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उन्नाव। जिले से निकली सई नदी को स्वच्छ बनाने की योजना सालों बाद भी परवान नहीं चढ़ सकी है। नदी को स्वच्छ बनाने के लिए इसके तटवर्ती 68 गांवों में सोख्ता टैंक व कंपोस्ट गड्ढे बनाए जाने थे। लेकिन अफसरों ने 12 गांवों की प्रोजेक्ट रिपोर्ट बनाकर काम बंद कर दिया। हाल ये है कि नदी में काई जम गई है। प्रदूषित जल होने से गांवों के किसान फसलों की सिंचाई भी नहीं कर पा रहे हैं।
2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नदियों को स्वच्छ व निर्मल बनाने का संकल्प लिया था। इसके लिए नमामि गंगे योजना शुरू की गई थी। इसमें दूसरे चरण में सई नदी को भी शामिल किया गया था। जिले में सई नदी के किनारे 68 ग्राम पंचायतें बसी हैं। गांवों का कचड़ा नदी में जाने से इसका पानी दूषित है। इसको देखते हुएगंदे पानी व ठोस अपशिष्ट के निस्तारण की गांव में ही व्यवस्था करने की कवायद शुरू की गई थी। घरों से निकलने वाले गंदे पानी के लिए घरेलू व सामुदायिक सोख्ता टैंक बनाए जाने थे।
योजना के तहत घरों का गंदा पानी सीधे टैंकों में भेजा जाना था। वहीं घर के निकलने वाले ठोस अपशिष्ट के लिए वर्मी कंपोस्ट (खाद) गड्ढे खोदे जाने थे। इन कार्यों पर होने वाले खर्च का डीपीआर बनाकर शासन को भेजना था। जून 2019 में डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट (डीपीआर) बनाने की कसरत शुरू हुई थी। लेकिन पूर्व में गंगा किनारे के 34 गांवों की डीपीआर को मंजूरी न मिलने से अधिकारियों ने मात्र 12 गांवों की ही प्रोजेक्ट रिपोर्ट बनाकर काम बंद कर दिया।
पहले होती थी सैकड़ों एकड़ फसलों की सिंचाई
हरदोई जिले से निकली सई नदी उन्नाव के कस्बा औरास व मोहान से होकर लखनऊ, रायबरेली और प्रतापगढ़ से गुजरकर सैकड़ों किमी दूर जौनपुर में गोमती नदी में मिली है। यह गोमती की प्रमुख सहायक नदी है। कभी यह नदी तटवर्ती सैकड़ों गांवों के लोगों के लिए जीवनदायिनी थी। इससे सैकड़ों एकड़ फसल की सिंचाई होती थी। लेकिन समय बीतने पर लोगों ने नदी के पानी में कूड़ा कचरा फेंकना शुरू कर दिया। गंदगी और प्रदूषण होने से नदी का वजूद खतरे में पड़ गया। गंदे पानी से सिंचाई संभव नहीं है।
नदी किनारे हैं ये ग्राम पंचायतें
– नवाबगंज ब्लाक की बजेहरा, हसनापुर, कोटवा, गोरेंदा, तेंदुवा हिरन कुद्दी, बाल्हेमऊ, सरौती।
– गंजमुराबाद की ब्योली इस्लामाबाद, रोशनाबाद, खाभामऊ, कैथौली व बेहटा मुजावर।
– बांगरमऊ की अरगूपुर, तमोरिया बुजुर्ग, गौरिया कला, ढोलौवा, कुरसठ ग्रामीण।
– हसनगंज की रसूलपुर बकिया, हसनगंज व ऊंचगांव।
– मियागंज की फखरुद्दीन मऊ, दरिहट, नेपालपुर, अहमदपुर टकटौली, पाठकपुर, बसोखा मुहम्मदपुर।
– हिलौली की चिलौली, रजवाड़ा, असरेंदा, करदहा, लउवासिंहनखेड़ा, तिसंधा, लहरामऊ व खानपुर।
– असोहा की पहाड़पुर, गोमापुर, बिलौरा, मझरिया, सरैया प्रचीन, भाउमऊ, सेमरी, उतरौरा, जबरेला व रामपुर।
– औरास की मिर्जापुर अजिगांव, इनायतपुर बर्रा, अलीपुर मिचलौला, उतरा डकौली, कबरोई, लोधाटिकुर, सरौंद, सैदापुर, पूराचांद व दिपवल।
गंगा किनारे के 34 गांवों में पहले काम होना था। वहां की डीपीआर बनाकर भेजी गई थी। जिसे मंजूरी नहीं मिली। इस कारण सई किनारे के गांवों में सोख्ता टैंक व वर्मी कंपोस्ट गड्ढे की डीपीआर रोक दी गई थी। अब शासन से जो भी आदेश मिलेगा, उसके अनुसार कार्रवाई की जाएगी।- निरीश चंद्र साहू, डीपीआरओ।
