आजम खां की जमानत अर्जी पर कोर्ट ने की सख्त टिप्पणी : सत्ता के नशे में धुत होकर याची ने पद का किया दुरुपयोग

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सार

याची 72 वर्ष का वृद्ध वरिष्ठ नागरिक है, जो बढ़ती उम्र के साथ होने वाली बीमारियों से ग्रसित है, जैसे हाइपर टेंशन व अन्य गंभीर परेशानियां। कोर्ट यह भी जानती है कि हाल ही में कोविड महामारी में वह लगभग एक महीने तक अस्पताल में रहा और उसके गुर्दे और महत्वपूर्ण अंगों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा।

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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सपा नेता आजम खां को राहत जरूर दे दी, लेकिन उन पर कड़ी टिप्पणियां भी कीं। कोर्ट का कहना था कि याची ने सत्ता के नशे में धुत होकर अपने पद का दुरुपयोग किया। कोर्ट ने कहा, जमानत किसी भी आरोपी का अधिकार है और जेल अपवाद है। इसलिए जमानत देने में कोर्ट याची के बिगड़ते स्वास्थ्य, वृद्धावस्था और जेल में रहने की अवधि को ध्यान में रख रही है।

याची 72 वर्ष का वृद्ध वरिष्ठ नागरिक है, जो बढ़ती उम्र के साथ होने वाली बीमारियों से ग्रसित है, जैसे हाइपर टेंशन व अन्य गंभीर परेशानियां। कोर्ट यह भी जानती है कि हाल ही में कोविड महामारी में वह लगभग एक महीने तक अस्पताल में रहा और उसके गुर्दे और महत्वपूर्ण अंगों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। मौजूदा मामले में आरोप पत्र पहले ही दाखिल हो चुका है और उसकेखिलाफ दर्ज मामलों में जमानत मिल चुकी है।

कोर्ट ने विश्वविद्यालय की स्थापना कर रोहिलखंड क्षेत्र में युवाओं को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने के लिए याची की सराहना भी की। लेकिन कहा कि पूरे मामले को देखते हुए कोर्ट हैरान है और आश्चर्य व्यक्त करती है कि याची अपने सपनों को आगे बढ़ाने के लिए मोहम्मद अली जौहर विश्वविद्यालय के नाम पर ठगी का कारोबार करता रहा। कोर्ट ने कहा कि केवल वस्तु ही पवित्र नहीं होनी चाहिए, बल्कि उसके साधन भी सही और पारदर्शी होने चाहिए। यदि कैबिनेट मंत्री जैसा कोई व्यक्ति कपटपूर्ण आचरण करता है तो इससे जनता का विश्वास डगमगाता है और ड्रीम प्रोजेक्ट की पवित्रता खराब हो जाती है।

भूमि हड़पने के लिए वक्फ संपत्ति में कराया शामिल
कोर्ट ने विंस्टन चर्चिल का उद्धरण दिया। कहा कि विश्वविद्यालय का पहला कर्तव्य ज्ञान सिखाना है, व्यापारिक चरित्र नहीं। ऐसा लगता है कि आवेदक विश्वविद्यालय की स्थापना के भेष में व्यापार कर रहा है और परोक्ष तरीकों से एक खाली संपत्ति को हथियाने के लिए तकनीकी का उपयोग कर रहा है। कोर्ट ने कहा कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भी उच्च लक्ष्य प्राप्ति के लिए साधन की पवित्रता पर बल दिया है।

कोर्ट ने कहा कि याची ने धर्म की आड़ में अवैध रूप से भूमि हड़पने के लिए अपने आप को अलग रखा और उस संपत्ति को वक्फ संपत्ति में शामिल करा दिया। कोर्ट ने जमानत अर्जी पर महान विचारक और दार्शनिक सेनेका के कथन का उल्लेख किया। सेनका का कहना था कि धर्म को आम लोग सत्य, बुद्धिमान लोग असत्य और शासक उपयोगी मानते हैं। याची ने सत्ता और पद के नशे में धुत होकर अपने अधिकार का दुरुपयोग किया है।

