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चार साल की उम्र में अपने पिता को खो देने वाला उत्तर प्रदेश के बलिया जैसे जिले का कोई बच्चा अगर हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में अपनी कला के बूते किसी क्षेत्र में सबसे ऊंची पायदान पर पहुंचने में कामयाब रहे तो इसे लगन, समर्पण और मेहनत का जीता जागता उदाहरण ही माना जा सकता है। ये कहानी है उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में किरिरापुर ब्लॉक के गांव उधरन से ताल्लुक रखने वाले सुभाष सिंह की। सुभाष ने सिनेमा के शुरुआती सबक मशहूर अभिनेता दिलीप कुमार के संग सीखे। उन्होंने सुभाष को जब पहली बार ‘पंढरी’ कहकर पुकारा और सुभाष को जब अंदाजा हुआ कि ये नाम इंडस्ट्री के सबसे दिग्गज मेकअपमैन का है तो बस उन्होंने इस नाम को ही सार्थक करने का मन बना लिया। आइए जानते हैं सुभाष सिंह की कहानी, उन्हीं की जुबानी…
‘जब मैं चार साल का था तभी पिता जी की मृत्यु हो गई। मां ने ही हमें पाल पोस कर बड़ा किया। पिताजी की गांव में कुछ जमीन थी। मां ने ये भी सोचा कि गांव की जमीन बेचकर हमारी ठीक से परवरिश कर सकेंगी। लेकिन, पिताजी के भाइयों ने हमें बहुत परेशान किया, हमारे ऊपर सांप और बिच्छू छोड़ दिए गए। हमारी बहुत बेइज्जती हुई और हमें मारकर गांव से भगा दिया। उसके बाद से आज तक कभी अपने गांव नहीं गए।’
घरों में कपड़े और बर्तन धोए
‘मुंबई आने के बाद हम लोग बांद्रा (पूर्व ) के भारत नगर में रहते थे। पढाई के साथ साथ मैं दूसरों के घरों में जाकर कपड़े और बर्तन साफ करता था और शाम को बांद्रा के लिंकिंग रोड पर एक जूते चप्पल की दुकान पर भी काम करता था। मेरी बहन चंदा ने दिलीप कुमार और सायरा बानो के पर्सनल असिस्टेंट कम ड्राइवर अहमद से शादी कर ली। लिंकिंग रोड से अभिनेता दिलीप कुमार का पाली हिल बंगला नजदीक था तो मैं कभी कभी वहां खाना खाने चला जाया करता था। बड़े आदमियों का बड़प्पन कैसा होता है, ये मैंने पहली बार दिलीप कुमार में ही देखा।’
‘ये उन दिनों की बात है जब दिलीप कुमार ‘कर्मा’ की शूटिंग कर रहे थे। अहमद भाई का साला होने के चलते दिलीप साब मुझे बहुत दुलार करते थे। कभी कभार तो मैं स्कूल न जाकर दिलीप साब के बंगले जा पहुंचता और अक्सर उनकी गाड़ी में बैठकर शूटिंग देखने चला जाता। ये फिल्म ‘कर्मा’ की शूटिंग के वक्त की बात है। दिलीप साहब एक दिन बोले, ‘क्या रे पंढरी, तू तो रोज ही शूटिंग देखने आ जाता है, तुझे अगर इतना शौक है तो इंडस्ट्री क्यों नहीं ज्वाइन कर लेता?’ पंढरी जुकर हिंदी सिनेमा के बहुत बड़े मेकअप आर्टिस्ट हुए हैं।’
‘दिलीप साब की बात मेरे दिल में घर कर गई। मैंने तय कर लिया कि मुझे भी इसी इंडस्ट्री में आना है। लेकिन मेरी मां नहीं मा रही थीं। मेरे घर में तो तब टीवी भी देखने की अनुमति नहीं थी। फिर मैंने अपनी दीदी चंदा से बात की। उन्होंने किसी तरह मां को समझाया। उस समय मेकअप आर्टिस्ट का यूनियन कार्ड 5400 रुपये में बनता था। (मुंबई फिल्म इंडस्ट्री में किसी भी फिल्म की यूनिट में शामिल होने के लिए संबंधित क्राफ्ट की यूनियन की सदस्यता लेना जरूरी है) जहां मैं काम करता था वहां से 10 प्रतिशत की ब्याज पर मैंने 5400 रुपये उधार लि। अगले दिन ही से मुझे काम मिल गया और पहली बार मैं शूटिंग पर बतौर सहायक लखनऊ गया तो मुझे 50 दिन के दो हजार रुपये मिले। तब मेरी उम्र सिर्फ 14 साल थी।’
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