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सार
यही एक ऐसी सीट है जिसने राजनीति में ‘भरोसे’ को साबित कर दिखाया है। भले ही चौधरी साहब यानी दिवंगत चौ. अजीत सिंह का परिवार कहीं भी रहे। चाहे उनके लिए ‘छपरौली’ राजनीति की कर्मस्थली ही क्यों न रहे, मगर वे टस से मस नहीं होते। पिछले विधानसभा चुनाव में जब भाजपा की आंधी चली तो राष्ट्रीय लोक दल के खाते में केवल एक सीट आई थी। वह सीट छपरौली की ही थी…
उत्तर प्रदेश की छपरौली विधानसभा सीट। कई मायनों में यह दूसरे विधानसभा क्षेत्रों से बिल्कुल जुदा है। एक सवाल पूछेंगे तो कई जवाब मिलेंगे। सोमवार को दिन ढल रहा था। अमर उजाला की टीम सीधे उस इंटर कालेज में पहुंची, जो छपरौली और चौधरी साहब के साथ जुड़ा है। चौधरी अजीत सिंह का निधन हुआ तो उनके बेटे जयंत के सिर पर इसी कालेज में पगड़ी बंधी थी। जब वॉलीबॉल खेल रहे युवाओं से बात हुई तो बोले, भर्ती तो निकली ही नहीं, सब बेरोजगार हैं। दूसरों ने कहा, खेत तो आवारा पशु चर गए। कोल्हू पर गुड़ तैयार हो रहा था, मगर वहां मौजूद किसान भी नाराज दिखे। मुख्य सड़क पर जब कुछ लोगों से बात की तो ये सब सुनाई पड़ा, ‘आज हमैं आतंकवादी कह रै सें, फूफा कह रै सैं, छपरौली में इन सबके बीच 14 दिन में गन्ने की पेमेंट से लेकर बात ‘चौधराहट’ पर खत्म हो जाती है।’
कैसे हो गुजारा, जब टाइम पर नहीं मिलती गन्ने की पेमेंट
यही एक ऐसी सीट है जिसने राजनीति में ‘भरोसे’ को साबित कर दिखाया है। भले ही चौधरी साहब यानी दिवंगत चौ. अजीत सिंह का परिवार कहीं भी रहे। चाहे उनके लिए ‘छपरौली’ राजनीति की कर्मस्थली ही क्यों न रहे, मगर वे टस से मस नहीं होते। पिछले विधानसभा चुनाव में जब भाजपा की आंधी चली तो राष्ट्रीय लोक दल के खाते में केवल एक सीट आई थी। वह सीट छपरौली की ही थी। इंटर कालेज में विदुर कहते हैं, गन्ने की पेमेंट तो टाइम पर मिल ही नहीं रही। अब गुजारा कैसे होगा। इन युवाओं के पास नौकरी नहीं। कब तक गुड़ बनाकर बेचेंगे। सरकार ने किसानों की तरफ ध्यान ही नहीं दिया। आवारा पशु ही खेती चर रहे हैं। किसान तो ठंड में खेतों की रखवाली करते हैं।
कालेज में केवल आर्ट की पढ़ाई
गन्ना मिल में पर्ची का खेल चल रहा है। समय पर गन्ने का पेमेंट नहीं मिलता। किसानों का बिजली का बिल तक नहीं भरा जा रहा। सन 2000 में चौ. चरणसिंह राजकीय महाविद्यालय खुला। चौधरी अजीत सिंह ने इस कालेज को खुलवाने में अपना बड़ा योगदान दिया था। अभी तक कालेज में केवल कला संकाय की पढ़ाई होती है। साइंस या कॉमर्स तो शुरू ही नहीं हो सकी। प्रयास किया गया, मगर कुछ नहीं हुआ। नतीजा, बच्चों को पढ़ने दूसरी जगह जाना पड़ता है। प्राचार्य ने प्रयास किया, लेकिन बात नहीं बनी।
बच्चों की फीस में दिक्कत
छपरौली के अंदर जब लोगों से बात हुई तो बोले, गन्ने की पेमेंट समय पर नहीं आने के कारण बच्चों की फीस तक नहीं भरी जा रही। ऐसे में बच्चे चाह कर भी खेती नहीं कर सकते। वे सब देख रहे हैं। बिजली वाले और बैंक वाले हम पर दबाव डालते हैं। खाते में लाखों रुपये आने की बात भी लोग कहते हैं। साथ ही यह इशारा भी करते हैं कि जाट और मुसलमान साथ हैं। अनुज कुमार ने कहा, गन्ने की पेमेंट के बारे में बात करने पर नेताजी छिपने लगते हैं। इन्हीं जाटों से वोट लेकर सरकार बनाने वाले अब उन्हें आतंकवादी और खालिस्तानी बता रहे हैं। वही लोग आज जयंत को कह रहे हैं, हमारे पाले में आ जा।
साल 2017 में भाजपा की आंधी में सहेंद्र सिंह रमाला रालोद की टिकट पर जीते थे, लेकिन बाद में भाजपा में शामिल हो गए। उन्हें 65124 वोट मिले थे। दूसरे नंबर पर भाजपा के सत्येंद्र सिंह रहे, जिन्हें 61282 वोट मिले थे। सपा के मनोज चौधरी 39841 मत लेकर तीसरे स्थान पर रहे। इस बार प्रोफेसर अजय कुमार आरएलडी से, सहेंद्र सिंह रमाला भाजपा, डॉ. यूनुस चौधरी कांग्रेस, मोहम्मद सादिक बीएसपी और राजेंद्र खोखर आम आदमी पार्टी से चुनाव लड़ रहे हैं। सपा और आरएलडी का गठबंधन है।
