लखनऊ महापौर: टिकट के लिए दावेदारों में घमासान होना तय, अब अनारक्षित है सीट

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कुर्सी के लिए दावेदारों की दौड़।

कुर्सी के लिए दावेदारों की दौड़।
– फोटो : amar ujala

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नगर निगम चुनाव में किस दल से कौन लड़ेगा, यह तो अभी तय नहीं है। हालांकि, महापौर पद का आरक्षण अनारक्षित होने से इस बार दावेदारों की संख्या बढ़ना और इनके बीच घमासान होेना तय है। पिछले चुनाव में आरक्षण महिला था और तब 19 महिलाओं ने इलेक्शन लड़ा था। सीट महिला होने से पिछले चुनाव में प्रमुख पार्टियों के जो दावेदार शांत हो गए थे, वे भी इस बार टिकट के लिए खुलकर दावेदारी करेंगे। महापौर पद के आरक्षण की घोषणा होते हुए दावेदार सक्रिय हो गए हैं।

महापौर पद के लिए भाजपा, सपा और कांग्रेस में सबसे अधिक टिकट की दावेदारी भाजपा में है। इसकी वजह यह है कि 15 सालों से इस सीट पर भाजपा का कब्जा है। 110 वार्डों में सबसे अधिक पार्षद भी इसी पार्टी के ही जीतते आ रहे हैं। पिछला रिकॉर्ड देखें तो भाजपा के स्वर्गीय डॉ. एससी राय और डॉ. दिनेश शर्मा लगातार दो बार महापौर रहे। पिछली बार सीट महिला होने पर पार्टी ने संयुक्ता भाटिया को लड़ाया था, जो जीती भी थीं। सपा ने मीरा वर्धन, कांग्रेस ने प्रेमा अवस्थी और बसपा ने बुलबुल गोदियाल को इनके खिलाफ चुनाव लड़ाया था।

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प्रमुख दलों में मेयर पद के प्रमुख दावेदार
भाजपा : महापौर पद पर भाजपा से सबसे मजबूत दावेदारी मौजूदा महापौर संयुक्ता भाटिया की मानी जा रही है। वह दोबारा चुनाव लड़ने की बात भी खुलकर कर चुकी हैं। राजधानी के सांसद प्रतिनिधि व पूर्व आईएएस अधिकारी दिवाकर त्रिपाठी का नाम पिछली बार भी आरक्षण जारी होने से पहले उछला था। इस बार फिर उनके नाम को लेकर चर्चा शुरू हो गई है। दिलचस्प यह है कि उनके भाई और यूपी रिमोट सेंसिंग एप्लीकेशन सेंटर के चेयरमैन सुधाकर त्रिपाठी का भी नाम राजनाथ सिंह से मुलाकात के बाद चर्चा में है। कैंट क्षेत्र के पूर्व विधायक सुरेश तिवारी, पूर्व पार्षद गोविंद पांडेय, मध्य विधानसभा क्षेत्र से इसी साल चुनाव लड़ने वाले पार्षद रजनीश गुप्ता, पूर्व एमएलसी स्वर्गीय राघवराम मिश्रा के पुत्र सुनील मिश्रा भी दावेदारी कर रहे हैं। चार बार पार्षद रहे हरशरण लाल गुप्ता भी दावेदारी कर रहे हैं। रियल एस्टेट कारोबारी और पूर्व मेयर अखिलेश दास के बेटे विराज सागर दास के भी भाजपा से चुनाव लड़ने की चर्चा गर्म है। 

कांग्रेस: इस पार्टी से गिरीश मिश्रा, हाल ही में पार्टी में शामिल हुए बड़े कारोबारी राजेश कुमार जायसवाल, प्रदेश कांग्रेस कमेटी में कोषाध्यक्ष शिव पांडेय, महासचिव प्रदेश कांग्रेस महासचिव आरपी सिंह, प्रदेश कांग्रेस कमेटी के पूर्व कोषाध्यक्ष मो. नईम का नाम चल रहा है।

सपा: आरक्षण तय होने से पहले सपा ने प्रत्याशियों को तीन श्रेणियों में बांट रखा था। पहली में सामान्य वर्ग, दूसरी में ओबीसी और तीसरी में अनुसूचित जाति के नेताओं को रखा था। सामान्य वर्ग में निवर्तमान नगर अध्यक्ष सुशील दीक्षित का नाम था। विधानसभा चुनाव में कैंट सीट से टिकट न मिल पाने के बाद अब उन्होंने मेयर पद के लिए नाम रखा है। वहीं, पिछली बार मेयर पद की प्रत्याशी रहीं मीरा वर्धन फिर से दावेदारी ठोंक रही हैं। तीसरा नाम पार्टी की महिला मोर्चा की राष्ट्रीय अध्यक्ष जूही सिंह का है। डिंपल यादव से नजदीकी और पार्टी में सक्रियता के चलते उनका दावा मजबूत है। नवीन धवन बंटी भी टिकट मांग रहे हैं। अन्य पिछड़ा वर्ग की श्रेणी में राष्ट्रीय प्रवक्ता डॉ. आशुतोष वर्मा के साथ प्रमोद चौधरी के नाम चल रहे हैं। अनुसूचित जाति वर्ग में शिल्पी चौधरी का नाम मजबूती है। उधर, प्रसपा के प्रदेश महासचिव अजय त्रिपाठी मुन्ना भी मेयर पद के लिए राजधानी में सक्रिय दिख रहे हैं। 

