[ad_1]
रमणरेती आश्रम में साधु-संतों ने भगवान और भक्तों के साथ होली खेली। इस दौरान परंपरा का निर्वहन करते हुए कुछ गुलाल उड़ाया गया। संत कार्ष्णि गुरु शरणानन्द ने पहले थोड़ा सा गुलाल भगवान के स्वरूप को लगाया और उसके बाद भक्तों पर फूलों की बरसात की गई। रमणरेती आश्रम में फूलों की होली के लिए 11 कुंतल फूल लाए गए।
गोपाल ठाकुर व्यास की मंडली द्वारा भव्य फूलों की होली का मंचन किया गया। अपने लड्डू गोपाल को लेकर मेरठ से आई छवि और अलीगढ़ से आई नीतू ने रमणरेती आश्रम में होली का आनंद लिया। उनका कहना था कि वह हर बार यहां होली के कार्यक्रम में शामिल होने आती हैं। बड़ा आनंद आता है।
सब जग होरी ब्रज में होरा की कहावत यूं ही नहीं है। ब्रज में होली का अद्भुत आनंद है। यहां जितने दिन की होली होती है, उतने ही होली के रूप व रंग देखने को मिलते हैं। इस 40 दिवसीय उत्सव में कहीं लड्डू और फूलों की होली होती है तो कहीं लाठियों से रंग बरसता है।
ब्रज मंडल में होली के त्योहार की शुरूआत वसंत पंचमी से हो चुकी है। मंदिरों में फाग की धमारों के बीच अब अबीर-गुलाल उड़ने लगा है। ब्रज की होली नंदगांव-बरसाना से अपने यौवन पर आती है। यहां लाठियों से बरसा रंग और अबीर-गुलाल के सतरंगी बादल होली के रूप में देश में छाने लगते हैं।
[ad_2]
Source link