विस्तार
उत्तर प्रदेश की छपरौली विधानसभा सीट। कई मायनों में यह दूसरे विधानसभा क्षेत्रों से बिल्कुल जुदा है। एक सवाल पूछेंगे तो कई जवाब मिलेंगे। सोमवार को दिन ढल रहा था। अमर उजाला की टीम सीधे उस इंटर कालेज में पहुंची, जो छपरौली और चौधरी साहब के साथ जुड़ा है। चौधरी अजीत सिंह का निधन हुआ तो उनके बेटे जयंत के सिर पर इसी कालेज में पगड़ी बंधी थी। जब वॉलीबॉल खेल रहे युवाओं से बात हुई तो बोले, भर्ती तो निकली ही नहीं, सब बेरोजगार हैं। दूसरों ने कहा, खेत तो आवारा पशु चर गए। कोल्हू पर गुड़ तैयार हो रहा था, मगर वहां मौजूद किसान भी नाराज दिखे। मुख्य सड़क पर जब कुछ लोगों से बात की तो ये सब सुनाई पड़ा, ‘आज हमैं आतंकवादी कह रै सें, फूफा कह रै सैं, छपरौली में इन सबके बीच 14 दिन में गन्ने की पेमेंट से लेकर बात ‘चौधराहट’ पर खत्म हो जाती है।’
कैसे हो गुजारा, जब टाइम पर नहीं मिलती गन्ने की पेमेंट
यही एक ऐसी सीट है जिसने राजनीति में ‘भरोसे’ को साबित कर दिखाया है। भले ही चौधरी साहब यानी दिवंगत चौ. अजीत सिंह का परिवार कहीं भी रहे। चाहे उनके लिए ‘छपरौली’ राजनीति की कर्मस्थली ही क्यों न रहे, मगर वे टस से मस नहीं होते। पिछले विधानसभा चुनाव में जब भाजपा की आंधी चली तो राष्ट्रीय लोक दल के खाते में केवल एक सीट आई थी। वह सीट छपरौली की ही थी। इंटर कालेज में विदुर कहते हैं, गन्ने की पेमेंट तो टाइम पर मिल ही नहीं रही। अब गुजारा कैसे होगा। इन युवाओं के पास नौकरी नहीं। कब तक गुड़ बनाकर बेचेंगे। सरकार ने किसानों की तरफ ध्यान ही नहीं दिया। आवारा पशु ही खेती चर रहे हैं। किसान तो ठंड में खेतों की रखवाली करते हैं।
कालेज में केवल आर्ट की पढ़ाई
गन्ना मिल में पर्ची का खेल चल रहा है। समय पर गन्ने का पेमेंट नहीं मिलता। किसानों का बिजली का बिल तक नहीं भरा जा रहा। सन 2000 में चौ. चरणसिंह राजकीय महाविद्यालय खुला। चौधरी अजीत सिंह ने इस कालेज को खुलवाने में अपना बड़ा योगदान दिया था। अभी तक कालेज में केवल कला संकाय की पढ़ाई होती है। साइंस या कॉमर्स तो शुरू ही नहीं हो सकी। प्रयास किया गया, मगर कुछ नहीं हुआ। नतीजा, बच्चों को पढ़ने दूसरी जगह जाना पड़ता है। प्राचार्य ने प्रयास किया, लेकिन बात नहीं बनी।
बच्चों की फीस में दिक्कत
छपरौली के अंदर जब लोगों से बात हुई तो बोले, गन्ने की पेमेंट समय पर नहीं आने के कारण बच्चों की फीस तक नहीं भरी जा रही। ऐसे में बच्चे चाह कर भी खेती नहीं कर सकते। वे सब देख रहे हैं। बिजली वाले और बैंक वाले हम पर दबाव डालते हैं। खाते में लाखों रुपये आने की बात भी लोग कहते हैं। साथ ही यह इशारा भी करते हैं कि जाट और मुसलमान साथ हैं। अनुज कुमार ने कहा, गन्ने की पेमेंट के बारे में बात करने पर नेताजी छिपने लगते हैं। इन्हीं जाटों से वोट लेकर सरकार बनाने वाले अब उन्हें आतंकवादी और खालिस्तानी बता रहे हैं। वही लोग आज जयंत को कह रहे हैं, हमारे पाले में आ जा।
साल 2017 में भाजपा की आंधी में सहेंद्र सिंह रमाला रालोद की टिकट पर जीते थे, लेकिन बाद में भाजपा में शामिल हो गए। उन्हें 65124 वोट मिले थे। दूसरे नंबर पर भाजपा के सत्येंद्र सिंह रहे, जिन्हें 61282 वोट मिले थे। सपा के मनोज चौधरी 39841 मत लेकर तीसरे स्थान पर रहे। इस बार प्रोफेसर अजय कुमार आरएलडी से, सहेंद्र सिंह रमाला भाजपा, डॉ. यूनुस चौधरी कांग्रेस, मोहम्मद सादिक बीएसपी और राजेंद्र खोखर आम आदमी पार्टी से चुनाव लड़ रहे हैं। सपा और आरएलडी का गठबंधन है।
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