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सार
सर्वोच्च न्यायालय में वरिष्ठ वकील एमआर शमशाद ने अमर उजाला से कहा कि किसी भी धर्म की ऐसी कार्रवाई का समर्थन नहीं किया जाना चाहिए, जिससे समाज के अन्य लोगों को परेशानी होने लगे। इस अर्थ में मंदिर हों या मस्जिद, किसी भी धार्मिक स्थल पर तेज आवाज में बजने वाले लाउडस्पीकर को सही नहीं कहा जा सकता…
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जिस समय देश के अलग-अलग हिस्सों में धार्मिक स्थलों पर लाउडस्पीकर लगाने पर विवाद बढ़ रहा है, उसी समय यूपी सरकार ने प्रदेश के विभिन्न धार्मिक स्थलों से 21,963 लाउडस्पीकर हटाने का काम किया है। योगी आदित्यनाथ के एक आदेश के बाद कार्रवाई करते हुए अब तक 52 हजार से ज्यादा लाउडस्पीकरों की ध्वनि सीमा घटाई जा चुकी है। 30 हजार धर्मगुरुओं से बातचीत कर पुलिस प्रशासन ने एक ऐसे फैसले को बेहद शांतिपूर्ण तरीके से लागू कराने में सफलता पाई है, जिसके लागू होने पर मुस्लिम समुदाय से विरोध होने की आशंका जताई जा रही थी।
इस फैसले को लागू करने में सबसे अच्छी बात यह देखी गई कि हिंदू-मुसलमान समेत सभी धर्म के लोगों ने अपने धार्मिक स्थलों से लाउडस्पीकर स्वयं हटाने का काम किया। कुछ जगहों पर पुलिस प्रशासन की मदद से लाउडस्पीकरों को हटाया गया। लेकिन इस पूरे फैसले को लागू कराने में कहीं कोई विरोध नहीं हुआ और किसी तरह की कोई अड़चन नहीं आई। हर समुदाय से समर्थन के बिना यह नहीं हो सकता था। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि योगी आदित्यनाथ सरकार ने अल्पसंख्यकों का भरोसा कैसे जीता? विशेषकर यह देखते हुए कि उनके कुछ फैसलों को अल्पसंख्यक समुदाय के विरूद्ध देखा जाता रहा है।
योगी ने साबित की अपनी विश्वसनीयता
उन्होंने कहा कि एक अपराधी समाज के हर वर्ग, हर समुदाय के लोगों के लिए केवल अपराधी होता है। वह अपराध करते समय केवल अपना लाभ देखता है और उसके लिए किसी व्यक्ति का उसके धर्म का होना कोई महत्त्व नहीं रखता। यही कारण है कि अपराधियों पर कार्रवाई होने पर समाज के सभी वर्गों के लोग खुश हुए, जबकि विपक्षी दलों के द्वारा मीडिया में यही प्रचारित किया जा रहा था कि उक्त फैसला एक वर्ग विशेष के खिलाफ है।
‘योगी मॉडल’ ने दिखाई शांतिपूर्ण सहअस्तित्व की राह
भाजपा नेता ने कहा कि मुस्लिम समुदाय के मन में विपक्षी दलों द्वारा अब तक यही संदेह पैदा किया जाता रहा था कि भाजपा या मोदी-योगी की सरकार उनके साथ नहीं है। उनके कार्य किसी वर्ग के खिलाफ तो किसी वर्ग के साथ हैं। लेकिन जिस तरह मंदिरों-मस्जिदों समेत सभी धार्मिक स्थलों से लाउडस्पीकर हटाए गए हैं, उससे साबित हुआ है कि सरकार जनहित के मुद्दों पर किसी वर्ग के साथ पक्षपात नहीं कर रही है। उन्होंने कहा कि ‘योगी मॉडल’ ने देश को एक राह दिखाई है जिसमें सभी समाज शांतिपूर्ण सहअस्तित्व की भावना के साथ रह सकते हैं और विकास के पथ पर आगे बढ़ सकते हैं।
भेदभाव न हो तो बेहतरीन कदम
सर्वोच्च न्यायालय में वरिष्ठ वकील एमआर शमशाद ने अमर उजाला से कहा कि किसी भी धर्म की ऐसी कार्रवाई का समर्थन नहीं किया जाना चाहिए, जिससे समाज के अन्य लोगों को परेशानी होने लगे। इस अर्थ में मंदिर हों या मस्जिद, किसी भी धार्मिक स्थल पर तेज आवाज में बजने वाले लाउडस्पीकर को सही नहीं कहा जा सकता। यदि सरकार सभी धार्मिक समुदाय के लोगों से समान व्यवहार करे और शादी-विवाह, धार्मिक कार्यक्रम या अन्य अवसरों पर समान तरीके से शोर न करने का नियम लागू करे तो इसका स्वागत किया जाना चाहिए।
