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देश की आजादी के लिए लड़ते हुए रानी सरोज गौरिहार जब जेल गईं तो उनकी उम्र महज 12-13 साल थी। वे सबसे कम उम्र की महिला क्रांतिकारी थीं और इनका काम आजादी के मतवालों के बीच गोपनीय सूचनाओं का आदान-प्रदान था। आगरा में विदेशी वस्त्रों के सफल बहिष्कार को देख पंडित मोतीलाल नेहरू ने भी इनकी सराहना की थी। रविवार को स्वतंत्रता सेनानी रानी सरोज गौरिहार के निधन की खबर मिली तो ताजनगरी में शोक की लहर दौड़ गई।
सरोज गौरिहार की भाभी किरन शर्मा ने बताया कि सरोज गौरिहार का जन्म चार नवंबर 1929 को पंडित जगन प्रसाद रावत और सत्यवती रावत के घर जन्म हुआ। इनके माता-पिता दोनों स्वतंत्रता सेनानी थे। अगस्त क्रांति के आह्वान पर सीनियर बालिका पाठशाला को बंद करवाया गया था। बात 1942 की है, ये कक्षा सात की छात्रा थीं और गर्ल्स गाइड थीं।
नहीं दी थी अंग्रेजी ध्वज को सलामी
उन्होंने यूनियन जैक के अंग्रेजी ध्वज को अपनी सहपाठियों के साथ सलामी देने से मना कर दिया। वह क्रांति दूत के तौर पर समाचार, संदेश और पत्रों का आदान-प्रदान करने लगीं। इससे क्रांतिकारियों को महत्वपूर्ण जानकारियां मिलने लगीं। अंग्रेजों के विरोध में जुलूस में भी भाग लेने लगीं। विलायती कपड़ों के विरोध में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया और लोगों को खादी पहनने के लिए प्रचार किया।
सरोज गौरिहार के योगदान पर ही 19 मई 1930 को पंडित मोतीलाल नेहरू ने आगरा में सभा करते हुए कहा कि भारत में आगरा ही पहला नगर है, जो विदेशी वस्त्रों पर प्रतिबंध लगाने में सफल हुआ। सामाजिक चेतना के प्रति भी सरोज गौरिहार सजग थीं और पर्दा प्रथा का पुरजोर विरोध किया। नशीले पदार्थ के प्रति भी लोगों में चेतना जगाई। स्वतंत्रता आंदोलन में महिलाओं और युवतियों को शामिल करने के लिए प्रेरित किया। फरवरी 1942 में मां सत्यवती रावत के साथ इनको अंग्रेजों ने जेल भेज दिया, 1943 में जेल से रिहा हुईं।
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देश की आजादी के लिए लड़ते हुए रानी सरोज गौरिहार जब जेल गईं तो उनकी उम्र महज 12-13 साल थी। वे सबसे कम उम्र की महिला क्रांतिकारी थीं और इनका काम आजादी के मतवालों के बीच गोपनीय सूचनाओं का आदान-प्रदान था। आगरा में विदेशी वस्त्रों के सफल बहिष्कार को देख पंडित मोतीलाल नेहरू ने भी इनकी सराहना की थी। रविवार को स्वतंत्रता सेनानी रानी सरोज गौरिहार के निधन की खबर मिली तो ताजनगरी में शोक की लहर दौड़ गई।
सरोज गौरिहार की भाभी किरन शर्मा ने बताया कि सरोज गौरिहार का जन्म चार नवंबर 1929 को पंडित जगन प्रसाद रावत और सत्यवती रावत के घर जन्म हुआ। इनके माता-पिता दोनों स्वतंत्रता सेनानी थे। अगस्त क्रांति के आह्वान पर सीनियर बालिका पाठशाला को बंद करवाया गया था। बात 1942 की है, ये कक्षा सात की छात्रा थीं और गर्ल्स गाइड थीं।
नहीं दी थी अंग्रेजी ध्वज को सलामी
उन्होंने यूनियन जैक के अंग्रेजी ध्वज को अपनी सहपाठियों के साथ सलामी देने से मना कर दिया। वह क्रांति दूत के तौर पर समाचार, संदेश और पत्रों का आदान-प्रदान करने लगीं। इससे क्रांतिकारियों को महत्वपूर्ण जानकारियां मिलने लगीं। अंग्रेजों के विरोध में जुलूस में भी भाग लेने लगीं। विलायती कपड़ों के विरोध में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया और लोगों को खादी पहनने के लिए प्रचार किया।
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