उत्तर प्रदेश चुनाव: अपराधियों को ‘सपा’ तो भाजपा ‘पुलिस’ अफसरों को टिकट देती है, पूर्व आईपीएस के लिए चुनौती है ‘खाकी से खादी’

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सार

कन्नौज शहर की मुख्य सड़क पर कामकाजी अब्दुल रफीक, मो. आसिफ, आयशा, मो. मेहराज, मो. कलीम, और मशरूर अहमद कहते हैं, उन्हें सपा उम्मीदवार पर भरोसा है। एकाएक नए प्रत्याशी पर भरोसा नहीं कर सकते। भाजपा के राज में बेरोजगारी बढ़ी है। योगी द्वारा यह कह देना कि उन्होंने पक्का मकान और राशन दिया है, इससे काम नहीं चलता…

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पूर्व आईपीएस असीम अरुण कन्नौज सदर (सुरक्षित) विधानसभा सीट से भाजपा प्रत्याशी हैं। रविवार सुबह असीम से हुई मुलाकात में कई बातों का खुलासा हुआ। मोदी-शाह के चहते पूर्व आईपीएस खुलकर बोले। कहा, सपा और दूसरी पार्टियां तो अपराधियों को टिकट देती हैं। भाजपा एक पुलिस अफसर को राजनीति में अवसर प्रदान करती है। भाजपा शासन में ‘वोटों की ठेकेदारी’ और ‘वोटों की खरीददारी’ खत्म हो चुकी है। मैं तो वादे और भरोसे से आगे जाकर काम कर रहा हूं। दूसरी ओर, कई तरह के समीकरण पूर्व आईपीएस के लिए ‘खाकी से खादी’ की राह में चुनौती बन रहे हैं। कन्नौज के ग्रामीण इलाके में लोगों का कहना है, वे एकाएक नए व्यक्ति पर कैसे भरोसा कर सकते हैं। चुनाव में किसान आंदोलन का असर है। पीएम नरेंद्र मोदी ने शनिवार को कन्नौज में रैली की है।

क्या राजनीति में नौकरशाहों की लेटरल एंट्री हो रही है?

असीम अरुण से जब पूछा गया कि आजकल सिविल सर्वेंट्स के राजनीति में आने का ट्रेंड शुरू हो रहा है। क्या ये कुछ वैसा ही है, जैसा सिविल सर्विस में लेटरल एंट्री स्कीम शुरू की गई है। यहां भी विशेषज्ञों को सिविल सर्विस में काम करने का मौका मिलता है। इस पहल को किस नजर से देखते हैं, मैं इसे भाजपा की मौलिक पहल के तौर पर देखता हूं। राजनीति में विशेषज्ञ एवं विविध बैकग्राउंड के लोग आएं। परिवारवाद और पूंजीवाद से बाहर के लोग राजनीति ज्वाइन करें। मैं समझता हूं कि मैं इस ट्रेंड में पहला नहीं हूं और न ही आखिरी हूं। मेरा प्रयास होगा कि राजनीति में विशेषज्ञ आएं। चाहे वे फुल टाइम आएं या पार्ट टाइम। पहले ऐसा था भी कि लोग वकालत करते थे, बिजनेस करते थे। उसमें उपलब्धि हासिल करने के बाद वे राजनीति में आते थे। उसके बाद एक ट्रेंड आया कि राजनीति ही फुल टाइम प्रोफेशन है।

