फैसला : नशे में धुत होने वाले सिपाहियों को नहीं मिली राहत, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बर्खास्तगी को सही माना

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मुरादाबाद कोर्ट में शराब पीकर नशे में धुत होकर पेशी पर पुलिस अभिरक्षा से आए तीन अभियुक्तों के हथकड़ी खोल कर फरार होने के मामले में सिपाहियों की बर्खास्तगी को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सही माना है। कहा, बर्खास्तगी अपराध की तुलना में कठोर नहीं है। यह फैसला न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी ने बरेली के सिपाही श्रीपाल सिंह तथा प्रेमपाल की याचिका पर दिया है।

सिपाहियों ने घोर अनुशासनिक लापरवाही बरती। उन्होंने कोर्ट में पेशी के बाद अभियुक्तों के रिश्तेदार के घर तथा होटल में जाकर खाना खाया। मुरादाबाद से बरेली लौटने के लिए ट्रेन पकड़ी। वे अभियुक्तों के साथ शराब पीकर नशे में इतने धुत हुए कि बरेली पहुंचने पर बेहोशी की हालत में उतारे गए। तीनों अभियुक्त हथकड़ी खोलकर फरार हो चुके थे । 

कोर्ट ने कहा कि विभागीय कार्रवाई न तो एक पक्षीय है और न ही नैसर्गिक न्याय के विपरीत है। आदेश पारित होने पर यह नहीं कह सकते कि नैसर्गिक न्याय का उल्लघंन किया गया है। याचियों को अपना पक्ष रखने का पूरा मौका देकर नैसर्गिक न्याय का पूरी तरह से पालन किया गया है। कोर्ट ने बर्खास्तगी के खिलाफ  याचिका खारिज कर दी।

विभागीय अनुशासनात्मक कार्रवाई में इसे घोर लापरवाही बरतने के आरोप का दोषी करार देते हुए सिपाहियों को बर्खास्त कर दिया गया था, जिसे चुनौती दी गई थी। कोर्ट ने कहा, हाईकोर्ट अपीलीय शक्ति का इस्तेमाल नहीं कर रही। केवल आदेश की कानूनी समीक्षा कर रही है। इसलिए तथ्यात्मक निष्कर्ष पर हस्तक्षेप नहीं कर सकती।

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विस्तार

मुरादाबाद कोर्ट में शराब पीकर नशे में धुत होकर पेशी पर पुलिस अभिरक्षा से आए तीन अभियुक्तों के हथकड़ी खोल कर फरार होने के मामले में सिपाहियों की बर्खास्तगी को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सही माना है। कहा, बर्खास्तगी अपराध की तुलना में कठोर नहीं है। यह फैसला न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी ने बरेली के सिपाही श्रीपाल सिंह तथा प्रेमपाल की याचिका पर दिया है।

सिपाहियों ने घोर अनुशासनिक लापरवाही बरती। उन्होंने कोर्ट में पेशी के बाद अभियुक्तों के रिश्तेदार के घर तथा होटल में जाकर खाना खाया। मुरादाबाद से बरेली लौटने के लिए ट्रेन पकड़ी। वे अभियुक्तों के साथ शराब पीकर नशे में इतने धुत हुए कि बरेली पहुंचने पर बेहोशी की हालत में उतारे गए। तीनों अभियुक्त हथकड़ी खोलकर फरार हो चुके थे । 

कोर्ट ने कहा कि विभागीय कार्रवाई न तो एक पक्षीय है और न ही नैसर्गिक न्याय के विपरीत है। आदेश पारित होने पर यह नहीं कह सकते कि नैसर्गिक न्याय का उल्लघंन किया गया है। याचियों को अपना पक्ष रखने का पूरा मौका देकर नैसर्गिक न्याय का पूरी तरह से पालन किया गया है। कोर्ट ने बर्खास्तगी के खिलाफ  याचिका खारिज कर दी।

विभागीय अनुशासनात्मक कार्रवाई में इसे घोर लापरवाही बरतने के आरोप का दोषी करार देते हुए सिपाहियों को बर्खास्त कर दिया गया था, जिसे चुनौती दी गई थी। कोर्ट ने कहा, हाईकोर्ट अपीलीय शक्ति का इस्तेमाल नहीं कर रही। केवल आदेश की कानूनी समीक्षा कर रही है। इसलिए तथ्यात्मक निष्कर्ष पर हस्तक्षेप नहीं कर सकती।

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