उत्तर प्रदेश चुनाव: राममंदिर निर्माण अब चुनावी मुद्दा नहीं! भाजपा को चौथे चरण में मिलेगी कठिन चुनौती

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सार

वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक सुनील पांडेय ने अमर उजाला से कहा कि योगी आदित्यनाथ सरकार में भी हाथरस, आगरा, गोरखपुर कांड और फाफामऊ-लखीमपुर खीरी कांड हुए हैं जो भाजपा को असहज करते दिखते रहे हैं। लेकिन अपराधियों पर कड़ी कार्रवाई योगी आदित्यनाथ सरकार की नीति का ही परिणाम है कि सुरक्षा का मुद्दा उनके खिलाफ न जाकर यह सपा के विरुद्ध जाता दिख रहा है…

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यूपी विधानसभा का चुनाव अब चौथे चरण में पहुंच चुका है। भाजपा ने अब तक सुरक्षा को अहम मुददा बनाया है, लेकिन चौथे चरण के आते-आते उसके नेताओं ने आतंकवाद को भी प्रमुखता से मुद्दा बनाने की कोशिश की है। आश्चर्यजनक रूप से उसने अब तक अयोध्या में हो रहे राम मंदिर निर्माण पर कोई बड़ी बयानबाजी नहीं की है। तो क्या भाजपा ने यह मान लिया है कि अयोध्या अब वोटरों को लुभाने में कारगर साबित नहीं होगा? अब अवध और पूर्वांचल के क्षेत्रों में मतदान होना है तो क्या इन क्षेत्रों में भाजपा अयोध्या के मुद्दे को भुनाने की कोशिश करेगी? चौथे चरण में अवध क्षेत्र में पहुंच चुके चुनाव में उसकी रणनीति क्या रहने वाली है?     

शुरुआती दौर में भाजपा ने अपनी चुनावी मुहिम एक बार फिर अयोध्या में मंदिर निर्माण मुद्दे के सहारे ही शुरू करने की कोशिश की थी। अयोध्या में भव्य दीपावली पूजन कार्यक्रम संपन्न कराकर भी योगी आदित्यनाथ ने उसके सहारे जनता को अपने साथ जोड़ने की कोशिश की थी। वे कभी कभार अपने चुनावी भाषणों में अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का मुद्दा उठाते भी दिखे, लेकिन इस पर जनता की तरफ से कोई विशेष सकारात्मक प्रतिक्रिया न देख उन्होंने भी इस मुद्दे को पीछे छोड़ दिया। इसकी बजाय उन्होंने 80 और 20 और बुलडोजर का मुद्दा उठाना शुरू कर दिया।

सपा ने बेरोजगारी-महंगाई को मुद्दा बनाया

वहीं, सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव महंगाई और बेरोजगारी के मुद्दे पर लगातार बोलते रहे हैं। शायद उन्हें पता है कि यही मुद्दे उन्हें युवाओं और मतदाता के बीच स्थापित कर पाएंगे। पीएम द्वारा अहमदाबाद की आतंकवादी घटना में साइकिल के इस्तेमाल पर व्यंग्य किए जाने के बाद भी उन्होंने उस पर कोई कड़ी प्रतिक्रिया नहीं दी। बल्कि पत्रकारों के सवालों पर उन्होंने इतना ही कहा कि भाजपा यह सब मुद्दे इसीलिए उठा रही है, जिससे उसे रोजगार और महंगाई पर जवाब न देना पड़े। यानी अखिलेश यादव अपने मुद्दों को लेकर ज्यादा सजगता से प्रतिक्रिया दे रहे हैं।

उकसाऊ प्रतिक्रिया देने की बजाय वे प्रेस कांफ्रेंस के जरिए जिस तरह रोजगार और महंगाई के मुद्दे पर सरकार को घेर रहे हैं, उससे पूरा चुनाव इन्हीं मुद्दों पर केंद्रित होता दिखाई पड़ रहा है। आगे के चरणों में भी उनका यह स्टैंड बने रहने की उम्मीद है। संभवतया यही कारण है कि भाजपा ने बड़ी चतुराई से पूरा चुनाव सुरक्षा के मुद्दे से जोड़ना शुरू कर दिया। इससे चुनाव में उसे सुरक्षा को एक बड़ा मुद्दा बनाने में सफलता भी मिलती भी दिख रही है।

क्या राम मंदिर अब मुद्दा नहीं?

वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक सुनील पांडेय ने अमर उजाला से कहा कि भाजपा को भी अहसास है कि अब राममंदिर निर्माण मतदाता के बीच बड़ा चुनावी मुद्दा नहीं रहा है। अदालत के निर्णय के बाद इस मामले का पटाक्षेप हो चुका है। मंदिर निर्माण पूरा होने पर भाजपा 2024 के आम चुनाव में इसका लाभ उठाने की कोशिश कर सकती है और तब शायद उसे इसका कुछ लाभ भी मिले, लेकिन आज की स्थिति में यह मुद्दा उसके लिए बहुत ज्यादा काम का नहीं है। शायद यही कारण है कि भाजपा के रणनीतिकारों ने योगी आदित्यनाथ को अयोध्या से चुनावी मैदान में नहीं उतारा। अन्यथा इससे उसकी पूरी चुनावी रणनीति इसके आसपास ही केंद्रित रहती और वह सपा के सामने कमजोर पड़ जाती।

लिहाजा, उसने बड़ी ही सोची समझी रणनीति के तहत सपा को सुरक्षा के मुद्दे पर घेरना शुरू कर दिया है। यह आश्चर्यजनक है कि भाजपा के सत्ता में होने के बाद भी सुरक्षा का मुद्दा सपा के खिलाफ जा सकता है। जबकि योगी आदित्यनाथ सरकार में भी हाथरस, आगरा, गोरखपुर कांड और फाफामऊ-लखीमपुर खीरी कांड हुए हैं जो भाजपा को असहज करते दिखते रहे हैं। लेकिन अपराधियों पर कड़ी कार्रवाई योगी आदित्यनाथ सरकार की नीति का ही परिणाम है कि सुरक्षा का मुद्दा उनके खिलाफ न जाकर यह सपा के विरुद्ध जाता दिख रहा है। सत्ता में न रहने के बाद भी सपा इस मुद्दे पर रक्षात्मक दिख रही है।  

हालांकि, भाजपा जब विपक्ष में होती है और राष्ट्रवाद के मुद्दे के सहारे वह किसी सरकार को घेरती है तो यह मुद्दा ज्यादा कारगर होता दिखाई पड़ता है, लेकिन जब वह खुद सत्ता में है, यह मुद्दा उसके लिए कितना कारगर साबित हुआ है, यह तो चुनाव नतीजे आने के बाद ही पता चलेगा।

अब क्या रहेगी रणनीति

चूंकि अब उत्तराखंड और पंजाब में चुनाव खत्म हो चुके हैं, इन क्षेत्रों में लगे भाजपा नेता भी फिलहाल खाली हो चुके हैं जो संभवतया अब पूरे जोर-शोर से अवध और पूर्वांचल के क्षेत्रों में जुटेंगे और सपा को घेरने की कोशिश करेंगे। इस दौरान भी उसके हाथ सुरक्षा और आतंकवाद का मुद्दा ही उभारने की कोशिश करेगी।   

किसानों के सामने कई बड़े मुद्दे

अखिल भारतीय किसान मजदूर सभा के राष्ट्रीय महासचिव डॉ. आशीष मित्तल ने अमर उजाला से कहा कि भाजपा को इस चरण में किसानों पर जुल्म ढाने वाले मंत्री को बचाने की कीमत चुकानी पड़ेगी। पूरा किसान समुदाय देख रहा है कि किस प्रकार किसानों पर झूठे मुकदमे दायर किये जा रहे हैं, वहीं तीन किसानों सहित चार लोगों पर गाड़ी चढ़ाकर उनकी हत्या करने वाला मंत्री पुत्र खुलेआम घूम रहा है। उन्होंने कहा कि किसानों के बीच यह बड़ा मुद्दा है।

