राजनीति: धामी हार कर भी क्यों बने पीएम मोदी की पहली पसंद, क्या केशव प्रसाद मौर्य पर भी लागू होगा ये फॉर्मूला?

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सार

पुष्कर सिंह धामी 23 मार्च को परेड ग्राउंड में शपथ ग्रहण कर सकते हैं। शपथ ग्रहण के छह महीने के अंदर उन्हें किसी विधानसभा सीट से जीत हासिल कर विधायक बनना होगा। निर्दलीय विधायकों के साथ-साथ पार्टी के कई अन्य विधायकों ने भी धामी के पक्ष में अपनी सीट खाली करने का प्रस्ताव रखा है। अनुमान है कि वे डीडीहाट विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ सकते हैं…

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पुष्कर सिंह धामी दोबारा उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पद की कमान संभालेंगे। वे प्रदेश के 12वें मुख्यमंत्री होंगे। 21 मार्च को नवनिर्वाचित विधायकों की बैठक में उन्हें सर्वसम्मति से विधायक दल का नेता चुन लिया गया है। धामी 23 मार्च को परेड ग्राउंड में शपथ ग्रहण कर सकते हैं। मुख्यमंत्री के रूप में वे प्रधानमंत्री मोदी की पहली पसंद थे। विधायकों की बैठक के दौरान प्रमुख पर्यवेक्षक बन कर पहुंचे रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने मुख्यमंत्री के रूप में धामी के नाम का प्रस्ताव किया, जिसे सभी विधायकों ने सर्वसम्मति से स्वीकार कर लिया। केंद्र के इशारे को भांपते हुए पार्टी के किसी भी अन्य नेता ने मुख्यमंत्री पद पर अपनी दावेदारी नहीं ठोकी और धामी पर सहमति बन गई। अपनी सीट गंवाने के बाद भी भाजपा की जीत में अहम भूमिका निभाने का उन्हें ईनाम मिला है।

पुष्कर सिंह धामी 23 मार्च को परेड ग्राउंड में शपथ ग्रहण कर सकते हैं। शपथ ग्रहण के छह महीने के अंदर उन्हें किसी विधानसभा सीट से जीत हासिल कर विधायक बनना होगा। निर्दलीय विधायकों के साथ-साथ पार्टी के कई अन्य विधायकों ने भी धामी के पक्ष में अपनी सीट खाली करने का प्रस्ताव रखा है। अनुमान है कि वे डीडीहाट विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ सकते हैं। हालांकि, यह भाजपा की एक नई संस्कृति ही कही जा सकती है, जहां हारे हुए उम्मीदवार को भी दोबारा मुख्यमंत्री बनने का अवसर दिया जा रहा है। 2017 के हिमाचल प्रदेश के चुनाव में अपना चुनाव हारने के कारण प्रेम सिंह धूमल मुख्यमंत्री बनने से चूक गए थे और जयराम ठाकुर की किस्मत चमक गई थी।  

क्यों बाजीगर बने पुष्कर सिंह धामी?

दरअसल, उत्तराखंड में पहली बार किसी सत्ताधारी पार्टी ने राज्य में दोबारा अपनी सरकार बनाने में सफलता पाई है। पार्टी को राज्य की सत्ता में दोबारा वापस लाने में प्रधानमंत्री मोदी की भूमिका सबसे ऊपर मानी जा रही है, लेकिन इसके साथ ही पुष्कर सिंह धामी ने पूरे चुनाव प्रचार में जबरदस्त भूमिका निभाई और पार्टी नेताओं के बीच अपनी काम करने वाले नेता के रूप में छवि बनाई। उन्हें मुख्यमंत्री के रूप में लगभग छह महीने का ही समय मिला, लेकिन इसके बाद भी वे बेहद काम करने वाले नेता के रूप में अपनी छाप छोड़ने में कामयाब रहे। उन्हें इसका लाभ मिला।

अगली पीढ़ी का नेतृत्व विकसित करना चाहती है पार्टी

भाजपा उत्तराखंड में अगली पीढ़ी का नेतृत्व विकसित करना चाहती है। राज्य के दूसरे नेता मदन कौशिक, त्रिवेंद्र सिंह रावत, भुवन चंद्र खंडूरी, सतपाल महाराज और रमेश पोखरियाल निशंक उम्रदराज हो रहे हैं, जबकि पार्टी राज्य में लंबे समय की राजनीति को ध्यान में रखकर नए चेहरे पर दांव खेलना चाहती थी। पुष्कर सिंह धामी को इसी आधार पर पिछली बार सत्ता सौंपी गई थी। माना जा रहा है कि वे तेज-तर्रार काम कर अपनी छवि एक मजबूत नेता के रूप में बनाने में सफल रहे जिसका उन्हें लाभ मिला।

