1814-15 में प्रसिद्ध कलाकार सीताराम की बनाई पेंटिंग आगरा के स्मारक बुढ़िया के ताल को उसके मूल स्वरूप में लाने में मददगार साबित होगी। 430 साल पुराना बुढ़िया का ताल स्मारक अमृत सरोवर के रूप में विकसित किया जाएगा। आजादी के 75 साल पूरे होने पर जिले के 150 तालाबों का संरक्षण किया जा रहा है। बुढ़िया का ताल उनमें से एक है।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के संरक्षित स्मारक बुढ़िया के ताल में फिर से पानी की व्यवस्था करने के साथ चहारदीवारी का संरक्षण और सफाई का काम किया जाएगा। इसमें एएसआई के साथ जिला प्रशासन भी सहयोग करेगा। क्षेत्रीय विधायक डॉ. धर्मपाल सिंह ने इसे भारत सरकार की योजना में शामिल कराकर मूल रूप में लौटाने के साथ पिकनिक स्पॉट बनाने की योजना बनाई है।
चावली और एत्मादपुर माइनर से जाता था पानी
बुढ़िया का ताल सरोवर कभी पानी से लबालब भरा रहता था। यहां चावली और एत्मादपुर माइनर से पानी पहुंचता था, लेकिन एत्मादपुर माइनर पर कब्जा होने के बाद मकान और दुकानें बन गईं, जबकि चावली माइनर सूखी है। पिपरिया गांव तक इसकी टेल बाकी है। सहपऊ रजबहा से जुड़ी चावली माइनर को दोबारा चालू कराकर उससे पानी लाकर बुढ़िया के ताल को भरा जाएगा। मंगलवार को इस बारे में विधायक डॉ. धर्मपाल सिंह सिंचाई विभाग के अधिकारियों से मिले। वह बुधवार को लखनऊ में मंत्री और अधिकारियों से इस मसले पर वार्ता करने जा रहे हैं।
1814 में यमुना किनारे के स्मारकों की बनाई थी पेंटिंग
सीताराम ब्रिटिश काल के चर्चित कलाकार रहे हैं। उन्होंने बंगाल के गवर्नर जनरल मार्केस ऑफ हेस्टिंग्स के साथ कोलकाता से दिल्ली तक का सफर किया था। इस दौरान 1814-15 में वह आगरा आए। उनकी पेंटिंग का संग्रह सिकंदरा से आगरा के बीच वॉल्यूम 9 में प्रकाशित किया गया है।
यमुना किनारे के स्मारकों के साथ बुढ़िया के ताल की वाटर कलर से बनी पेंटिंग से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने स्मारक के पास की दशा और हालातों को समझा है। बुढ़िया के ताल पर तब किनारे बड़े-बड़े पेड़ और भरपूर पानी था। पेंटिंग में पुल के दोनों ओर पानी भरा है और लोग पीने का पानी लेकर यहां से जा रहे हैं।
1592 में इत्माद खान ने बनवाया था ताल
एत्मादपुर में बुढ़िया का ताल के बीच में वर्ष 1592 में दो मंजिला अष्टभुजाकार भवन बना, जिसे मुगल शहंशाह अकबर के दरबारी इत्माद खान ने बनवाया था। यहीं उनका मकबरा भी है और तालाब के पास 5 पक्के घाटों के अवशेष हैं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने बुढ़िया का ताल को संरक्षित कर रखा है, लेकिन तालाब में न पानी है और न चहारदीवारी का संरक्षण हुआ है। तालाब की खोदाई में पूर्व में बौद्धकालीन मूर्तियां भी प्राप्त हुई थीं। लाखौरी ईंटों से बने गुंबद और मेहराब में लाल पत्थर का उपयोग भी किया गया है। ताल के पूर्वी किनारे से मंडप तक जाने को लंबा पुल जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है। बुढ़िया का ताल सिंघाड़े की खेती के लिए चर्चित है।
ताल को मूल स्वरूप में लौटने की कवायद
अधीक्षण पुरात्वविद राजकुमार पटेल ने बताया कि बुढ़िया का ताल संरक्षित है और अमृत सरोवर के रूप में हम इसे विकसित करना चाहते हैं। जिला प्रशासन के साथ वार्ता हो रही है। इसे पुराने और मूल स्वरूप में लाने की कवायद की जाएगी। 200 साल पुरानी पेंटिंग से बुढ़िया के ताल के स्वरूप का पता चलता है।
पिकनिक स्पॉट के रूप में विकसित करेंगे
एत्मादपुर विधायक डॉ. धर्मपाल सिंह ने कहा कि भारत सरकार की योजना में बुढ़िया के ताल को शामिल कराने का प्रयास है। इसे मूल रूप में लाने और पानी से भरने की व्यवस्था के बाद पिकनिक स्पॉट और बड़े पार्क के रूप में विकसित करना है। पर्यटन मंत्री से वार्ता हो चुकी है।
ताल के किनारे पर आम के पेड़ थे
एत्मादपुर निवासी शेर सिंह सोलंका ने बताया कि मैंने अपने बचपन में बुढ़िया के ताल को पानी से लबालब देखा है। यहां हाथी डूबाऊ पानी था। किनारे पर आम के पेड़ थे। इतना ठंडा होता था कि कस्बे से हम लोग खेलने यहीं जाते थे। 30 साल से इसकी दुर्दशा हो गई, जब माइनर पर कब्जे हो गए। इतना बड़ा ताल आसपास नहीं है। इसे पुनर्जीवित किया जाए तो पूरे क्षेत्र का जलस्तर सुधर जाए और पहले जैसी रौनक हो जाएगी।