गन्ना फसल की कीमत का मुददा केवल पश्चिमी यूपी तक सीमित नहीं है। यह अवध-पूर्वांचल के क्षेत्र में भी बड़ा मुद्दा है। जनवरी माह में ही गन्ना मूल्यों को लेकर किसानों ने बड़ा प्रदर्शन किया है। यूरिया और अन्य खादों की कालाबाजारी हो रही है। इस क्षेत्र की पूरी फसल सिंचाई पर आधारित है, जबकि उत्तर प्रदेश में सिंचाई का मूल्य सबसे ज्यादा पड़ता है जो कि किसानों की कृषि लागत मूल्य बढ़ाती है। भाजपा ने सरकार बनने पर किसानों को मुफ्त बिजली देने का वादा किया है, लेकिन चुनाव शुरू होने से पहले किसानों के ट्यूबवेल पर छापे भी मारे जा रहे थे। यही कारण है कि किसानों को भाजपा के वादे पर भी संदेह है।

इनके अलावा आवारा पशुओं के कारण खेती को हो रहा नुकसान किसानों को दी जा रही सहायता पर भारी पड़ रहा है। किसानों का कहना है कि उन्हें अपने खेतों में भारी लागत लगाकर उन्हें आवारा जानवरों के लिए छोड़ने से बेहतर है कि वे खेती करना ही छोड़ रहे हैं। चौथे चरण में सरकार के लिए यह चिंताजनक बात हो सकती है।

चौथे चरण की चुनौती

चौथे चरण में यूपी की राजधानी लखनऊ की सीटों के साथ-साथ लखीमपुर, पीलीभीत, उन्नाव, सीतापुर, रायबरेली, ऊंचाहार, बांदा, फतेहपुर, खागा, मोहम्मदी, गोला गोकरननाथ, हरदोई, संडीला और भगवंत नगर में 23 फरवरी को मतदान होगा। इसमें नौ जिलों के 60 विधानसभा क्षेत्र शामिल होंगे।

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विस्तार

यूपी विधानसभा का चुनाव अब चौथे चरण में पहुंच चुका है। भाजपा ने अब तक सुरक्षा को अहम मुददा बनाया है, लेकिन चौथे चरण के आते-आते उसके नेताओं ने आतंकवाद को भी प्रमुखता से मुद्दा बनाने की कोशिश की है। आश्चर्यजनक रूप से उसने अब तक अयोध्या में हो रहे राम मंदिर निर्माण पर कोई बड़ी बयानबाजी नहीं की है। तो क्या भाजपा ने यह मान लिया है कि अयोध्या अब वोटरों को लुभाने में कारगर साबित नहीं होगा? अब अवध और पूर्वांचल के क्षेत्रों में मतदान होना है तो क्या इन क्षेत्रों में भाजपा अयोध्या के मुद्दे को भुनाने की कोशिश करेगी? चौथे चरण में अवध क्षेत्र में पहुंच चुके चुनाव में उसकी रणनीति क्या रहने वाली है?     

