इसी साल कनहर बांध के पूरा होते ही इन 11 गांव के सभी ग्रामीणों को अपना पुराना आशियाना छोड़ना होगा। उनके लिए अलग से विस्थापित क्षेत्र बसाया जा रहा है, जहां उनका नया पता और नई पहचान होगी।
वह जानते थे कि अब दोबारा अपने पैतृक गांव में उन्हें वोट देने का मौका नहीं मिलेगा, फिर भी वह नहीं चूके। सोमवार सुबह से ही बूथों पर डटकर प्रदेश का भविष्य चुनने के लिए डटे रहे। लंबी कतारों में लगकर महिलाओं-पुरुषों ने खूब वोट किया। उनका कहना था कि जो होने वाला है, उसे वह टाल नहीं सकते लेकिन कम से कम आगे के लिए वह बेहतर जनप्रतिनिधि चुनने में पीछे क्यों रहें।
हो सकता है कि वही उनका भाग्यविधाता बन जाए। कुछ ऐसे ही भावुक करने वाले दृश्य थे सोनभद्र के उन 11 गांवों के जो इसी साल कनहर बांध के पूरा होते ही अस्तित्व खो देंगे। विधानसभा चुनाव में अंतिम बार वोट करने वाले मतदाताओं के बीच जाकर उनकी हाल जानने की कोशिश की गई तो उन्होंने अपनी पीड़ा को खुलकर बताया।
भावुक होकर अपने मत का उपयोग किया और बोझिल कदमों के साथ लौटे। कनहर सिंचाई परियोजना के डूब क्षेत्र में आने वाले कोरची, सुंदरी, भिसुर, लांबी, सुगवामान, कुदरी, अमवार, गोहड़ा, रनदहटोला, बरखोहरा, बघाडू गांव यूपी की अंतिम विधानसभा सीट दुद्धी के अंतिम गांव भी हैं।
बांध पूरा होने के बाद यहां के सभी ग्रामीणों को अपना पुराना आशियाना छोड़ना होगा। उनके लिए अलग से विस्थापित क्षेत्र बसाया जा रहा है, जहां उनका नया पता और नई पहचान होगी। गांव का नाम उनके पते के सामने से हमेशा के लिए मिट जाएगा। अपना मूल छोड़ने की मायूसी हर चेहरे पर है। वह नई जगह बस तो जाएंगे लेकिन वर्षों से जिस गांव की पहचान के साथ जीते रहे हैं, वह अब उनके साथ नहीं रहेगा।
हम सब अलग हो जाएंगे, फिर साथ वोट कहां दे पाएंगे
भिसुर गांव निवासी 70 वर्षीय राजबली कहा कहना था कि हमारे सामने 1976 में बांध का निर्माण शुरू हुआ था। अब बुजुर्ग अवस्था में गांव को छोड़ना पड़ेगा। यह कहते हुए वह भावुक हो गए कि गांव छोड़ने में एक दर्द मिल रहा है। गांव में रहने वाले लोग सब अलग-अलग बस जाएंगे।
फिर एक साथ चलकर वोट देने का मौका कहां मिलेगा। इसी गांव के सोनाबच्चा ने कहा कि अपने गांव में किसानी कर कमाना खाना आसपास की भीड़ पशुओं के प्रेम ने जीवन में बहुत कुछ सिखाया है। आखिरी मतदान हमें झकझोर रहा है। गांव छोड़ने की तिथि नजदीक आ रही है, लेकिन विस्थापितों के लिए अभी सरकार सुविधाएं मुहैया नहीं करा पाई है। गांव छोड़ने से पहले आवासीय प्लाट, मकान सहित अन्य सुविधाएं देने का कार्य करेंगे तो ठीक रहेगा।
पहली बार मतदान करने वाले कोरची गांव निवासी अशोक कुमार और कमलेश ने कहा कि मेरा डूब क्षेत्र के कोरची गांव में पहला व आखिरी मतदान है। हमारे गांव न विकास का मुद्दा रहा न ही रोजगार का। यहां तो सिर्फ गांव छोड़ने को लेकर मुद्दा बना रहा। जब से होश संभाला है, विस्थापितों का मुद्दा देखने व समझने को मिला है।
यूपी, झारखंड और छत्तीसगढ़ की सीमा पर पिछले चार दशकों से बन रहा कनहर सिंचाई परियोजना को वर्ष 2022 में पूरा करने का लक्ष्य है। इसके लिए जोर-शोर से काम चल रहा है। फिलहाल यहां फाटक लगाए जा रहे हैं।
अपने गांव को बचाने के लिए यहां के लोगों ने खूब संघर्ष किया लेकिन किसी भी दल ने उनकी मदद नहीं की। यही कारण है कि चुनावी दौर में भी यहां कोई रौनक नहीं दिखी। गांव में किसी भी राजनीतिक दल की कोई चर्चा तक नहीं रही। ग्रामीण हर दल के लोगों से काफी खफा हैं। कोरची गांव के पूर्व प्रधान गंभीरा प्रसाद ने कहा कि 1976 से कनहर सिंचाई परियोजना का निर्माण कार्य हो रहा है लेकिन शासन-प्रशासन की लापरवाही से अभी तक हजारों विस्थापितों को मुआवजा नहीं मिल पाया है।
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वह जानते थे कि अब दोबारा अपने पैतृक गांव में उन्हें वोट देने का मौका नहीं मिलेगा, फिर भी वह नहीं चूके। सोमवार सुबह से ही बूथों पर डटकर प्रदेश का भविष्य चुनने के लिए डटे रहे। लंबी कतारों में लगकर महिलाओं-पुरुषों ने खूब वोट किया। उनका कहना था कि जो होने वाला है, उसे वह टाल नहीं सकते लेकिन कम से कम आगे के लिए वह बेहतर जनप्रतिनिधि चुनने में पीछे क्यों रहें।
हो सकता है कि वही उनका भाग्यविधाता बन जाए। कुछ ऐसे ही भावुक करने वाले दृश्य थे सोनभद्र के उन 11 गांवों के जो इसी साल कनहर बांध के पूरा होते ही अस्तित्व खो देंगे। विधानसभा चुनाव में अंतिम बार वोट करने वाले मतदाताओं के बीच जाकर उनकी हाल जानने की कोशिश की गई तो उन्होंने अपनी पीड़ा को खुलकर बताया।
भावुक होकर अपने मत का उपयोग किया और बोझिल कदमों के साथ लौटे। कनहर सिंचाई परियोजना के डूब क्षेत्र में आने वाले कोरची, सुंदरी, भिसुर, लांबी, सुगवामान, कुदरी, अमवार, गोहड़ा, रनदहटोला, बरखोहरा, बघाडू गांव यूपी की अंतिम विधानसभा सीट दुद्धी के अंतिम गांव भी हैं।