ताजमहल: शाहजहां का तोहफा बन पत्थर-पत्थर बोल रहा, मैं ताज हूं, मोहब्बत के जुनून का इश्तहार हूं

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ताजमहल से पूछ के देखो, कैसी थी मुमताज महल, शाहजहां का तोहफा बनकर पत्थर-पत्थर बोलेगा। जी हां, मोहब्बत के शाहकार ताजमहल के बारे में यहां का पत्थर-पत्थर बोल रहा है। यकीन मानिये, ये हकीकत है। ताज का हर पत्थर न केवल इसके इतिहास, बल्कि दुनिया के सातवें अजूबे को तामीर करने वालों की पहचान भी बयां कर रहा है। अमर उजाला के स्थापना दिवस पर जानिए ताजमहल के अनकही बातें… 

ताज को अपने हाथों से गढ़ने वाले ऐसे जादूगर कारीगरों ने अपने निशान ताजमहल के पत्थरों पर छोड़ दिए, जिन्हें मैसन मार्क का नाम दिया गया है। ये मैसन मार्क वह है, जिन्हें कारीगरों ने अपनी पहचान के तौर पर बना दिया। ज्यादातर यह लाल पत्थर पर गढ़े हैं। ताज में ऐसे 640 निशान हैं, जिन्हें भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण सहेज रहा है। 364 साल बाद इन मैसन मार्क को मेहमानखाने की ओर एक साथ लगाने की योजना है। जिन हाथों से दुनिया की सबसे खूबसूरत इमारत को गढ़ा गया, उनके निशान ताज में बरकरार रहेंगे। 

संगमरमर से ताज को गढ़ने वाले कारीगरों और मजदूरों ने यहां अपनी पहचान के चिह्न इसे बनाते समय ही छोड़ दिए थे। चमेली फर्श, मेहमानखाने, रॉयल गेट, सेंट्रल टैंक के पास की नहरों के दोनों पाथवे, यमुना किनारे की पिछली दीवार के पत्थरों और मस्जिद के पास लगे लाल पत्थरों पर यह निशान कायम हैं। ताज में मिले 640 निशानों को संरक्षित करने के लिए एएसआई इन्हें मेहमान खाने में एक साथ लगाने की तैयारी कर रहा है। मैसन मार्क कितने महत्वपूर्ण हैं, इसे इस बात से समझा जा सकता है कि विभाग ने पूरी मैपिंग की है कि कौन सा मैसन मार्क कहां पर है। 

ताज में लगा कीमती पत्थर

ताजमहल में केवल मकराना से संगमरमर और राजस्थान की खदानों से निकला लाल पत्थर ही नहीं लगा, बल्कि दुनियाभर में पाए जाने वाले कीमती पत्थर लगे हैं। कीमती पत्थरों का इस्तेमाल नक्काशी में किया गया। पच्चीकारी में विदेशी पत्थरों की चमक अब भी कायम है। इनमें रूस से मैलेकाइट, चीन से ग्रीनजेड, अफगानिस्तान से लैपिसलैजूरी (लाजवर्त), बगदाद से कोरल, तिब्बत से टरक्वाइस आदि मंगवाए गए थे। 

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एएसआई के पूर्व निदेशक केके मुहम्मद ने बताया कि ताजमहल में दुनिया के बेहतरीन नगीनों का इस्तेमाल किया गया। इनकी चमक आज भी बरकरार है। जिस तरह का संगमरमर ताज में इस्तेमाल किया गया, वैसी गुणवत्ता का पत्थर मिलना अब मुश्किल है। पच्चीकारी के अद्भुत नमूने ताजमहल को उसके नगीने ही खास बनाते हैं। 

अनूठे हैं मैसन मार्क 

एएसआई अधीक्षण पुरातत्वविद राजकुमार पटेल ने बताया कि ताजमहल को जिन कारीगरों ने बनाया, उन्होंने अपने निशान लाल पत्थरों पर छोड़ दिए। उन पत्थरों को हम बदलते नहीं, जब तक कि वह पूरी तरह से खराब न हो जाएं। उन्हें निकालने के बाद स्टोर में रखा गया है, ताकि निशान संरक्षित रहें। यह मैसन मार्क अनूठे हैं। 

वास्तुकला के लिए देखें

गाइड एसोसिएशन के शमशुद्दीन ने कहा कि ताजमहल को केवल इतिहास, कहानी की नजर से नहीं, बल्कि उसकी वास्तुकला और निर्माण शैली के लिए देखना चाहिए। ताज से जुड़ेंगे तो हर पत्थर अपनी कहानी कहता नजर आएगा। यह दुनियाभर के सर्वश्रेष्ठ पत्थरों से बना एक नायाब नमूना है। 

इन देशों से आए ताज के नगीने

ताजमहल के निर्माण के समय दुनियाभर से नगीनों को लाया गया और पच्चीकारी में इस्तेमाल किया गया। इनमें रूस से मैलाकाइट आया तो ईरान से ऑनेेक्स पत्थर। चीन से पिट्यूनिया लाया गया तो लाल सागर, अरब और श्रीलंका से मूंगा मंगवाया गया। बगदाद का कॉर्नेलियन, नील नदी की घाटी मिस्र से लहसुनिया यानी क्रिसोलाइट आया, जिसे कैट आई स्टोन भी कहते हैं। पन्ना की खदानों से हीरा मंगवाया गया। देश के कोने-कोने के कीमती नगीनों का इस्तेमाल ताज की खूबसूरती बढ़ाने में किया गया।

आंकड़ों की नजर से ताज 

1632 में शुरू हुआ ताज का निर्माण

20 साल में पूरा हो पाया ताजमहल

20 हजार से ज्यादा कारीगरों ने किया काम

60 बीघा में फैला हुआ है ताज परिसर

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