शुरुआती दौर में भाजपा ने अपनी चुनावी मुहिम एक बार फिर अयोध्या में मंदिर निर्माण मुद्दे के सहारे ही शुरू करने की कोशिश की थी। अयोध्या में भव्य दीपावली पूजन कार्यक्रम संपन्न कराकर भी योगी आदित्यनाथ ने उसके सहारे जनता को अपने साथ जोड़ने की कोशिश की थी। वे कभी कभार अपने चुनावी भाषणों में अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का मुद्दा उठाते भी दिखे, लेकिन इस पर जनता की तरफ से कोई विशेष सकारात्मक प्रतिक्रिया न देख उन्होंने भी इस मुद्दे को पीछे छोड़ दिया। इसकी बजाय उन्होंने 80 और 20 और बुलडोजर का मुद्दा उठाना शुरू कर दिया।

सपा ने बेरोजगारी-महंगाई को मुद्दा बनाया

वहीं, सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव महंगाई और बेरोजगारी के मुद्दे पर लगातार बोलते रहे हैं। शायद उन्हें पता है कि यही मुद्दे उन्हें युवाओं और मतदाता के बीच स्थापित कर पाएंगे। पीएम द्वारा अहमदाबाद की आतंकवादी घटना में साइकिल के इस्तेमाल पर व्यंग्य किए जाने के बाद भी उन्होंने उस पर कोई कड़ी प्रतिक्रिया नहीं दी। बल्कि पत्रकारों के सवालों पर उन्होंने इतना ही कहा कि भाजपा यह सब मुद्दे इसीलिए उठा रही है, जिससे उसे रोजगार और महंगाई पर जवाब न देना पड़े। यानी अखिलेश यादव अपने मुद्दों को लेकर ज्यादा सजगता से प्रतिक्रिया दे रहे हैं।

उकसाऊ प्रतिक्रिया देने की बजाय वे प्रेस कांफ्रेंस के जरिए जिस तरह रोजगार और महंगाई के मुद्दे पर सरकार को घेर रहे हैं, उससे पूरा चुनाव इन्हीं मुद्दों पर केंद्रित होता दिखाई पड़ रहा है। आगे के चरणों में भी उनका यह स्टैंड बने रहने की उम्मीद है। संभवतया यही कारण है कि भाजपा ने बड़ी चतुराई से पूरा चुनाव सुरक्षा के मुद्दे से जोड़ना शुरू कर दिया। इससे चुनाव में उसे सुरक्षा को एक बड़ा मुद्दा बनाने में सफलता भी मिलती भी दिख रही है।

क्या राम मंदिर अब मुद्दा नहीं?

वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक सुनील पांडेय ने अमर उजाला से कहा कि भाजपा को भी अहसास है कि अब राममंदिर निर्माण मतदाता के बीच बड़ा चुनावी मुद्दा नहीं रहा है। अदालत के निर्णय के बाद इस मामले का पटाक्षेप हो चुका है। मंदिर निर्माण पूरा होने पर भाजपा 2024 के आम चुनाव में इसका लाभ उठाने की कोशिश कर सकती है और तब शायद उसे इसका कुछ लाभ भी मिले, लेकिन आज की स्थिति में यह मुद्दा उसके लिए बहुत ज्यादा काम का नहीं है। शायद यही कारण है कि भाजपा के रणनीतिकारों ने योगी आदित्यनाथ को अयोध्या से चुनावी मैदान में नहीं उतारा। अन्यथा इससे उसकी पूरी चुनावी रणनीति इसके आसपास ही केंद्रित रहती और वह सपा के सामने कमजोर पड़ जाती।

लिहाजा, उसने बड़ी ही सोची समझी रणनीति के तहत सपा को सुरक्षा के मुद्दे पर घेरना शुरू कर दिया है। यह आश्चर्यजनक है कि भाजपा के सत्ता में होने के बाद भी सुरक्षा का मुद्दा सपा के खिलाफ जा सकता है। जबकि योगी आदित्यनाथ सरकार में भी हाथरस, आगरा, गोरखपुर कांड और फाफामऊ-लखीमपुर खीरी कांड हुए हैं जो भाजपा को असहज करते दिखते रहे हैं। लेकिन अपराधियों पर कड़ी कार्रवाई योगी आदित्यनाथ सरकार की नीति का ही परिणाम है कि सुरक्षा का मुद्दा उनके खिलाफ न जाकर यह सपा के विरुद्ध जाता दिख रहा है। सत्ता में न रहने के बाद भी सपा इस मुद्दे पर रक्षात्मक दिख रही है।  

