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गोरखपुर फोरलेन।
– फोटो : राजेश कुमार।
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गोरखपुर शहर की सीमा से सटे गांवों की जमीनें जब फोरलेन के लिए अधिगृहित की गईं तो किसानों की बांछें खिल उठीं। जो जमीन कौड़ियों के भाव नहीं बिकती थी, उसकी अच्छी-खासी कीमत मुआवजे के रूप में मिली। ज्यादातर किसानों की तरक्की की राह खुल गई, लेकिन कुछ ने रकम शानो-शौकत में उड़ा दी। हालांकि, बहुत ऐसे भी जरूरतमंद थे, जिनके लिए मुआवजे की रकम किसी संजीवनी से कम नहीं थी।
अब माड़ापार गांव के राधेश्याम को ही ले लीजिए, कैंसर जैसी गंभीर बीमारी से जूझ रही उनकी पत्नी उर्मिला की जान बच गई तो इसी गांव के दूधिए जयराम अपने बेटा-बेटी को दिल्ली में आईएएस की तैयारी करवा रहे हैं। वहीं, बसडीला के ही दो किसान ऐसे भी हैं जिन्होंने मुआवजे की राशि को दावत में उड़ा दिए। जमीन भी गई और हाथ भी खाली हैं।
माली हालत ठीक नहीं थी…अब सपने सच होते दिख रहे
माड़ापार के रहने वाले जयराम यादव दूध बेचते हैं। 15 साल पहले उनकी माली हालत ठीक नहीं थी। दूध बेचने से परिवार का खर्च चलाना मुश्किल था। उनकी एक बेटी पूजा और बेटा महेश हैं। दोनों की पढ़ाई को लेकर वह चिंतित रहते थे। वर्ष 2006 में जब जमीन का अधिग्रहण का शुरू हुआ तो उनकी चिंता और बढ़ गई थी। उनको लगा कि खेती की भूमि भी हाथ से निकल जाएगी तो क्या करेंगे।
जगदीशपुर के पास उनके सहित अन्य 10 पट्टीदारों की जमीन थी। सरकार ने जब जमीन ली तो एक मुश्त रकम दी। करीब 12 लाख रुपये मिले। इसमें अपने हिस्से की भूमि से मिले दो लाख रुपये को जयराम ने बैंक में जमा करा दिए। दूध बेचकर होने वाली कमाई और मुआवजे की मदद से उन्होंने अपने बच्चों को उच्च शिक्षा ग्रहण कराने का फैसला लिया। अप्रैल माह में उन्होंने अपनी बेटी पूजा को आईएएस की तैयारी के लिए दिल्ली भेजा है।
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