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सार
गुणवत्ताविहीन पाए जाने वाली दवाओं में ज्यादातर शक्तिवर्धक दवाएं हैं। इसी तरह चूर्ण में भी संबंधित दवा पैकेट पर दर्ज तत्व नहीं थे। शक्तिवर्धक दवाओं के नाम पर युवा गंभीर बीमारी का शिकार हो रहे हैं। जानिए इन दवाओं के बारे में विशेषज्ञों का क्या कहना है…
प्रदेश में शक्तिवर्धक दवाओं के नाम पर युवा पेट की बीमारी का शिकार हो रहे हैं। आयुर्वेदिक दवाओं में भस्म की जगह राख और चूर्ण में पिसी हुई सामान्य पत्तियां पाई गई हैं। यह खुलासा आयुर्वेद विभाग की राजकीय औषधि परीक्षण प्रयोगशाला में विभिन्न जिलों से आए सैंपल में हुआ है। अब आयुर्वेद निदेशक ने सभी क्षेत्रीय आयुर्वेदिक व यूनानी अधिकारियों को दवाओं की जांच के लिए अभियान चलाने का निर्देश दिया है।
प्रदेश भर में अप्रैल 2018 से मार्च 2022 तक आयुर्वेद विभाग की राजकीय औषधि परीक्षण प्रयोगशाला में 192 सैंपल भेजे गए। इसमें 11 जांच योग्य नहीं न होने पर लौटा दिए गए जबकि जिला स्तर से अधिकृत पत्र नहीं होने की वजह से 11 को लंबित कर दिया गया। दो सैंपल रिजेक्ट हो गए। शेष 170 सैंपल में सिर्फ 40 गुणवत्तायुक्त पाए गए।
इसमें भस्म में राख मिली है
सूत्रों का कहना है कि गुणवत्ताविहीन पाए जाने वाली दवाओं में ज्यादातर शक्तिवर्धक दवाएं हैं। इसमें भस्म में राख मिली है। उसमें कोई पौष्टिक तत्व नहीं थे। इसी तरह चूर्ण में भी संबंधित दवा पैकेट पर दर्ज तत्व नहीं थे। चूर्ण में पिसी हुई पत्तियां पाई गई हैं। इसी तरफ सीरप में सिर्फ सीरा पाया गया है। दर्द निवारक दवाओं में साधारण तेल व कपूर मिला हुआ था। यही हाल अन्य दवाओं का भी है।
ज्यादातर दवाएं प्रदेश के अलग-अलग जिलों में चलने वाले ग्रामोद्योग की
खास बात यह है कि अधोमानक पाई गईं ज्यादातर दवाएं प्रदेश के अलग-अलग जिलों में चलने वाले ग्रामोद्योग की हैं। कुछ दवाएं पंजाब निर्मित भी हैं। कुछ दवाएं झांसी और ग्वालियर में बनने वाली आयुर्वेद दवा कंपनी के भी हैं। लैब प्रभारी ने सभी अधोमानक दवाओं के बारे में आयुर्वेद निदेशालय के साथ संबंधित जिले के क्षेत्रीय आयुर्वेदिक व यूनानी अधिकारी को पत्र भेजा है।
सभी जिलों में विभागीय अधिकारी जांच कर रहे हैं
जो दवाएं अधोमानक पाई गई हैं, उनके निर्माता को नोटिस भेजा गया है। भविष्य में ऐसी समस्या न आए, इसके लिए सभी जिलों में विभागीय अधिकारी जांच कर रहे हैं। अब दवा निर्माण के लिए लाइसेंस प्रणाली में बदलाव किया गया है। निर्माण इकाई में एक डॉक्टर और तीन टेक्निकल स्टॉफ रखना अनिवार्य कर दिया गया है। पांच साल में संबंधित दवा की गुड मैनिफेस्टो प्रैक्टिसेज करानी होगी। ऐसे में अधोमानक दवाएं बाजार में नहीं आएंगी। -डॉ. एसएन सिंह, निदेशक आयुर्वेद
रस औषधि के बनाने की विधि व मात्रा में चूक नहीं होनी चाहिए
आयुर्वेद में दो तरह की दवाएं हैं। इसमें पेटेंट और शास्त्र के अनुसार बनती हैं। रस औषधि के बनाने की विधि व मात्रा में चूक नहीं होनी चाहिए। भस्म पकाने की विधि है। यह कच्चा रहने पर नुकसानदेह होता है। अगर भस्म की जगह मरीज लंबे समय तक राख ले रहा है तो उसे पेट की बीमारी होना तय है। -डॉ. विजय सेठ, वरिष्ठ आयुर्वेद विशेषज्ञ
विस्तार
प्रदेश में शक्तिवर्धक दवाओं के नाम पर युवा पेट की बीमारी का शिकार हो रहे हैं। आयुर्वेदिक दवाओं में भस्म की जगह राख और चूर्ण में पिसी हुई सामान्य पत्तियां पाई गई हैं। यह खुलासा आयुर्वेद विभाग की राजकीय औषधि परीक्षण प्रयोगशाला में विभिन्न जिलों से आए सैंपल में हुआ है। अब आयुर्वेद निदेशक ने सभी क्षेत्रीय आयुर्वेदिक व यूनानी अधिकारियों को दवाओं की जांच के लिए अभियान चलाने का निर्देश दिया है।
प्रदेश भर में अप्रैल 2018 से मार्च 2022 तक आयुर्वेद विभाग की राजकीय औषधि परीक्षण प्रयोगशाला में 192 सैंपल भेजे गए। इसमें 11 जांच योग्य नहीं न होने पर लौटा दिए गए जबकि जिला स्तर से अधिकृत पत्र नहीं होने की वजह से 11 को लंबित कर दिया गया। दो सैंपल रिजेक्ट हो गए। शेष 170 सैंपल में सिर्फ 40 गुणवत्तायुक्त पाए गए।
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