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पाटन। बीघापुर ब्लाक क्षेत्र के बेलहरा गांव की आरती निशक्त पिता की ताकत बन गईं। उन्हाेंने पढ़ाई के साथ केले की खेती में हाथ आजमाया और परिवार को तरक्की की राह पर ले गईं। उनके बुलंद हौसलों का हर कोई कायल है। उन्होंने साबित कर दिया कि बेटियां किसी भी क्षेत्र में बेटों से पीछे नहीं हैं। कम लागत में अधिक मुनाफा कमाकर अन्य लोगों के लिए मिसाल पेश की है।
बेलहरा निवासी आरती के पिता कमल किशोर पैरों से दिव्यांग हैं। परिवार की आर्थिक स्थिति बिगड़ी तो उसके दो भाई कमाने दूसरे प्रदेश चले गए। इसके बाद परिवार के भरणपोषण की जिम्मेदारी आरती (25) पर आ गई। उन्हाेंने इसे चुनौती के रूप में लिया और पिता के बताए रास्ते पर चलकर केले की खेती शुरू की।
इफको से प्रशिक्षण लेकर जी-नाइन प्रजाति की उन्नत केले की खेती शुरू की। उनके पास 25 बिसवा जमीन है। दो साल पहले केले की खेती शुरू की। पहली बार में 50 हजार लागत आई और दो लाख की बचत हुई। अच्छा मुनाफा हुआ तो खेती आगे बढ़ाई। पिछले साल जून में रोपी गईं केले की गांठ अब पेड़ बन गईं हैं। घांवर (घार या केले के गुच्छे) निकलने का समय आ गया है। आरती से प्रेरणा लेकर आसपास के गांवों के कई किसानों ने केले की खेती को अपनाया है। वह खेती करने में सभी की मदद भी कर रहीं हैं।
14 माह में तैयार होती है फसल
आरती ने बताया कि जून में केले की गांठ लाकर खेत में रोपाई शुरू की जाती है। 14 माह में केले की फसल तैयार हो जाती है। 150 से 200 रुपये की दर से प्रति घांवर की बिक्री होती है। केले की खरीदारी के लिए लखनऊ, कानपुर, फतेहपुर, रायबरेली के व्यापारी आते हैं।
ये है शैक्षिक योग्यता
आरती ने स्नातक की पढ़ाई की। इसके बाद बीटीसी किया। टीईटी भी पास किया। आरती का कहना है कि पिता कमल किशोर दोनों पैरों से दिव्यांग हैं। कुछ साल पहले तक वह खुद खेती करते थे। अब वह चल नहीं पाते हैं। इसके कारण खेती प्रभावित हुई और आर्थिक समस्या आ गई।
पाटन। बीघापुर ब्लाक क्षेत्र के बेलहरा गांव की आरती निशक्त पिता की ताकत बन गईं। उन्हाेंने पढ़ाई के साथ केले की खेती में हाथ आजमाया और परिवार को तरक्की की राह पर ले गईं। उनके बुलंद हौसलों का हर कोई कायल है। उन्होंने साबित कर दिया कि बेटियां किसी भी क्षेत्र में बेटों से पीछे नहीं हैं। कम लागत में अधिक मुनाफा कमाकर अन्य लोगों के लिए मिसाल पेश की है।
बेलहरा निवासी आरती के पिता कमल किशोर पैरों से दिव्यांग हैं। परिवार की आर्थिक स्थिति बिगड़ी तो उसके दो भाई कमाने दूसरे प्रदेश चले गए। इसके बाद परिवार के भरणपोषण की जिम्मेदारी आरती (25) पर आ गई। उन्हाेंने इसे चुनौती के रूप में लिया और पिता के बताए रास्ते पर चलकर केले की खेती शुरू की।
इफको से प्रशिक्षण लेकर जी-नाइन प्रजाति की उन्नत केले की खेती शुरू की। उनके पास 25 बिसवा जमीन है। दो साल पहले केले की खेती शुरू की। पहली बार में 50 हजार लागत आई और दो लाख की बचत हुई। अच्छा मुनाफा हुआ तो खेती आगे बढ़ाई। पिछले साल जून में रोपी गईं केले की गांठ अब पेड़ बन गईं हैं। घांवर (घार या केले के गुच्छे) निकलने का समय आ गया है। आरती से प्रेरणा लेकर आसपास के गांवों के कई किसानों ने केले की खेती को अपनाया है। वह खेती करने में सभी की मदद भी कर रहीं हैं।
14 माह में तैयार होती है फसल
आरती ने बताया कि जून में केले की गांठ लाकर खेत में रोपाई शुरू की जाती है। 14 माह में केले की फसल तैयार हो जाती है। 150 से 200 रुपये की दर से प्रति घांवर की बिक्री होती है। केले की खरीदारी के लिए लखनऊ, कानपुर, फतेहपुर, रायबरेली के व्यापारी आते हैं।
ये है शैक्षिक योग्यता
आरती ने स्नातक की पढ़ाई की। इसके बाद बीटीसी किया। टीईटी भी पास किया। आरती का कहना है कि पिता कमल किशोर दोनों पैरों से दिव्यांग हैं। कुछ साल पहले तक वह खुद खेती करते थे। अब वह चल नहीं पाते हैं। इसके कारण खेती प्रभावित हुई और आर्थिक समस्या आ गई।
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