खाकी से खादी तक, लोग कर रहे बदलाव की उम्मीद  

आप खाकी से खादी में आए हैं, अब लोग कैसे बदलाव की उम्मीद कर रहे हैं। भाजपा सरकार ने पांच साल में जो काम किया है, उससे लोग बहुत हद तक संतुष्ट हैं। वोटों की ठेकेदारी और वोटों की खरीददारी खत्म हो चुकी है। मतदाता, बहुत होशियार है। वह देख रहा है कि विकास किसने किया। सामाजिक न्याय देने का काम किसने किया। एक प्रत्याशी के तौर पर सपा एवं दूसरी पार्टियां अपराधियों को टिकट दे रही हैं। भाजपा ने एक पुलिस अफसर को टिकट दिया है। इससे अंतर साफ नजर आता है। वर्ष 2007 में सपा ने कांग्रेस शासनकाल में स्वास्थ्य मंत्री रहे बिहारीलाल दोहरे के पुत्र अनिल दोहरे को टिकट दी थी। तब से लेकर अभी तक वे जीत रहे हैं। सपा ने इस बार भी अनिल पर भरोसा जताया है। ऐसे में भाजपा उम्मीदवार पूर्व आईपीएस असीम की राह आसान नहीं है।

हम देखेंगे कि कहां से चले हैं और कहां पहुंचे हैं …  

फर्क साफ है, पार्टी के स्तर पर भी और प्रत्याशी के स्तर पर भी। पूर्व आईपीएस से पूछा गया कि राजनेता, जनता के बीच जब जाते हैं तो वे वादा करते हैं। एक वादा होता है एक भरोसा होता है। इस सवाल के उत्तर में असीम अरुण ने कहा, मैं इससे आगे बढ़कर काम कर रहा हूं। हमने सोशल मीडिया के जरिए एक योजना तैयार की है। अपने विधानसभा क्षेत्र में संकल्प पत्र जल्द ही जारी करेंगे। यह प्रदेश के संकल्प पत्र के दायरे में रहेगा। ये काम लगभग पूरा हो गया है। हम वादा और भरोसा, दोनों दिलाएंगे। तीन माह में समीक्षा होगी। हम देखेंगे कि कहां से चले हैं और कहां पहुंचे हैं। मौखिक वादे नहीं करेंगे।

इंटेलिजेंस का अनुभव कितना काम आया

पूर्व आईपीएस असीम से जब यह सवाल किया गया कि वे पुलिस महकमे की तर्ज पर राजनीति में भी वैसा ही इंटेलिजेंस इस्तेमाल कर यह पता लगा पाते हैं कि कौन किसका वोटर है। उन्होंने कहा, ऐसा नहीं हो पाता। जब हम लोगों से मिलते हैं तो उनकी बॉडी लैंग्वेज से ऐसा लगता है कि वे हमारे वोटर न हों। उनसे उम्मीद करते हैं कि वे वोट करेंगे। इस बार न सही, अगली दफा ही सही। राजनीति में सभी से संपर्क करना पड़ता है। यहां इंटेलिजेंस वाला काम नहीं है।

नौकरशाहों के आने से भ्रष्टाचार में कमी आएगी

मेरे जैसे लोगों के राजनीति में आने या पार्टी द्वारा लाए जाने से विविधता तो आएगी। मैंने अपने पिता के रास्ते पर चलने का प्रयास किया है। बता दें कि असीम अरुण के पिता स्व. श्रीराम अरुण, उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक रहे हैं। बतौर असीम, मैंने सदा अपने पिता के रास्ते पर चलने का प्रयास किया है। उनकी ईमानदारी की राह अख्तियार की है। मैं इसी शर्त पर पार्टी में आया हूं। मैं पूरी ईमानदारी से काम करूंगा। वरना, मेरा आना जाना व्यर्थ है। इसके लिए नए रास्ते निकालने होंगे। पारदर्शिता के लिए एक नेटवर्क तैयार कर रहे हैं। खर्च को सार्वजनिक किया जाएगा। क्राउड फंडिंग की एक्सरसाइज चल रही है। राजनीति को नया स्वरूप देने का प्रयास होगा। मेरे जैसे कई नए लोग भी जुड़ेंगे। अभी लोग, राजनीति से क्यों नहीं जुड़ना चाहते। लोगों को लगता है कि राजनीति में अपने सिद्धांतों से समझौता करना पड़ेगा। हम अपने ड्राइंग रूम में बैठकर राजनीतिक बात करते हैं, लेकिन जब कुछ करने की बारी आती है तो हम पीछे हट जाते हैं। वह इसलिए, क्योंकि वे सोचते हैं कि राजनीति बहुत गंदी चीज है। अगर ऐसा है तो उसे दूर करना होगा। मेरा राजनीतिक दायरा आदर्शों पर आधारित होगा। दूसरे लोग भी भाजपा के साथ जुड़ सकते हैं। राजनीति में सक्रिय प्रवेश कर सकते हैं।

