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टीबी के मरीज (सांकेतिक)
– फोटो : Social Media
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फेफड़े की टीबी (एक्सटेंसिव प्लमोनरी टीबी) मरीजों के लिए जानेलवा साबित हो रही है। इससे हर साल पांच से सात प्रतिशत मरीजों की जान जा रही है। चिंता की बात यह है कि इसके मरीज दोनों फेफड़े खराब होने के बाद बीआरडी में इलाज के लिए पहुंच रहे हैं।
वहीं, निजी चिकित्सकों के पास बलगम में खून (हिमोटिप्सिस) आने वाले टीबी के मरीज इलाज के लिए जा रहे हैं। इनकी संख्या भी लगातार बढ़ती जा रही है। बीआरडी मेडिकल कॉलेज के चेस्ट रोग विभागाध्यक्ष डॉ. अश्वनी मिश्रा ने बताया कि एमडीआर के मरीजों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है, जो चिंता का विषय है।
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हर साल 500 से 600 मरीज एमडीआर के बीआरडी में आ रहे हैं। इनमें 90 फीसदी मरीजों में फेफड़े की टीबी की शिकायत है। एक मरीज पर 12 से 18 माह की दवा पर तीन से चार लाख रुपये खर्च हो रहा है, जो बीआरडी में निशुल्क है।
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