यूपी चुनाव: अखिलेश क्यों कर रहे 300 से ज्यादा सीटें जीतने का दावा? 10 बिंदुओं में समझें कारण

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सार

उत्तर प्रदेश समेत पांच राज्यों के चुनाव नतीजों का आज (10 मार्च) एलान होगा। ज्यादातर एग्जिट पोल्स में उत्तर प्रदेश में भाजपा की जीत का अनुमान जताया गया। वहीं, अखिलेश यादव ने 300 से अधिक सीटें जीतने का दावा किया है।

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देश के पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों के नतीजे आज (10 मार्च) घोषित होंगे, लेकिन हर किसी की नजर उत्तर प्रदेश पर टिकी हुई है। दरअसल, यूपी के लिए 14 अलग-अलग न्यूज चैनलों और एजेंसियों ने सोमवार (सात मार्च) को एग्जिट पोल जारी किए। इनमें से 11 सर्वे का अनुमान है कि सूबे में फिर से भाजपा सरकार बन सकती है। तीन एग्जिट पोल में समाजवादी पार्टी गठबंधन की सरकार बनने का दावा किया गया, जिनमें देशबंधु, आत्मसाक्षी ग्रुप और 4-पीएम का एग्जिट पोल शामिल है। हालांकि, किसी भी एग्जिट पोल में सपा गठबंधन तीन सौ सीटें जीतता नहीं दिखाया गया। 

उधर, तमाम एग्जिट पोल के विपरीत समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने अपना अलग दावा ठोंक दिया। अखिलेश ने कहा, ‘यूपी में समाजवादी पार्टी गठबंधन को 300 से ज्यादा सीटें मिलेंगी।’ अखिलेश की ये आस हवा में नहीं है। इसके पीछे कई कारण हैं, जिनको आधार मानकर सपा प्रमुख तमाम चैनलों के एग्जिट पोल को खारिज करके सपा सरकार बनाने का दावा कर रहे हैं।

 
1. भाजपा सरकार के खिलाफ एंटीकंबेंसी : चुनाव के दौरान पश्चिम से लेकर पूर्वांचल तक भाजपा सरकार के खिलाफ अलग-अलग कारणों से लोगों की नाराजगी देखने को मिली। पश्चिम में जहां, किसान आंदोलन, लखीमपुर खीरी कांड हावी रहा, वहीं पूर्वांचल में आवारा पशुओं और बेरोजगारी के मुद्दे पर अखिलेश यादव ने सरकार को खूब घेरा। गांव-गांव में समाजवादी पार्टी आवारा पशुओं का मुद्दा उठाते नजर आई।  

2. युवाओं की नाराजगी : पूर्वांचल में सरकारी भर्तियों को लेकर युवाओं में आक्रोश देखने को मिला। प्रयागराज में युवाओं पर लाठीचार्ज के बाद से अखिलेश यादव ने इसे बड़ा मुद्दा बनाया। कोरोना संकट के चलते सेना भर्ती में हो रही देरी पर भी सपा ने जोरदार तरीके से भाजपा सरकार को घेरने की कोशिश की। अखिलेश यादव और सपा गठबंधन के बड़े नेताओं ने तो यहां तक दावा कर दिया कि अगर उनकी सरकार बनती है तो वह सेना भर्ती भी निकालेंगे। जबकि, सेना भर्ती की प्रक्रिया में कहीं से भी राज्य सरकार की भूमिका नहीं होती है।  

3. लुभावना चुनावी घोषणा पत्र : समाजवादी पार्टी ने इस बार के घोषणा पत्र में सरकार से नाराज हर वर्ग को साधने की कोशिश की है। किसानों को सिंचाई के लिए मुफ्त बिजली, सभी के लिए तीन सौ यूनिट बिजली मुफ्त करना, बीएड-टेट अभ्यर्थियों की नौकरी, संविदा कर्मचारियों का समायोजन, शिक्षामित्रों को वापस सहायक अध्यापक का दर्जा देना, पुलिस कर्मचारियों को साप्ताहिक अवकाश देना, आशा और आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के मानदेय में वृद्धि जैसी कई बड़ी मांगों को पूरा करने का वादा इसमें शामिल है। 

4. पुरानी पेंशन की बहाली : अखिलेश यादव ने इस बार चुनावी घोषणा पत्र में पुरानी पेंशन की बहाली का भी वादा किया है। उत्तर प्रदेश में करीब 20 लाख सरकारी कर्मचारी हैं। ऐसे में सपा को अपने इस वादे से भी काफी उम्मीदें हैं। 

5. पश्चिम में आरएलडी का साथ : पश्चिमी यूपी में पिछली बार समाजवादी पार्टी कुछ खास नहीं कर पाई थी। इस बार सपा को राष्ट्रीय लोक दल और जयंत चौधरी का साथ मिल गया। आरएलडी की जाट और गुर्जरों में अच्छी पकड़ जानी जाती है। पश्चिमी यूपी में जाट और गुर्जरों की संख्या भी काफी अधिक है। वहीं, दूसरी ओर पश्चिमी यूपी के लोग किसान आंदोलन के चलते भाजपा सरकार से नाराज बताए जा रहे हैं। इसके उलट तमाम एग्जिट पोल में पश्चिमी यूपी में इस बार भी भाजपा को मजबूत बताया गया है। यही कारण है कि सपा प्रमुख अखिलेश यादव और आरएलडी मुखिया जयंत एग्जिट पोल को सिरे से खारिज कर रहे हैं। 