कन्नौज में मुद्दे हैं, जनता उसी आधार पर वोट देगी …

कन्नौज शहर की मुख्य सड़क पर कामकाजी अब्दुल रफीक, मो. आसिफ, आयशा, मो. मेहराज, मो. कलीम, और मशरूर अहमद कहते हैं, उन्हें सपा उम्मीदवार पर भरोसा है। एकाएक नए प्रत्याशी पर भरोसा नहीं कर सकते। भाजपा के राज में बेरोजगारी बढ़ी है। योगी द्वारा यह कह देना कि उन्होंने पक्का मकान और राशन दिया है, इससे काम नहीं चलता। कन्नौज में विकास के मुद्दे हैं। कुछ काम ही नहीं हुआ। सड़क के गड्ढे ही भर जाते तो भी काम मान लेते। कटरा के किसान मलखान सिंह कहते हैं, पूर्व आईपीएस पर भरोसा नहीं कर सकते। यह व्यक्ति राजनीति में घुसने आया है। काम नहीं करने आया है। उनके पिता भी पुलिस महानिदेशक रहे हैं। अरुण असीम बताएं कि उन्होंने क्या किया है।

सात सौ शहीद किसानों को नहीं भूलेंगे…

कन्नौज सदर (सुरक्षित) विधानसभा सीट के अंतर्गत आने वाले गांव कटरा निवासी बदन सिंह अपने खेत में आलू खुदवा रहे थे। कन्नौज का आलू देशभर में प्रसिद्ध है। जिस तरह से पश्चिम यूपी में गन्ने की पैदावार पर खासा जोर रहता है, वैसे ही कन्नौज इलाके में आलू की खेती होती है। खेत पर पहुंची अमर उजाला की टीम ने जब बदन सिंह का मन टटोला तो उनका दर्द छलक आया। बोले, खाद मिल नहीं रहा। यूरिया ब्लैक में मिल रहा है। तीन सौ की बोरी, चार सौ में मिल रही है। दाम भी तीन सौ रुपये क्विंटल मिल रहा है। किसान आंदोलन का चुनाव में कोई असर है, इस सवाल के जवाब में बदन सिंह ने कहा, सात सौ शहीद किसानों को कोई नहीं भूलेगा। चुनाव में यह बात किसान समझता है।

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उन्नाव की बात भूल गए, हाथरस भूल गए क्या

आलू का दाम तीन रुपये किलो मिल रहा है। लोगों के घरों में यही आलू कई गुना कीमत पर पहुंचता है। चिप्स लगाने का कारखाना कहां है। भाजपा उम्मीदवार पर भरोसा नहीं है। उन्होंने यहां के लोगों को देखा तक नहीं है। वे अपना रिपोर्ट कार्ड जनता के सामने रखें। योगी सुरक्षा की बात करते हैं। उन्नाव की बात भूल गए। हाथरस में रात में लड़की जला दी गई, वह गुंडागर्दी नहीं थी। डीजल कहां पहुंच गया है। आलू दस साल पहले वाले दाम पर बिक रहा है। आवारा पशु तो खेत खाली कर देते हैं। शिफ्ट वाइज ड्यूटी देते हैं। पैसे न होने के कारण मलखन सिंह के बेटे प्रांशु ने कहा, बहन की शादी थी और हम बीटेक करना चाह रहे थे, नहीं हो सका। अब आलू खोद रहे हैं। उनका इशारा शिक्षा और रोजगार को लेकर था। लोगों का कहना है कि सरकार ने आलू के लिए कुछ नहीं किया। भंडारण की समस्या है, कई बार आलू सड़क पर फेंकना पड़ता है। ट्रेन का रैक समय पर नहीं लगता।