बेहद मिलनसार हैं धामी

वे बेहद विनम्र स्वभाव के हैं और पार्टी के हर कार्यकर्ता की पहुंच में माने जाते हैं। चुनाव प्रचार के दौरान भी वे लगातार पार्टी कार्यकर्ताओं से मिलकर उनकी ऊर्जा का भरपूर उपयोग करते रहे। उनकी इस कार्यकुशलता से पार्टी को लाभ मिला। उनके इस गुण को देखकर पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने उन पर अपना भरोसा जताया है।

सबका साथ मिला

पुष्कर सिंह धामी को मुख्यमंत्री के रूप में सबका साथ मिला है। वे किसी गुटबाजी में नहीं पड़े, यह उनकी सबसे बड़ी विशेषता मानी जा रही है। खटीमा से चुनाव हारने के बाद भी उन्हें पार्टी के हर नेता का साथ मिला और सबने एक स्वर में उन्हें मुख्यमंत्री पद के सबसे योग्य बताया। माना जा रहा है कि केंद्र को इस फैसले तक पहुंचने में इस बहस ने भी साथ दिया।    

क्या केशव प्रसाद मौर्य को भी मिलेगा मौका?

पुष्कर सिंह धामी की तरह केशव प्रसाद मौर्य भी उत्तर प्रदेश में भाजपा के नए नेताओं में बेहद अच्छी छवि के नेता माने जाते हैं। इस विधानसभा चुनाव में भाजपा को दोबारा जीत तक ले जाने में उन्होंने अहम भूमिका निभाई है। माना जा रहा है कि पार्टी नेतृत्व उन्हें यूपी में पिछड़ी जाति के बड़े नेता के रूप में आगे बढ़ाना चाहता है। 2017, 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव और 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने पिछड़ी जातियों के बीच पार्टी का जनाधार मजबूत करने का काम किया है।

माना जा रहा है कि उन्हें भी धामी की तरह हार के बाद भी मंत्रिमंडल में शामिल किया जा सकता है। उन्हें दोबारा उपमुख्यमंत्री के रूप में जगह देकर भाजपा नेतृत्व पिछड़े वर्ग के मतदाताओं तक विशेष संदेश देने की कोशिश कर सकता है। वे सपा गठबंधन की उम्मीदवार पल्लवी पटेल से सिराथू से चुनाव हार गए थे।

यह भी पढ़ें -  बसपा प्रमुख एक्टिव : चुनाव हारने के बाद मायावती के निशाने पर सपा-भाजपा, 29 दिन में आठ बयान बताते हैं नई रणनीति

विस्तार

पुष्कर सिंह धामी दोबारा उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पद की कमान संभालेंगे। वे प्रदेश के 12वें मुख्यमंत्री होंगे। 21 मार्च को नवनिर्वाचित विधायकों की बैठक में उन्हें सर्वसम्मति से विधायक दल का नेता चुन लिया गया है। धामी 23 मार्च को परेड ग्राउंड में शपथ ग्रहण कर सकते हैं। मुख्यमंत्री के रूप में वे प्रधानमंत्री मोदी की पहली पसंद थे। विधायकों की बैठक के दौरान प्रमुख पर्यवेक्षक बन कर पहुंचे रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने मुख्यमंत्री के रूप में धामी के नाम का प्रस्ताव किया, जिसे सभी विधायकों ने सर्वसम्मति से स्वीकार कर लिया। केंद्र के इशारे को भांपते हुए पार्टी के किसी भी अन्य नेता ने मुख्यमंत्री पद पर अपनी दावेदारी नहीं ठोकी और धामी पर सहमति बन गई। अपनी सीट गंवाने के बाद भी भाजपा की जीत में अहम भूमिका निभाने का उन्हें ईनाम मिला है।

पुष्कर सिंह धामी 23 मार्च को परेड ग्राउंड में शपथ ग्रहण कर सकते हैं। शपथ ग्रहण के छह महीने के अंदर उन्हें किसी विधानसभा सीट से जीत हासिल कर विधायक बनना होगा। निर्दलीय विधायकों के साथ-साथ पार्टी के कई अन्य विधायकों ने भी धामी के पक्ष में अपनी सीट खाली करने का प्रस्ताव रखा है। अनुमान है कि वे डीडीहाट विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ सकते हैं। हालांकि, यह भाजपा की एक नई संस्कृति ही कही जा सकती है, जहां हारे हुए उम्मीदवार को भी दोबारा मुख्यमंत्री बनने का अवसर दिया जा रहा है। 2017 के हिमाचल प्रदेश के चुनाव में अपना चुनाव हारने के कारण प्रेम सिंह धूमल मुख्यमंत्री बनने से चूक गए थे और जयराम ठाकुर की किस्मत चमक गई थी।  

क्यों बाजीगर बने पुष्कर सिंह धामी?

