एडीजी बोले : सार्वजनिक स्थल पर फ्री वाईफाई पड़ सकता है महंगा, खाली हो सकता है खाता

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एडीजी प्रेम प्रकाश।

एडीजी प्रेम प्रकाश।
– फोटो : अमर उजाला।

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सार्वजनिक स्थल जैसे रेलवे, बस स्टेशन आदि पर फ्री वाई-फाई का इस्तेमाल न करें। कई बार साइबर अपराधी लोगों को शिकार बनाने के लिए इस तरह का झांसा देते हैं। ऐसा किया तो आपका खाता खाली हो सकता है। साइबर अपराध विषय पर आयोजित कार्यशाला में एडीजी जोन प्रेमप्रकाश ने यह बातें कहीं। अमर उजाला कार्यालय में आयोजित कार्यशाला में एडीजी ने साइबर अपराध से बचाव के तरीकों पर विस्तार से जानकारी दी। बताया कि संभव हो तो बैंकिंग ट्रांजेक्शन व निजी उपयोग के लिए अलग नंबरों का इस्तेमाल करें। लोन, लॉटरी, क्रेडिट लिमिट बढ़ाने आदि के  झांसे में कभी न आएं। 

यूपीआई पिन पेमेंट के लिए होता है न कि अमाउंट रिसीव करने के लिए। ऐसे में कभी भी क्यूआर कोड स्कैन न करें। अंजान लिंक पर क्लिक न करें। लिंक आपको पेमेंट गेटवे पर डायवर्ट कर सकते हैं। इसके अलावा साइबर ठग इनक्रिप्टेड तस्वीर भी भेजते हैं। इन तस्वीरों पर क्लिक करते ही मोबाइल में रिमोट एप इंस्टाल हो सकते हैं।

साइबर अपराधी इन तरीकों का करते हैं इस्तेमाल
डेबिट/क्रेडिट कार्ड, यूपीआई पिन, क्यूआर कोड, केवाईसी अपडेट, रिफंड, कस्टमर केयर नंबर, इलेक्ट्रिसिटी बिल, कस्टमर केयर आदि। 

इसका भी रखें ख्याल
– इंस्टैंट लोन का झांसा देकर साइबर ठग रिमोट एप इंस्टाल कराकर स्क्रीन एक्सेस ले लेते हैं। इसके बाद अप्लीकेशन के नाम पर फार्म भरने को कहकर निजी जानकारियां, जैसे नाम, पता, जन्मतिथि आदि पता कर लेते हैं।
– स्कूल, रेस्टोरेंट के नाम पर मूल वेबसाइट से मिलती-जुलती वेबसाइट बनाकर लोगों को शिकार बनाते हैं। वेबसाइट में एक या दो अक्षर बदलकर लोगों को झांसा देते हैं। 
– किसी भी वेबसाइट को खोलने पर सबसे पहले उसका यूआरएल चेक करें। यूआरएल बार में सबसे पहले एचटीटीपीएस है तो आप सुरक्षित हैं। ऐसा न होने पर सतर्क हो जाएं। 
– पीओएस मशीन से पेमेंट करते वक्त कभी भी कार्ड दूसरे को न दें। पासवर्ड भी खुद ही डालें। 
– एप लिंक से डाउनलोड न करके प्ले स्टोर या कंपनी के अधिकृत एप स्टोर का ही इस्तेमाल करें। 
– किसी को आईडी प्रूफ दे रहे हैं तो उसमें ‘यूज्ड फॉर ओनली…’ जरूर लिख दें। 

साइबर मामलों के विशेषज्ञ हसन जैदी ने कहा कि मौजूदा दौर में बच्चों के हाथ में भी मोबाइल है और ऐसे में साइबर अपराधियों के लिए वह सॉफ्ट टारगेट हो सकते हैं। ऑनलाइन गेमिंग ही नहीं, एप के जरिये भी उन्हें हिंसा व चाइल्ड पोर्नोग्राफी तथा ब्लैकमेलिंग का शिकार बनाया जाता है। वह डर के चलते मां-बाप को कुछ बता नहीं पाते, ऐसे में फंसते चले जाते हैं और कई बार गलत कदम भी उठा लेते हैं। ऐसे में बच्चों की वेब सर्फिंग हिस्ट्री को जरूर चेक करें। स्कूलों में साइबर आर्मी बनाई जाए। इसमें बच्चों को ही शामिल किया जाए और उनसे शपथ ली जाए। साथ ही उन्हें अन्य बच्चों को भी जागरूक करने को प्रेरित किया जाए। 

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यहां करें शिकायत
नेशनल साइबर हेल्पलाइन- 1930
नेशनल साइबर क्राइम पोर्टल- साइबरक्राइमडॉटजीओवीडॉटइन
साइबर थाना- 7839876652 
जनपदीय साइबर सेल- 9454405263
जोनल हेल्पलाइन- 9454457728

विस्तार

सार्वजनिक स्थल जैसे रेलवे, बस स्टेशन आदि पर फ्री वाई-फाई का इस्तेमाल न करें। कई बार साइबर अपराधी लोगों को शिकार बनाने के लिए इस तरह का झांसा देते हैं। ऐसा किया तो आपका खाता खाली हो सकता है। साइबर अपराध विषय पर आयोजित कार्यशाला में एडीजी जोन प्रेमप्रकाश ने यह बातें कहीं। अमर उजाला कार्यालय में आयोजित कार्यशाला में एडीजी ने साइबर अपराध से बचाव के तरीकों पर विस्तार से जानकारी दी। बताया कि संभव हो तो बैंकिंग ट्रांजेक्शन व निजी उपयोग के लिए अलग नंबरों का इस्तेमाल करें। लोन, लॉटरी, क्रेडिट लिमिट बढ़ाने आदि के  झांसे में कभी न आएं। 

यूपीआई पिन पेमेंट के लिए होता है न कि अमाउंट रिसीव करने के लिए। ऐसे में कभी भी क्यूआर कोड स्कैन न करें। अंजान लिंक पर क्लिक न करें। लिंक आपको पेमेंट गेटवे पर डायवर्ट कर सकते हैं। इसके अलावा साइबर ठग इनक्रिप्टेड तस्वीर भी भेजते हैं। इन तस्वीरों पर क्लिक करते ही मोबाइल में रिमोट एप इंस्टाल हो सकते हैं।

साइबर अपराधी इन तरीकों का करते हैं इस्तेमाल

डेबिट/क्रेडिट कार्ड, यूपीआई पिन, क्यूआर कोड, केवाईसी अपडेट, रिफंड, कस्टमर केयर नंबर, इलेक्ट्रिसिटी बिल, कस्टमर केयर आदि। 



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