हालांकि, भाजपा जब विपक्ष में होती है और राष्ट्रवाद के मुद्दे के सहारे वह किसी सरकार को घेरती है तो यह मुद्दा ज्यादा कारगर होता दिखाई पड़ता है, लेकिन जब वह खुद सत्ता में है, यह मुद्दा उसके लिए कितना कारगर साबित हुआ है, यह तो चुनाव नतीजे आने के बाद ही पता चलेगा।

अब क्या रहेगी रणनीति

चूंकि अब उत्तराखंड और पंजाब में चुनाव खत्म हो चुके हैं, इन क्षेत्रों में लगे भाजपा नेता भी फिलहाल खाली हो चुके हैं जो संभवतया अब पूरे जोर-शोर से अवध और पूर्वांचल के क्षेत्रों में जुटेंगे और सपा को घेरने की कोशिश करेंगे। इस दौरान भी उसके हाथ सुरक्षा और आतंकवाद का मुद्दा ही उभारने की कोशिश करेगी।   

किसानों के सामने कई बड़े मुद्दे

अखिल भारतीय किसान मजदूर सभा के राष्ट्रीय महासचिव डॉ. आशीष मित्तल ने अमर उजाला से कहा कि भाजपा को इस चरण में किसानों पर जुल्म ढाने वाले मंत्री को बचाने की कीमत चुकानी पड़ेगी। पूरा किसान समुदाय देख रहा है कि किस प्रकार किसानों पर झूठे मुकदमे दायर किये जा रहे हैं, वहीं तीन किसानों सहित चार लोगों पर गाड़ी चढ़ाकर उनकी हत्या करने वाला मंत्री पुत्र खुलेआम घूम रहा है। उन्होंने कहा कि किसानों के बीच यह बड़ा मुद्दा है।

गन्ना फसल की कीमत का मुददा केवल पश्चिमी यूपी तक सीमित नहीं है। यह अवध-पूर्वांचल के क्षेत्र में भी बड़ा मुद्दा है। जनवरी माह में ही गन्ना मूल्यों को लेकर किसानों ने बड़ा प्रदर्शन किया है। यूरिया और अन्य खादों की कालाबाजारी हो रही है। इस क्षेत्र की पूरी फसल सिंचाई पर आधारित है, जबकि उत्तर प्रदेश में सिंचाई का मूल्य सबसे ज्यादा पड़ता है जो कि किसानों की कृषि लागत मूल्य बढ़ाती है। भाजपा ने सरकार बनने पर किसानों को मुफ्त बिजली देने का वादा किया है, लेकिन चुनाव शुरू होने से पहले किसानों के ट्यूबवेल पर छापे भी मारे जा रहे थे। यही कारण है कि किसानों को भाजपा के वादे पर भी संदेह है।

इनके अलावा आवारा पशुओं के कारण खेती को हो रहा नुकसान किसानों को दी जा रही सहायता पर भारी पड़ रहा है। किसानों का कहना है कि उन्हें अपने खेतों में भारी लागत लगाकर उन्हें आवारा जानवरों के लिए छोड़ने से बेहतर है कि वे खेती करना ही छोड़ रहे हैं। चौथे चरण में सरकार के लिए यह चिंताजनक बात हो सकती है।

चौथे चरण की चुनौती

चौथे चरण में यूपी की राजधानी लखनऊ की सीटों के साथ-साथ लखीमपुर, पीलीभीत, उन्नाव, सीतापुर, रायबरेली, ऊंचाहार, बांदा, फतेहपुर, खागा, मोहम्मदी, गोला गोकरननाथ, हरदोई, संडीला और भगवंत नगर में 23 फरवरी को मतदान होगा। इसमें नौ जिलों के 60 विधानसभा क्षेत्र शामिल होंगे।

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