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ताजनगरी में प्रदूषित हवा के कारण लोग सांस रोग के मरीज बन रहे हैं। धूल-धुआं पहुंचने से फेफड़ों की कार्यक्षमता भी कम हो रही है। एसएन मेडिकल कॉलेज के वक्ष एवं क्षय रोग विभाग का अध्ययन बताता है कि यहां आने वाले मरीजों में से 18 फीसदी दूषित हवा की वजह से बीमार हुए। हवा की सेहत सुधारने के लिए गंभीर प्रयास नहीं किए गए तो आने वाले 10 वर्षों में मरीजों की संख्या दोगुनी हो जाएगी।
वक्ष एवं क्षय रोग विभाग के प्रोफेसर डॉ. गजेंद्र विक्रम सिंह ने बताया कि बीते एक साल में ओपीडी में आने वाले 405 मरीजों का अध्ययन किया गया। इसमें टीबी के 158, दमे के 78 मरीज, सांस रोग के 76 और फेफड़े के सिकुड़ने के 18 और बाकी मरीज अन्य परेशानी के रहे। इनमें से 81 मरीजों में धूल और धुएं के कारण बीमारी पनपी। ये फैक्टरी में काम करने वाले कर्मचारी, वाहन चालक और भवन निर्माण कार्य से जुडे़ मजदूर और दूषित हवा वाले क्षेत्र के रहने वाले लोग थे।
पूछताछ में पता लगा कि फैक्टरी में हवा की निकासी बेहतर न होने, वाहनों का धुआं, धूम्रपान और निर्माण कार्य के दौरान उड़ने वाली धूल के सूक्ष्म कण हैं। इनकी 70 फीसदी की उम्र 40 साल से अधिक की रही। धुआं पहुंचने के कारण फेफड़ों की कार्यक्षमता भी कम मिली।
10 वर्षों में दोगुना हुए मरीज
आगरा चेस्ट फिजीशियन एसोसिएशन के डॉ. संजीव लवानियां ने बताया कि बीते 10 वर्षों में वायु प्रदूषण से सांस रोग के मरीजों की संख्या दोगुना हो गई है। पहले ओपीडी में आने वालेे सांस रोग के मरीजों में से 90 फीसदी में धूम्रपान और 10 फीसदी में वायु प्रदूषण के कारण बीमारी मिलती थी। अब 80 फीसदी में कारण धूम्रपान और 20 फीसदी में वायु प्रदूषण हो गया है। वायु प्रदूषण से दमा और टीबी का मर्ज भी बिगड़ रहा है।
बिगड़ रहा है टीबी और दमे का मर्ज
एसएन के वक्ष एवं क्षय रोग विभागाध्यक्ष डॉ. संतोष कुमार ने बताया कि धुएं में कार्बन, कार्बन मोनोऑक्साइड समेत अन्य खतरनाक गैसें होती हैं। ये सांस के जरिये फेफड़ों में पहुंचतीं हैं। इससे टीबी और दमा के मरीजों की परेशानी बढ़ जाती है। मौसम बदलते वक्त, खासतौर से सर्दियों की शुरूआत में हवा में अधिक प्रदूषण होने के कारण टीबी के मरीजों में बलगम में खून, सांस रोगियों में सांस फूलना और दमा के मरीजों में जकड़न की समस्या बढ़ जाती है।
ये करें उपाय
- हवा को प्रदूषित करने वाले स्रोतों को सख्ती से बंद करें।
- फैक्टरी में हवा की निकासी के बेहतर इंतजाम किए जाएं।
- सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान करने वालों पर सख्ती बरती जाए।
- वाहनों की फिटनेस की सख्ती से जांच की जाए।
- निर्माण कार्य करते वक्त धूल-धुआं रोकने के लिए पुख्ता इंतजाम करें।
- लोग मास्क का उपयोग करें।
- पौष्टिक भोजन और मौसमी फलों का सेवन करें।
- नियमित सांस का व्यायाम और योग करें।
- जैसा कि डॉ. गजेंद्र विक्रम सिंह ने बताया
विस्तार
ताजनगरी में प्रदूषित हवा के कारण लोग सांस रोग के मरीज बन रहे हैं। धूल-धुआं पहुंचने से फेफड़ों की कार्यक्षमता भी कम हो रही है। एसएन मेडिकल कॉलेज के वक्ष एवं क्षय रोग विभाग का अध्ययन बताता है कि यहां आने वाले मरीजों में से 18 फीसदी दूषित हवा की वजह से बीमार हुए। हवा की सेहत सुधारने के लिए गंभीर प्रयास नहीं किए गए तो आने वाले 10 वर्षों में मरीजों की संख्या दोगुनी हो जाएगी।
वक्ष एवं क्षय रोग विभाग के प्रोफेसर डॉ. गजेंद्र विक्रम सिंह ने बताया कि बीते एक साल में ओपीडी में आने वाले 405 मरीजों का अध्ययन किया गया। इसमें टीबी के 158, दमे के 78 मरीज, सांस रोग के 76 और फेफड़े के सिकुड़ने के 18 और बाकी मरीज अन्य परेशानी के रहे। इनमें से 81 मरीजों में धूल और धुएं के कारण बीमारी पनपी। ये फैक्टरी में काम करने वाले कर्मचारी, वाहन चालक और भवन निर्माण कार्य से जुडे़ मजदूर और दूषित हवा वाले क्षेत्र के रहने वाले लोग थे।
पूछताछ में पता लगा कि फैक्टरी में हवा की निकासी बेहतर न होने, वाहनों का धुआं, धूम्रपान और निर्माण कार्य के दौरान उड़ने वाली धूल के सूक्ष्म कण हैं। इनकी 70 फीसदी की उम्र 40 साल से अधिक की रही। धुआं पहुंचने के कारण फेफड़ों की कार्यक्षमता भी कम मिली।
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