मुस्लिमों के मन से दूर हो ये संदेह
एडवोकेट एमआर शमशाद ने कहा कि मुसलमानों के मन में देश के शासन-प्रशासन और पुलिस के प्रति गहरा संदेह है। उन्हें लगता है कि कार्रवाई करते समय मुसलमानों को जबरदस्ती निशाना बनाया जाता है। यह संदेह किसी सरकारी योजना के प्रति उनके मन में अविश्वास पैदा करती है। लेकिन यदि सरकार अल्पसंख्यकों के मन से संहेद दूर करने की कोशिश करे, तो सभी वर्गों से उसके नेक कार्यों में सहयोग मिलेगा और इससे हम एक बेहतर समाज की ओर आगे बढ़ सकेंगे।
जुमे की नमाज से निकले शांति का संदेश
विश्व हिंदू परिषद के राष्ट्रीय प्रवक्ता विनोद बंसल ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय ने 2005 में लाउडस्पीकर की ध्वनि सीमा निश्चित करने के आदेश दिए थे। लेकिन 17 सालों से अब तक कोई भी सरकार सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश को लागू कराने की हिम्मत नहीं कर पाई थी। उन्होंने कहा कि योगी आदित्यनाथ सरकार को इस बात के लिए धन्यवाद दिया जाना चाहिए कि 17 साल बाद उन्होंने बेहद सफलतापूर्वक सर्वोच्च न्यायालय का आदेश लागू कराया और इसके विरोध में कोई आवाज नहीं उठी। विनोद बंसल ने कहा कि शुक्रवार को रमजान महीने की अंतिम नमाज अदा की जानी है। इस अवसर पर सभी मस्जिदों से मौलानाओं को यही संदेश देना चाहिए कि पूरे समुदाय को शांतिपूर्ण तरीके से रहना चाहिए। इसके लिए सभी धर्मों के लोगों की भावनाओं का सम्मान किया जाना चाहिए।
विस्तार
जिस समय देश के अलग-अलग हिस्सों में धार्मिक स्थलों पर लाउडस्पीकर लगाने पर विवाद बढ़ रहा है, उसी समय यूपी सरकार ने प्रदेश के विभिन्न धार्मिक स्थलों से 21,963 लाउडस्पीकर हटाने का काम किया है। योगी आदित्यनाथ के एक आदेश के बाद कार्रवाई करते हुए अब तक 52 हजार से ज्यादा लाउडस्पीकरों की ध्वनि सीमा घटाई जा चुकी है। 30 हजार धर्मगुरुओं से बातचीत कर पुलिस प्रशासन ने एक ऐसे फैसले को बेहद शांतिपूर्ण तरीके से लागू कराने में सफलता पाई है, जिसके लागू होने पर मुस्लिम समुदाय से विरोध होने की आशंका जताई जा रही थी।
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इस फैसले को लागू करने में सबसे अच्छी बात यह देखी गई कि हिंदू-मुसलमान समेत सभी धर्म के लोगों ने अपने धार्मिक स्थलों से लाउडस्पीकर स्वयं हटाने का काम किया। कुछ जगहों पर पुलिस प्रशासन की मदद से लाउडस्पीकरों को हटाया गया। लेकिन इस पूरे फैसले को लागू कराने में कहीं कोई विरोध नहीं हुआ और किसी तरह की कोई अड़चन नहीं आई। हर समुदाय से समर्थन के बिना यह नहीं हो सकता था। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि योगी आदित्यनाथ सरकार ने अल्पसंख्यकों का भरोसा कैसे जीता? विशेषकर यह देखते हुए कि उनके कुछ फैसलों को अल्पसंख्यक समुदाय के विरूद्ध देखा जाता रहा है।
योगी ने साबित की अपनी विश्वसनीयता
उत्तर प्रदेश भाजपा के नेता अभिजात मिश्रा ने अमर उजाला से कहा कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने शासन-प्रशासन से यह साबित किया है कि उनके कार्य पूरे प्रदेश और पूरे समाज के हित में हैं। आज प्रदेश की जनता अपनी आंखों से यह देख रही है कि बिना जाति-धर्म देखे अपराधियों पर कार्रवाई हो रही है तो बिना जाति-धर्म देखे हर जरूरतमंद तक कल्याणकारी योजनाओं का लाभ पहुंचाया जा रहा है। इससे सरकार के प्रति मुस्लिम समुदाय के लोगों का भ्रम दूर हुआ है।