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6. पूर्वांचल में मिला राजभर का साथ : पूर्वांचल में इस बार समाजवादी पार्टी ने सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के साथ गठबंधन किया है। सुभासपा मुखिया ओम प्रकाश राजभर अपने समाज के वोटर्स के बीच अच्छी पकड़ रखते हैं। गाजीपुर, आजमगढ़, मऊ, जौनपुर, वाराणसी, बलिया, मिर्जापुर जैसे इलाकों में राजभर वोटर की संख्या काफी है। इसलिए अखिलेश यादव को उम्मीद है कि सपा और सुभासपा के गठबंधन से उन्हें फायदा मिलेगा। 

7. मुस्लिम वोटर्स से काफी उम्मीदें : अखिलेश को इस बार मुस्लिम वोटर्स से भी काफी उम्मीदें हैं। विपक्ष ने भाजपा सरकार को एंटी मुस्लिम बताने में कोई कसर नहीं छोड़ी। अखिलेश को उम्मीद है कि इसका फायदा भी समाजवादी पार्टी को मिलेगा। सपा नेताओं ने भी खुलकर दावा किया कि इस बार मुस्लिम वोटर्स नहीं बंटेंगे। सब एकजुट होकर सपा का साथ देंगे। सपा के एक नेता का कहना है कि हर बार मुस्लिम वोटर्स बसपा, कांग्रेस और सपा में बंट जाते थे। इस बार भाजपा को सत्ता से बाहर रखने के लिए ये सभी एकमुश्त सपा गठबंधन का साथ दे रहे हैं।  

8. ओबीसी वोटर्स को साधने के लिए छोटे दलों को साथ लाए : सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने इस बार गैर यादव ओबीसी वोटर्स पर भी काफी फोकस किया है। पटेल वोटर्स को साधने के लिए अखिलेश ने केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल की मां कृष्णा पटेल की पार्टी अपना दल (कमेरावादी) के साथ हाथ मिलाया। मौर्या वोटर्स के लिए महान दल के केशव देव मौर्य को अपने साथ ले आए। गुर्जर-जाट वोटर्स के लिए जयंत चौधरी और जनवादी सोशलिस्ट पार्टी के साथ गठबंधन कर लिया। 

9. चाचा को साथ लाए, ताकि वोट न बंटे : अखिलेश ने इस बार चाचा शिवपाल सिंह यादव को भी अलग से चुनाव नहीं लड़ने दिया। सपा नेताओं का मानना है कि इससे समाजवादी पार्टी का वोट भी नहीं बंटेगा। अगर शिवपाल अलग से चुनाव लड़ते तो सपा का वोट दो तरफ बंट सकता था। 

10. बसपा और कांग्रेस का कमजोर होना : राजनीतिक विश्लेषक प्रो. अजय कुमार सिंह कहते हैं कि इस बार बसपा ने उतनी दमदारी के साथ चुनाव नहीं लड़ा है, वहीं कांग्रेस आज भी काफी कमजोर है। समाजवादी पार्टी को इससे भी फायदा होने की उम्मीद है। सपा नेताओं का कहना है कि बसपा और कांग्रेस का कमजोर होने का मतलब है कि उनके वोटर्स समाजवादी पार्टी की तरफ ट्रांसफर हुए हैं।


 

विस्तार

देश के पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों के नतीजे आज (10 मार्च) घोषित होंगे, लेकिन हर किसी की नजर उत्तर प्रदेश पर टिकी हुई है। दरअसल, यूपी के लिए 14 अलग-अलग न्यूज चैनलों और एजेंसियों ने सोमवार (सात मार्च) को एग्जिट पोल जारी किए। इनमें से 11 सर्वे का अनुमान है कि सूबे में फिर से भाजपा सरकार बन सकती है। तीन एग्जिट पोल में समाजवादी पार्टी गठबंधन की सरकार बनने का दावा किया गया, जिनमें देशबंधु, आत्मसाक्षी ग्रुप और 4-पीएम का एग्जिट पोल शामिल है। हालांकि, किसी भी एग्जिट पोल में सपा गठबंधन तीन सौ सीटें जीतता नहीं दिखाया गया। 

उधर, तमाम एग्जिट पोल के विपरीत समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने अपना अलग दावा ठोंक दिया। अखिलेश ने कहा, ‘यूपी में समाजवादी पार्टी गठबंधन को 300 से ज्यादा सीटें मिलेंगी।’ अखिलेश की ये आस हवा में नहीं है। इसके पीछे कई कारण हैं, जिनको आधार मानकर सपा प्रमुख तमाम चैनलों के एग्जिट पोल को खारिज करके सपा सरकार बनाने का दावा कर रहे हैं।

 

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