उन्नाव। जिले से निकली सई नदी को स्वच्छ बनाने की योजना सालों बाद भी परवान नहीं चढ़ सकी है। नदी को स्वच्छ बनाने के लिए इसके तटवर्ती 68 गांवों में सोख्ता टैंक व कंपोस्ट गड्ढे बनाए जाने थे। लेकिन अफसरों ने 12 गांवों की प्रोजेक्ट रिपोर्ट बनाकर काम बंद कर दिया। हाल ये है कि नदी में काई जम गई है। प्रदूषित जल होने से गांवों के किसान फसलों की सिंचाई भी नहीं कर पा रहे हैं।
2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नदियों को स्वच्छ व निर्मल बनाने का संकल्प लिया था। इसके लिए नमामि गंगे योजना शुरू की गई थी। इसमें दूसरे चरण में सई नदी को भी शामिल किया गया था। जिले में सई नदी के किनारे 68 ग्राम पंचायतें बसी हैं। गांवों का कचड़ा नदी में जाने से इसका पानी दूषित है। इसको देखते हुएगंदे पानी व ठोस अपशिष्ट के निस्तारण की गांव में ही व्यवस्था करने की कवायद शुरू की गई थी। घरों से निकलने वाले गंदे पानी के लिए घरेलू व सामुदायिक सोख्ता टैंक बनाए जाने थे।
योजना के तहत घरों का गंदा पानी सीधे टैंकों में भेजा जाना था। वहीं घर के निकलने वाले ठोस अपशिष्ट के लिए वर्मी कंपोस्ट (खाद) गड्ढे खोदे जाने थे। इन कार्यों पर होने वाले खर्च का डीपीआर बनाकर शासन को भेजना था। जून 2019 में डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट (डीपीआर) बनाने की कसरत शुरू हुई थी। लेकिन पूर्व में गंगा किनारे के 34 गांवों की डीपीआर को मंजूरी न मिलने से अधिकारियों ने मात्र 12 गांवों की ही प्रोजेक्ट रिपोर्ट बनाकर काम बंद कर दिया।
पहले होती थी सैकड़ों एकड़ फसलों की सिंचाई
हरदोई जिले से निकली सई नदी उन्नाव के कस्बा औरास व मोहान से होकर लखनऊ, रायबरेली और प्रतापगढ़ से गुजरकर सैकड़ों किमी दूर जौनपुर में गोमती नदी में मिली है। यह गोमती की प्रमुख सहायक नदी है। कभी यह नदी तटवर्ती सैकड़ों गांवों के लोगों के लिए जीवनदायिनी थी। इससे सैकड़ों एकड़ फसल की सिंचाई होती थी। लेकिन समय बीतने पर लोगों ने नदी के पानी में कूड़ा कचरा फेंकना शुरू कर दिया। गंदगी और प्रदूषण होने से नदी का वजूद खतरे में पड़ गया। गंदे पानी से सिंचाई संभव नहीं है।
नदी किनारे हैं ये ग्राम पंचायतें
– नवाबगंज ब्लाक की बजेहरा, हसनापुर, कोटवा, गोरेंदा, तेंदुवा हिरन कुद्दी, बाल्हेमऊ, सरौती।
– गंजमुराबाद की ब्योली इस्लामाबाद, रोशनाबाद, खाभामऊ, कैथौली व बेहटा मुजावर।
– बांगरमऊ की अरगूपुर, तमोरिया बुजुर्ग, गौरिया कला, ढोलौवा, कुरसठ ग्रामीण।
– हसनगंज की रसूलपुर बकिया, हसनगंज व ऊंचगांव।
– मियागंज की फखरुद्दीन मऊ, दरिहट, नेपालपुर, अहमदपुर टकटौली, पाठकपुर, बसोखा मुहम्मदपुर।
– हिलौली की चिलौली, रजवाड़ा, असरेंदा, करदहा, लउवासिंहनखेड़ा, तिसंधा, लहरामऊ व खानपुर।
– असोहा की पहाड़पुर, गोमापुर, बिलौरा, मझरिया, सरैया प्रचीन, भाउमऊ, सेमरी, उतरौरा, जबरेला व रामपुर।
– औरास की मिर्जापुर अजिगांव, इनायतपुर बर्रा, अलीपुर मिचलौला, उतरा डकौली, कबरोई, लोधाटिकुर, सरौंद, सैदापुर, पूराचांद व दिपवल।
गंगा किनारे के 34 गांवों में पहले काम होना था। वहां की डीपीआर बनाकर भेजी गई थी। जिसे मंजूरी नहीं मिली। इस कारण सई किनारे के गांवों में सोख्ता टैंक व वर्मी कंपोस्ट गड्ढे की डीपीआर रोक दी गई थी। अब शासन से जो भी आदेश मिलेगा, उसके अनुसार कार्रवाई की जाएगी।- निरीश चंद्र साहू, डीपीआरओ।
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