दरअसल, उत्तराखंड में पहली बार किसी सत्ताधारी पार्टी ने राज्य में दोबारा अपनी सरकार बनाने में सफलता पाई है। पार्टी को राज्य की सत्ता में दोबारा वापस लाने में प्रधानमंत्री मोदी की भूमिका सबसे ऊपर मानी जा रही है, लेकिन इसके साथ ही पुष्कर सिंह धामी ने पूरे चुनाव प्रचार में जबरदस्त भूमिका निभाई और पार्टी नेताओं के बीच अपनी काम करने वाले नेता के रूप में छवि बनाई। उन्हें मुख्यमंत्री के रूप में लगभग छह महीने का ही समय मिला, लेकिन इसके बाद भी वे बेहद काम करने वाले नेता के रूप में अपनी छाप छोड़ने में कामयाब रहे। उन्हें इसका लाभ मिला।

अगली पीढ़ी का नेतृत्व विकसित करना चाहती है पार्टी

भाजपा उत्तराखंड में अगली पीढ़ी का नेतृत्व विकसित करना चाहती है। राज्य के दूसरे नेता मदन कौशिक, त्रिवेंद्र सिंह रावत, भुवन चंद्र खंडूरी, सतपाल महाराज और रमेश पोखरियाल निशंक उम्रदराज हो रहे हैं, जबकि पार्टी राज्य में लंबे समय की राजनीति को ध्यान में रखकर नए चेहरे पर दांव खेलना चाहती थी। पुष्कर सिंह धामी को इसी आधार पर पिछली बार सत्ता सौंपी गई थी। माना जा रहा है कि वे तेज-तर्रार काम कर अपनी छवि एक मजबूत नेता के रूप में बनाने में सफल रहे जिसका उन्हें लाभ मिला।

बेहद मिलनसार हैं धामी

वे बेहद विनम्र स्वभाव के हैं और पार्टी के हर कार्यकर्ता की पहुंच में माने जाते हैं। चुनाव प्रचार के दौरान भी वे लगातार पार्टी कार्यकर्ताओं से मिलकर उनकी ऊर्जा का भरपूर उपयोग करते रहे। उनकी इस कार्यकुशलता से पार्टी को लाभ मिला। उनके इस गुण को देखकर पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने उन पर अपना भरोसा जताया है।

सबका साथ मिला

पुष्कर सिंह धामी को मुख्यमंत्री के रूप में सबका साथ मिला है। वे किसी गुटबाजी में नहीं पड़े, यह उनकी सबसे बड़ी विशेषता मानी जा रही है। खटीमा से चुनाव हारने के बाद भी उन्हें पार्टी के हर नेता का साथ मिला और सबने एक स्वर में उन्हें मुख्यमंत्री पद के सबसे योग्य बताया। माना जा रहा है कि केंद्र को इस फैसले तक पहुंचने में इस बहस ने भी साथ दिया।    

क्या केशव प्रसाद मौर्य को भी मिलेगा मौका?

पुष्कर सिंह धामी की तरह केशव प्रसाद मौर्य भी उत्तर प्रदेश में भाजपा के नए नेताओं में बेहद अच्छी छवि के नेता माने जाते हैं। इस विधानसभा चुनाव में भाजपा को दोबारा जीत तक ले जाने में उन्होंने अहम भूमिका निभाई है। माना जा रहा है कि पार्टी नेतृत्व उन्हें यूपी में पिछड़ी जाति के बड़े नेता के रूप में आगे बढ़ाना चाहता है। 2017, 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव और 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने पिछड़ी जातियों के बीच पार्टी का जनाधार मजबूत करने का काम किया है।

माना जा रहा है कि उन्हें भी धामी की तरह हार के बाद भी मंत्रिमंडल में शामिल किया जा सकता है। उन्हें दोबारा उपमुख्यमंत्री के रूप में जगह देकर भाजपा नेतृत्व पिछड़े वर्ग के मतदाताओं तक विशेष संदेश देने की कोशिश कर सकता है। वे सपा गठबंधन की उम्मीदवार पल्लवी पटेल से सिराथू से चुनाव हार गए थे।

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