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उत्तर प्रदेश बार काउंसिल की ओर से हर पांच वर्ष पर सभी वकीलों को सीओपी नंबर तथा नया प्रमाणपत्र जारी करने के लिए 500 रुपये शुल्क लेने का इलाहाबाद हाईकोर्ट सहित प्रदेश के तमाम जिलों के अधिवक्ताओं ने विरोध किया है। पांच वर्ष पहले सीओपी नंबर के साथ 100 रुपये शुल्क लेकर परिचय पत्र तथा प्रमाणपत्र जारी किया गया था। अधिवक्ता नवीनीकरण के नाम पर इस वर्ष 500 रुपये नाजायज वसूली का विरोध कर रहे हैं। बार एसोसिएशन के पूर्व संयुक्त सचिव प्रशासन संतोष कुमार मिश्र के नेतृत्व में वकीलों ने बार काउंसिल अध्यक्ष तथा सचिव को ज्ञापन देकर शुल्क कम करने की मांग की थी। अब अधिवक्ता शुल्क वसूली के औचित्य पर ही सवाल उठाया है।
अधिवक्ता कल्याण कोष में जमा धन से मदद करने के लिए महाधिवक्ता राघवेन्द्र सिंह से कोर्ट ने कहा तो उन्होंने धनराशि की कमी बताकर पल्ला झाड़ लिया। हाईकोर्ट ने फिर महाधिवक्ता से सरकार से पहल कर वकीलों को सहायता दिलाने की बात कही, किंतु मामला दबा रहा गया। वकीलों की मदद के लिए बार काउंसिल या सरकार सामने नहीं आई। हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने लगभग 800 वकीलों को केवल दो हजार रुपये की सहायता दी थी।
कहा जाता है कि वास्तविक वकीलों को ही बार काउंसिल का लाभ मिले इसके लिए सीओपी नंबर जारी किया जा रहा है ताकि वकालत न करने वाले वकील फायदा न लें सके। पूर्व महासचिव अशोक कुमार सिंह का कहना है कि सभी अधिवक्ता बार काउंसिल में पंजीकृत हैं। वकालत कर रहे वास्तविक अधिवक्ताओं का पता लगाने के लिए सभी से पिछले पांच वर्ष में हर वर्ष पांच मुकदमों की संख्या के साथ घोषणा मांगी जा सकती हैं।
हर पांच वर्ष पर नया प्रमाणपत्र व परिचय पत्र जारी करने की कोई आवश्यकता नहीं है। अधिवक्ता वेणु गोपाल, पारिजात तिवारी, सिद्धार्थ, दिलीप पांडेय, प्रखर श्रीवास्तव, यंग लायर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष संतोष कुमार त्रिपाठी, उपाध्यक्ष भानु देव पांडेय, आरपी तिवारी, अरविंद कुमार मिश्र, प्रशांत सिंह रिंकू ने सभी वकीलों से अपने जिलों में प्रत्येक बार एसोसिएशनों से सहयोग लेकर वसूली का विरोध करने को कहा है।
अधिवक्ता केशव प्रसाद शुक्ल का कहना है कि यदि हम सब अपनी एकजुटता दिखाते हुए पूरे प्रदेश के अधिवक्ताओं से निवेदन करें कि सब मिलकर इसका विरोध करेंगे एवं बार काउंसिल की ओर से सीओपी नवीनीकरण के नाम पर 500 रुपये की वसूली के विरोध में आवाज उठाएंगे।
समन्वय समिति के अध्यक्ष देवेंद्र प्रताप सिंह व राजस्व परिषद बार एसोसिएशन के पूर्व महासचिव विजय चंद्र श्रीवास्तव का कहना है कि बार काउंसिल के पास पूरे उत्तर प्रदेश के अधिवक्ताओं का डाटा उपलब्ध है और प्रत्येक बार एसोसिएशनों की सम्बद्धता नवीनीकरण के समय प्रत्येक वर्ष के सदस्यों की सूची बार काउंसिल में जमा की जाती है । सीओपी नवीनीकरण के लिए प्रत्येक बार एसोसिएशनों से उनके सदस्यों की लिस्ट मंगा सकते हैं। बेवजह 500 रुपये परिचय पत्र जारी करने के नाम पर वसूली औचित्यहीन है। अधिवक्ता अतुल पांडेय व अवधेश तिवारी ने सभी वकीलों से बार काउंसिल की बेतुकी वसूली योजना का बहिष्कार करने की अपील की है।
आजमगढ़ के वकीलों ने सभी बार संगठनों से विरोध में मांगा सहयोग
आजमगढ़ के अधिवक्ताओं ने कड़ा रूख अपनाते हुए विरोधी स्वर मुखर किए हैं। उन्होंने हड़ताल का आह्वान करते हुए सभी बार संगठनों से विरोध में सहयोग मांगा है। उनका मानना है कि कोरोना काल में हाईकोर्ट में अध्यक्ष मनन मिश्र के आश्वासन के अनुपालन में बार काउंसिल आफ इंडिया ने उत्तर प्रदेश बार काउंसिल को अधिवक्ताओं की सहायता के लिए एक करोड़ रुपये दिए थे। किंतु बार काउंसिल ने इस पैसे का क्या किया, इसकी कोई जानकारी सार्वजनिक नहीं की गई। न ही वकीलों के पंजीकरण से होने वाले आय-व्यय का लेखा जोखा ही सार्वजनिक किया जाता है।
विस्तार
उत्तर प्रदेश बार काउंसिल की ओर से हर पांच वर्ष पर सभी वकीलों को सीओपी नंबर तथा नया प्रमाणपत्र जारी करने के लिए 500 रुपये शुल्क लेने का इलाहाबाद हाईकोर्ट सहित प्रदेश के तमाम जिलों के अधिवक्ताओं ने विरोध किया है। पांच वर्ष पहले सीओपी नंबर के साथ 100 रुपये शुल्क लेकर परिचय पत्र तथा प्रमाणपत्र जारी किया गया था। अधिवक्ता नवीनीकरण के नाम पर इस वर्ष 500 रुपये नाजायज वसूली का विरोध कर रहे हैं। बार एसोसिएशन के पूर्व संयुक्त सचिव प्रशासन संतोष कुमार मिश्र के नेतृत्व में वकीलों ने बार काउंसिल अध्यक्ष तथा सचिव को ज्ञापन देकर शुल्क कम करने की मांग की थी। अब अधिवक्ता शुल्क वसूली के औचित्य पर ही सवाल उठाया है।
अधिवक्ता कल्याण कोष में जमा धन से मदद करने के लिए महाधिवक्ता राघवेन्द्र सिंह से कोर्ट ने कहा तो उन्होंने धनराशि की कमी बताकर पल्ला झाड़ लिया। हाईकोर्ट ने फिर महाधिवक्ता से सरकार से पहल कर वकीलों को सहायता दिलाने की बात कही, किंतु मामला दबा रहा गया। वकीलों की मदद के लिए बार काउंसिल या सरकार सामने नहीं आई। हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने लगभग 800 वकीलों को केवल दो हजार रुपये की सहायता दी थी।
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