उन्होंने कहा कि एक अपराधी समाज के हर वर्ग, हर समुदाय के लोगों के लिए केवल अपराधी होता है। वह अपराध करते समय केवल अपना लाभ देखता है और उसके लिए किसी व्यक्ति का उसके धर्म का होना कोई महत्त्व नहीं रखता। यही कारण है कि अपराधियों पर कार्रवाई होने पर समाज के सभी वर्गों के लोग खुश हुए, जबकि विपक्षी दलों के द्वारा मीडिया में यही प्रचारित किया जा रहा था कि उक्त फैसला एक वर्ग विशेष के खिलाफ है।
‘योगी मॉडल’ ने दिखाई शांतिपूर्ण सहअस्तित्व की राह
भाजपा नेता ने कहा कि मुस्लिम समुदाय के मन में विपक्षी दलों द्वारा अब तक यही संदेह पैदा किया जाता रहा था कि भाजपा या मोदी-योगी की सरकार उनके साथ नहीं है। उनके कार्य किसी वर्ग के खिलाफ तो किसी वर्ग के साथ हैं। लेकिन जिस तरह मंदिरों-मस्जिदों समेत सभी धार्मिक स्थलों से लाउडस्पीकर हटाए गए हैं, उससे साबित हुआ है कि सरकार जनहित के मुद्दों पर किसी वर्ग के साथ पक्षपात नहीं कर रही है। उन्होंने कहा कि ‘योगी मॉडल’ ने देश को एक राह दिखाई है जिसमें सभी समाज शांतिपूर्ण सहअस्तित्व की भावना के साथ रह सकते हैं और विकास के पथ पर आगे बढ़ सकते हैं।
भेदभाव न हो तो बेहतरीन कदम
सर्वोच्च न्यायालय में वरिष्ठ वकील एमआर शमशाद ने अमर उजाला से कहा कि किसी भी धर्म की ऐसी कार्रवाई का समर्थन नहीं किया जाना चाहिए, जिससे समाज के अन्य लोगों को परेशानी होने लगे। इस अर्थ में मंदिर हों या मस्जिद, किसी भी धार्मिक स्थल पर तेज आवाज में बजने वाले लाउडस्पीकर को सही नहीं कहा जा सकता। यदि सरकार सभी धार्मिक समुदाय के लोगों से समान व्यवहार करे और शादी-विवाह, धार्मिक कार्यक्रम या अन्य अवसरों पर समान तरीके से शोर न करने का नियम लागू करे तो इसका स्वागत किया जाना चाहिए।
मुस्लिमों के मन से दूर हो ये संदेह
एडवोकेट एमआर शमशाद ने कहा कि मुसलमानों के मन में देश के शासन-प्रशासन और पुलिस के प्रति गहरा संदेह है। उन्हें लगता है कि कार्रवाई करते समय मुसलमानों को जबरदस्ती निशाना बनाया जाता है। यह संदेह किसी सरकारी योजना के प्रति उनके मन में अविश्वास पैदा करती है। लेकिन यदि सरकार अल्पसंख्यकों के मन से संहेद दूर करने की कोशिश करे, तो सभी वर्गों से उसके नेक कार्यों में सहयोग मिलेगा और इससे हम एक बेहतर समाज की ओर आगे बढ़ सकेंगे।
जुमे की नमाज से निकले शांति का संदेश
विश्व हिंदू परिषद के राष्ट्रीय प्रवक्ता विनोद बंसल ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय ने 2005 में लाउडस्पीकर की ध्वनि सीमा निश्चित करने के आदेश दिए थे। लेकिन 17 सालों से अब तक कोई भी सरकार सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश को लागू कराने की हिम्मत नहीं कर पाई थी। उन्होंने कहा कि योगी आदित्यनाथ सरकार को इस बात के लिए धन्यवाद दिया जाना चाहिए कि 17 साल बाद उन्होंने बेहद सफलतापूर्वक सर्वोच्च न्यायालय का आदेश लागू कराया और इसके विरोध में कोई आवाज नहीं उठी। विनोद बंसल ने कहा कि शुक्रवार को रमजान महीने की अंतिम नमाज अदा की जानी है। इस अवसर पर सभी मस्जिदों से मौलानाओं को यही संदेश देना चाहिए कि पूरे समुदाय को शांतिपूर्ण तरीके से रहना चाहिए। इसके लिए सभी धर्मों के लोगों की भावनाओं का सम्मान किया जाना चाहिए।
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