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नगर निगम चुनाव में किस दल से कौन लड़ेगा, यह तो अभी तय नहीं है। हालांकि, महापौर पद का आरक्षण अनारक्षित होने से इस बार दावेदारों की संख्या बढ़ना और इनके बीच घमासान होेना तय है। पिछले चुनाव में आरक्षण महिला था और तब 19 महिलाओं ने इलेक्शन लड़ा था। सीट महिला होने से पिछले चुनाव में प्रमुख पार्टियों के जो दावेदार शांत हो गए थे, वे भी इस बार टिकट के लिए खुलकर दावेदारी करेंगे। महापौर पद के आरक्षण की घोषणा होते हुए दावेदार सक्रिय हो गए हैं।

महापौर पद के लिए भाजपा, सपा और कांग्रेस में सबसे अधिक टिकट की दावेदारी भाजपा में है। इसकी वजह यह है कि 15 सालों से इस सीट पर भाजपा का कब्जा है। 110 वार्डों में सबसे अधिक पार्षद भी इसी पार्टी के ही जीतते आ रहे हैं। पिछला रिकॉर्ड देखें तो भाजपा के स्वर्गीय डॉ. एससी राय और डॉ. दिनेश शर्मा लगातार दो बार महापौर रहे। पिछली बार सीट महिला होने पर पार्टी ने संयुक्ता भाटिया को लड़ाया था, जो जीती भी थीं। सपा ने मीरा वर्धन, कांग्रेस ने प्रेमा अवस्थी और बसपा ने बुलबुल गोदियाल को इनके खिलाफ चुनाव लड़ाया था।

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प्रमुख दलों में मेयर पद के प्रमुख दावेदार

भाजपा : महापौर पद पर भाजपा से सबसे मजबूत दावेदारी मौजूदा महापौर संयुक्ता भाटिया की मानी जा रही है। वह दोबारा चुनाव लड़ने की बात भी खुलकर कर चुकी हैं। राजधानी के सांसद प्रतिनिधि व पूर्व आईएएस अधिकारी दिवाकर त्रिपाठी का नाम पिछली बार भी आरक्षण जारी होने से पहले उछला था। इस बार फिर उनके नाम को लेकर चर्चा शुरू हो गई है। दिलचस्प यह है कि उनके भाई और यूपी रिमोट सेंसिंग एप्लीकेशन सेंटर के चेयरमैन सुधाकर त्रिपाठी का भी नाम राजनाथ सिंह से मुलाकात के बाद चर्चा में है। कैंट क्षेत्र के पूर्व विधायक सुरेश तिवारी, पूर्व पार्षद गोविंद पांडेय, मध्य विधानसभा क्षेत्र से इसी साल चुनाव लड़ने वाले पार्षद रजनीश गुप्ता, पूर्व एमएलसी स्वर्गीय राघवराम मिश्रा के पुत्र सुनील मिश्रा भी दावेदारी कर रहे हैं। चार बार पार्षद रहे हरशरण लाल गुप्ता भी दावेदारी कर रहे हैं। रियल एस्टेट कारोबारी और पूर्व मेयर अखिलेश दास के बेटे विराज सागर दास के भी भाजपा से चुनाव लड़ने की चर्चा गर्म है। 

कांग्रेस: इस पार्टी से गिरीश मिश्रा, हाल ही में पार्टी में शामिल हुए बड़े कारोबारी राजेश कुमार जायसवाल, प्रदेश कांग्रेस कमेटी में कोषाध्यक्ष शिव पांडेय, महासचिव प्रदेश कांग्रेस महासचिव आरपी सिंह, प्रदेश कांग्रेस कमेटी के पूर्व कोषाध्यक्ष मो. नईम का नाम चल रहा है।

सपा: आरक्षण तय होने से पहले सपा ने प्रत्याशियों को तीन श्रेणियों में बांट रखा था। पहली में सामान्य वर्ग, दूसरी में ओबीसी और तीसरी में अनुसूचित जाति के नेताओं को रखा था। सामान्य वर्ग में निवर्तमान नगर अध्यक्ष सुशील दीक्षित का नाम था। विधानसभा चुनाव में कैंट सीट से टिकट न मिल पाने के बाद अब उन्होंने मेयर पद के लिए नाम रखा है। वहीं, पिछली बार मेयर पद की प्रत्याशी रहीं मीरा वर्धन फिर से दावेदारी ठोंक रही हैं। तीसरा नाम पार्टी की महिला मोर्चा की राष्ट्रीय अध्यक्ष जूही सिंह का है। डिंपल यादव से नजदीकी और पार्टी में सक्रियता के चलते उनका दावा मजबूत है। नवीन धवन बंटी भी टिकट मांग रहे हैं। अन्य पिछड़ा वर्ग की श्रेणी में राष्ट्रीय प्रवक्ता डॉ. आशुतोष वर्मा के साथ प्रमोद चौधरी के नाम चल रहे हैं। अनुसूचित जाति वर्ग में शिल्पी चौधरी का नाम मजबूती है। उधर, प्रसपा के प्रदेश महासचिव अजय त्रिपाठी मुन्ना भी मेयर पद के लिए राजधानी में सक्रिय दिख रहे हैं। 



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