विस्तार

पूर्व आईपीएस असीम अरुण कन्नौज सदर (सुरक्षित) विधानसभा सीट से भाजपा प्रत्याशी हैं। रविवार सुबह असीम से हुई मुलाकात में कई बातों का खुलासा हुआ। मोदी-शाह के चहते पूर्व आईपीएस खुलकर बोले। कहा, सपा और दूसरी पार्टियां तो अपराधियों को टिकट देती हैं। भाजपा एक पुलिस अफसर को राजनीति में अवसर प्रदान करती है। भाजपा शासन में ‘वोटों की ठेकेदारी’ और ‘वोटों की खरीददारी’ खत्म हो चुकी है। मैं तो वादे और भरोसे से आगे जाकर काम कर रहा हूं। दूसरी ओर, कई तरह के समीकरण पूर्व आईपीएस के लिए ‘खाकी से खादी’ की राह में चुनौती बन रहे हैं। कन्नौज के ग्रामीण इलाके में लोगों का कहना है, वे एकाएक नए व्यक्ति पर कैसे भरोसा कर सकते हैं। चुनाव में किसान आंदोलन का असर है। पीएम नरेंद्र मोदी ने शनिवार को कन्नौज में रैली की है।

क्या राजनीति में नौकरशाहों की लेटरल एंट्री हो रही है?

असीम अरुण से जब पूछा गया कि आजकल सिविल सर्वेंट्स के राजनीति में आने का ट्रेंड शुरू हो रहा है। क्या ये कुछ वैसा ही है, जैसा सिविल सर्विस में लेटरल एंट्री स्कीम शुरू की गई है। यहां भी विशेषज्ञों को सिविल सर्विस में काम करने का मौका मिलता है। इस पहल को किस नजर से देखते हैं, मैं इसे भाजपा की मौलिक पहल के तौर पर देखता हूं। राजनीति में विशेषज्ञ एवं विविध बैकग्राउंड के लोग आएं। परिवारवाद और पूंजीवाद से बाहर के लोग राजनीति ज्वाइन करें। मैं समझता हूं कि मैं इस ट्रेंड में पहला नहीं हूं और न ही आखिरी हूं। मेरा प्रयास होगा कि राजनीति में विशेषज्ञ आएं। चाहे वे फुल टाइम आएं या पार्ट टाइम। पहले ऐसा था भी कि लोग वकालत करते थे, बिजनेस करते थे। उसमें उपलब्धि हासिल करने के बाद वे राजनीति में आते थे। उसके बाद एक ट्रेंड आया कि राजनीति ही फुल टाइम प्रोफेशन है।

खाकी से खादी तक, लोग कर रहे बदलाव की उम्मीद  

आप खाकी से खादी में आए हैं, अब लोग कैसे बदलाव की उम्मीद कर रहे हैं। भाजपा सरकार ने पांच साल में जो काम किया है, उससे लोग बहुत हद तक संतुष्ट हैं। वोटों की ठेकेदारी और वोटों की खरीददारी खत्म हो चुकी है। मतदाता, बहुत होशियार है। वह देख रहा है कि विकास किसने किया। सामाजिक न्याय देने का काम किसने किया। एक प्रत्याशी के तौर पर सपा एवं दूसरी पार्टियां अपराधियों को टिकट दे रही हैं। भाजपा ने एक पुलिस अफसर को टिकट दिया है। इससे अंतर साफ नजर आता है। वर्ष 2007 में सपा ने कांग्रेस शासनकाल में स्वास्थ्य मंत्री रहे बिहारीलाल दोहरे के पुत्र अनिल दोहरे को टिकट दी थी। तब से लेकर अभी तक वे जीत रहे हैं। सपा ने इस बार भी अनिल पर भरोसा जताया है। ऐसे में भाजपा उम्मीदवार पूर्व आईपीएस असीम की राह आसान नहीं है।

