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कहा जाता है कि जब तुलसीदास यहां आए थे, तब भगवान श्रीकृष्ण का ही मंदिर था। श्रीकृष्ण ने भगवान श्रीराम के रूप में तुलसीदास को दर्शन दिए, तब यह स्थल तुलसी रामदर्शन स्थल के नाम से जाना जाने लगा। यहां भगवान कृष्ण, राधारानी के साथ विराजमान हैं तो उनके पीछे धनुष बाण लिए भगवान राम भी विराजमान हैं।
वृंदावन शोध संस्थान के शोध अधिकारी डॉ. राजेश शर्मा बताते हैं कि तुलसीदास के समकालीन अविनाश ब्रह्म भट्ट ने गोस्वामीजी के चरित्र को तुलसी प्रकाश पोथी के अंतर्गत कलमबद्ध किया था। इससे ज्ञात होता है कि गोस्वामीजी विक्रम संवत 1628 में माघ शुक्ल पंचमी तिथि मंगलवार को ब्रज में आए थे।
डॉ. राजेश शर्मा ने बताया कि तुलसीदास की भक्ति पर प्रभु के धनुष बाण हाथ में लेने का उल्लेख गोवर्धन यात्रा के दौरान भी मिलता है। तुलसीदास ने श्रीरामचरितमानस के लेखन का आरंभ विक्रम संवत 1631 में किया था। इससे तीन वर्ष पहले वे ब्रज यात्रा कर चुके थे। इसका प्रमाण उनके द्वारा रचित कृष्णपदावली में है।
तुलसीराम दर्शन स्थल में प्रवेश करते ही दायीं तरफ एक पत्थरों की बनी कुटिया नजर आती है। इसके बारे कहा जाता है कि यहां तुलसीदास ने साधना की थी। वृंदावन प्रतिदिन हजारों लोग आते हैं, लेकिन तुलसीराम दर्शन स्थल का प्रसार-प्रचार न होने के कारण बहुत कम दर्शनार्थी ही यहां पहुंच पाते हैं।
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