यूपी निकाय चुनाव: कैसे लोकतंत्र के प्रहरी, अपनी सरकार चुनने में लापरवाह हैं शहरी, सर्वाधिक साक्षर शहरों में मतदान प्रतिशत बेहद कम

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People of cities are less aware for voting than village people.

प्रतीकात्मक तस्वीर।
– फोटो : अमर उजाला

विस्तार

यह शहरों की सरकार चुनने का समय है। शहरों में होने वाले इस चुनावी महोत्सव में वोटरों को लोकतंत्र का प्रहरी माना जाता है, पर लगभग आधे मतदाता चुनाव के इस महत्वपूर्ण दिन को सिर्फ छुट्टी के रूप में मनाते हैं। अपेक्षाकृत ज्यादा शिक्षित और जागरूक कहलाने वाले शहरी इस चुनाव को लेकर गंभीर नहीं हैं। लोकसभा, विधानसभा और त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के मुकाबले इस चुनाव में मतदान प्रतिशत कम रहता है।

चुनाव आयोग लगातार लोगों से अपील करता आ रहा है कि ज्यादा से ज्यादा मतदान करें। इस चुनाव में फिर से यह कवायद शुरू हो गई। कारण साफ है कि इस चुनाव में मतदाता रुचि कम दिखा रहे हैं। लोकसभा चुनाव 2019 को लेकर निर्वाचन आयोग ने बेहद गंभीरता दिखाई थी। इस चुनाव में 90 करोड़ से ज्यादा मतदाता थे जिनमें से 67.11 प्रतिशत ने अपने मत का प्रयोग किया था। पिछले साल प्रदेश में हुए विधानसभा चुनाव में वोटरों की संख्या 15 करोड़ के पार थी जिसमें से 60.61 प्रतिशत वोटरों ने वोट डाला।

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थोड़ी राहत यह भी थी कि इससे पहले वर्ष 2012 में हुए विधानसभा चुनाव के सापेक्ष इस मतदान में .53 प्रतिशत का इजाफा हुआ था। वर्ष 2012 में 61.14 प्रतिशत मतदान हुआ था। हालांकि उस समय वोटरों की संख्या लगभग 14.16 करोड़ ही थी। त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों में तो यह आंकड़ा 70 प्रतिशत के पार रहा था।

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अब नगर निकाय चुनाव पर नजर डालें जिसे लेकर वोटर गंभीर नहीं हैं। निकाय चुनाव 2017 में प्रदेश भर में तीन चरणों में मतदान हुआ था। पहले चरण में 24 जिलों में कुल 52.85 प्रतिशत मतदाताओं ने अपने मत का प्रयोग किया था। दूसरे चरण में 25 जिलों में मतदान हुआ पर मतदान प्रतिशत और गिर गया। कुल 48.65 प्रतिशत ही मतदान हो पाया। इस पर फिर से लोगों को जागरूक किया गया तो तीसरे चरण में 26 जिलों में चुनाव हुआ और मतदान प्रतिशत 58.65 प्रतिशत तक चला गया। पूरे प्रदेश के सभी चरणों में मतदान का प्रतिशत 54 से कम ही रह गया था।

82 प्रतिशत साक्षर थे, मतदान किया 38.7 प्रतिशत

पिछले चुनाव में कई निगम ऐसे रहे जहां पढ़े लिखे लोगों की संख्या ज्यादा थी, पर मतदान कम हुआ। लखनऊ में 82 प्रतिशत लोग साक्षर होने के बावजूद मतदान प्रतिशत मात्र 38.7 प्रतिशत रहा था। गाजियाबाद का मतदान प्रतिशत 45.10, प्रयागराज का 30.45 प्रतिशत ही था। ऐसे में इस बार यह चुनौती है कि कम से कम निगमों का मतदान प्रतिशत बढ़े। लोग इसके प्रति जागरूक हों और मतदान केंद्रों तक पहुंचें।

पंचायत चुनाव में तो 70 के पार

सबसे अहम वोटर त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के होते हैं। वर्ष 2021 में प्रदेश में हुए त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में 71.72 प्रतिशत मतदान हुआ था। सभी चरणों में मतदान 70 प्रतिशत के पार गया था ओर एक चरण में तो 73 प्रतिशत तक मतदान हुआ था। इस चुनाव में जिला पंचायत, क्षेत्र और ग्राम पंचायत में होने वाले इस चुनाव में वोटर जितनी गंभीरता दिखाते हैं इतनी यदि शहरी चुनाव में शहरी वोटर भी दिखाएं तो बेहतर परिणाम आएं।

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