शक्ति बढ़ने केसाथ मनुष्य में नैतिकता की भावना होती है कम
कोर्ट ने कहा कि इस मुद्दे का एक और पहलू है। यानी एक पुरानी कहावत है कि शक्ति मनुष्य को भ्रष्ट करती है और पूर्ण शक्ति मिल जाए तो उसे पूरा ही भ्रष्ट कर देती है। ऐसे में आदमी भगवान को भी नहीं छोड़ता। कोर्ट ने कहा कि एक व्यक्ति की नैतिकता की भावना उसकी शक्ति बढ़ने के साथ कम हो जाती है। यह कथन 19वीं सदी के अंत और 20वीं सदी के प्रारंभ में एक ब्रिटिश इतिहासकार लॉर्ड एक्टन का था।

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यह सिद्धांत अभी भी सही है। पूर्ण शक्ति नैतिक रूप से व्यक्ति के स्वभाव को नष्ट कर देती है और उसे विनाशकारी अभिमान से भर देती है। कोर्ट ने कहा कि जो लोग सत्ता में होते हैं तो उनके मन में अक्सर लोगों का हित नहीं होता है। वे मुख्य रूप से स्वयं के लाभों पर केंद्रित होते हैं और स्वयं की मदद करने के लिए अपनी स्थिति या शक्ति का दुरुपयोग कर सकते हैं।

वर्तमान मामले में भी याची एक कैबिनेट मंत्री रहा और शक्तिशाली व्यक्ति होने के कारण उसने विश्वविद्यालय स्थापित करने का सपना देखा, जिसमें वह एक व्यक्तिगत जागीर की तरह स्थायी कुलाधिपति रहा और इसके लिए वह सभी अवैध, गलत तरीकों को अपनाते हुए किसी भी हद तक चल गया। एक सार्वजनिक व्यक्ति होने के नाते याची के कंधों पर जिम्मेदारी का बोझ है और वह उन साधनों की ओर अपनी आंखें बंद करने का जोखिम नहीं उठा सकता है, जो उसने अपने उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए अपनाया है, जो कि अपराध के दायरे में आता है।

विस्तार

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सपा नेता आजम खां को राहत जरूर दे दी, लेकिन उन पर कड़ी टिप्पणियां भी कीं। कोर्ट का कहना था कि याची ने सत्ता के नशे में धुत होकर अपने पद का दुरुपयोग किया। कोर्ट ने कहा, जमानत किसी भी आरोपी का अधिकार है और जेल अपवाद है। इसलिए जमानत देने में कोर्ट याची के बिगड़ते स्वास्थ्य, वृद्धावस्था और जेल में रहने की अवधि को ध्यान में रख रही है।

याची 72 वर्ष का वृद्ध वरिष्ठ नागरिक है, जो बढ़ती उम्र के साथ होने वाली बीमारियों से ग्रसित है, जैसे हाइपर टेंशन व अन्य गंभीर परेशानियां। कोर्ट यह भी जानती है कि हाल ही में कोविड महामारी में वह लगभग एक महीने तक अस्पताल में रहा और उसके गुर्दे और महत्वपूर्ण अंगों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। मौजूदा मामले में आरोप पत्र पहले ही दाखिल हो चुका है और उसकेखिलाफ दर्ज मामलों में जमानत मिल चुकी है।

कोर्ट ने विश्वविद्यालय की स्थापना कर रोहिलखंड क्षेत्र में युवाओं को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने के लिए याची की सराहना भी की। लेकिन कहा कि पूरे मामले को देखते हुए कोर्ट हैरान है और आश्चर्य व्यक्त करती है कि याची अपने सपनों को आगे बढ़ाने के लिए मोहम्मद अली जौहर विश्वविद्यालय के नाम पर ठगी का कारोबार करता रहा। कोर्ट ने कहा कि केवल वस्तु ही पवित्र नहीं होनी चाहिए, बल्कि उसके साधन भी सही और पारदर्शी होने चाहिए। यदि कैबिनेट मंत्री जैसा कोई व्यक्ति कपटपूर्ण आचरण करता है तो इससे जनता का विश्वास डगमगाता है और ड्रीम प्रोजेक्ट की पवित्रता खराब हो जाती है।

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