हम देखेंगे कि कहां से चले हैं और कहां पहुंचे हैं …  

फर्क साफ है, पार्टी के स्तर पर भी और प्रत्याशी के स्तर पर भी। पूर्व आईपीएस से पूछा गया कि राजनेता, जनता के बीच जब जाते हैं तो वे वादा करते हैं। एक वादा होता है एक भरोसा होता है। इस सवाल के उत्तर में असीम अरुण ने कहा, मैं इससे आगे बढ़कर काम कर रहा हूं। हमने सोशल मीडिया के जरिए एक योजना तैयार की है। अपने विधानसभा क्षेत्र में संकल्प पत्र जल्द ही जारी करेंगे। यह प्रदेश के संकल्प पत्र के दायरे में रहेगा। ये काम लगभग पूरा हो गया है। हम वादा और भरोसा, दोनों दिलाएंगे। तीन माह में समीक्षा होगी। हम देखेंगे कि कहां से चले हैं और कहां पहुंचे हैं। मौखिक वादे नहीं करेंगे।

इंटेलिजेंस का अनुभव कितना काम आया

पूर्व आईपीएस असीम से जब यह सवाल किया गया कि वे पुलिस महकमे की तर्ज पर राजनीति में भी वैसा ही इंटेलिजेंस इस्तेमाल कर यह पता लगा पाते हैं कि कौन किसका वोटर है। उन्होंने कहा, ऐसा नहीं हो पाता। जब हम लोगों से मिलते हैं तो उनकी बॉडी लैंग्वेज से ऐसा लगता है कि वे हमारे वोटर न हों। उनसे उम्मीद करते हैं कि वे वोट करेंगे। इस बार न सही, अगली दफा ही सही। राजनीति में सभी से संपर्क करना पड़ता है। यहां इंटेलिजेंस वाला काम नहीं है।

नौकरशाहों के आने से भ्रष्टाचार में कमी आएगी

मेरे जैसे लोगों के राजनीति में आने या पार्टी द्वारा लाए जाने से विविधता तो आएगी। मैंने अपने पिता के रास्ते पर चलने का प्रयास किया है। बता दें कि असीम अरुण के पिता स्व. श्रीराम अरुण, उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक रहे हैं। बतौर असीम, मैंने सदा अपने पिता के रास्ते पर चलने का प्रयास किया है। उनकी ईमानदारी की राह अख्तियार की है। मैं इसी शर्त पर पार्टी में आया हूं। मैं पूरी ईमानदारी से काम करूंगा। वरना, मेरा आना जाना व्यर्थ है। इसके लिए नए रास्ते निकालने होंगे। पारदर्शिता के लिए एक नेटवर्क तैयार कर रहे हैं। खर्च को सार्वजनिक किया जाएगा। क्राउड फंडिंग की एक्सरसाइज चल रही है। राजनीति को नया स्वरूप देने का प्रयास होगा। मेरे जैसे कई नए लोग भी जुड़ेंगे। अभी लोग, राजनीति से क्यों नहीं जुड़ना चाहते। लोगों को लगता है कि राजनीति में अपने सिद्धांतों से समझौता करना पड़ेगा। हम अपने ड्राइंग रूम में बैठकर राजनीतिक बात करते हैं, लेकिन जब कुछ करने की बारी आती है तो हम पीछे हट जाते हैं। वह इसलिए, क्योंकि वे सोचते हैं कि राजनीति बहुत गंदी चीज है। अगर ऐसा है तो उसे दूर करना होगा। मेरा राजनीतिक दायरा आदर्शों पर आधारित होगा। दूसरे लोग भी भाजपा के साथ जुड़ सकते हैं। राजनीति में सक्रिय प्रवेश कर सकते हैं।

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