाबाद निवासी आशा व अर्चना गौतम, बालूगंज निवासी उमा कुमारी, मालती देवी आदि के बेटों ने मातृ दिवस पर मां से फोन पर बात की। वृद्धाश्रम के अध्यक्ष शिव प्रसाद शर्मा ने बताया कि यहां रहने वाली माताओं की कितनी भी सेवा करो लेकिन वह अपने बच्चों को याद कर रोती हैं। ऐसे में आश्रम में उन्हें ज्यादा से ज्यादा प्यार और सम्मान देने की कोशिश करते हैं।
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