मौसम ने ली करवट: एटा-मैनपुरी में आंधी के साथ हुई बारिश, देहात में ओले भी गिरे, गर्मी से मिली राहत

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एटा और मैनपुरी जनपद में बुधवार शाम को अचानक मौसम ने करवट ली। शहर में जहां तेज आंधी आई तो वहीं देहात क्षेत्रों में बारिश के साथ ओलावृष्टि भी हुई। इसके चलते गर्मी से तो लोगों को राहत मिल गई, लेकिन किसानों की परेशानी बढ़ गई है। गेहूं की थ्रेसिंग का काम रुकने के साथ ही अन्य फसलों में भी नुकसान की आशंका है। 

दिन में तेज धूप और गर्म हवाएं लोगों को बेहाल करती रहीं। गर्मी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि मैनपुरी में दिन में अधिकतम तापमान 42 डिग्री सेल्सियस रहा। लेकिन शाम को पांच बजे के करीब अचानक मौसम बदल गया। एटा जिले में भी ऐसा ही मौसम रहा। यहां भी शाम पांच बजे अचानक मौसम बदल गया। पहले तेज रफ्तार से आंधी चली। इसके बाद बारिश के साथ कई इलाकों में ओलावृष्टि हुई। आंधी के कारण  कई जगहों पर पेड़ और बिजली के खंभे भी गिरने की खबरें हैं। 

मैनपुरी में फिरोजाबाद जिले से लगे घिरोर और औंछा क्षेत्र में सबसे पहले हल्की बारिश शुरू हुई। इसके बाद यहां ओलावृष्टि शुरू हो गई। लगभग 10 मिनट यहां ओले गिरे। ज्योंती में ओले की एक बौछार आई। इससे गर्मी से तो लोगों को राहत मिल गई, लेकिन किसानों की परेशानी बढ़ गई। एटा जिले में भी ऐसा ही मौसम रहा। 

शहरी क्षेत्र में शाम साढ़े पांच बजे तक बादल छाए रहे। इसके बाद तेज धूलभरी आंधी चलने लगी। लगभग आधे घंटे तक यहां आंधी चलती रही। इससे घरों से बाहर निकले लोग खुद को बचाने के लिए दुकानों व मकानों के बाहर शरण लिए नजर आए। कई मोहल्लों में टिनशेड भी आंधी में उड़ गए। हालांकि जल्द ही आंधी थम गई। इसके बाद अधिकतम तापमान 36 डिग्री सेल्सियस पर पहुंच गया, जिससे लोगों ने राहत की सांस ली। 

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खेतों में थ्रेसिंग के लिए रखे गेहूं के गट्ठर भींगे 

वर्तमान में गेहूं की फसल पककर तैयार है। इसकी थ्रेसिंग का काम चल रहा है। किसानों ने फसल की कटाई के बाद थ्रेसिंग के लिए गट्ठर बांधकर खेतों में रखे हुए हैं। बारिश के बाद ये गट्ठर भीग गए हैं। इससे थ्रेसिंग का काम रुक गया है। अगर मौसम साफ हो जाता है तो भी दो से तीन बाद ही गेहूं की थ्रेसिंग का काम शुरू हो सकेगा। 

उर्द, मूंग और मूंगफली में भी नुकसान 

खेतों में खड़ी उर्द, मूंग और मूंगफली की फसलों को भी ओलावृष्टि से नुकसान हुआ है। दरअसल ओले गिरने से इन फसलों के पत्ते या तो फट जाते हैं या फिर टूट जाते हैं। इससे फसल का विकास रुक जाता है। किसानों को इसके कारण नुकसान उठाना पड़ सकता है। हालांकि वास्तविक स्थिति कृषि विभाग के आंकलन के बाद ही स्पष्ट हो सकेगी।

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