स्वास्थ्य केंद्रों में बाल रोग विशेषज्ञ नहीं, जिला अस्पताल में मरीजों की भीड़

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फोटो- 17
बढ़ रहे रोगी, बाल रोग विशेषज्ञ नहीं
– 17 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में 13 में तैनाती नहीं
संवाद न्यूज एजेंसी
उन्नाव। सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में बाल रोग विशेषज्ञ नहीं हैं। संक्रामक रोगों की चपेट में आने वालों में सबसे ज्यादा संख्या बच्चों की है। जिला अस्पताल में रोजाना औसतन 250 मरीज पहुंच रहे हैं। स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के मुताबिक जिले के 17 सीएचसी में से 13 में बाल रोग विशेषज्ञ ही नहीं है। तहसील व ब्लॉक क्षेत्र के लोगों को बच्चों को इलाज के लिए जिला अस्पताल या निजी अस्पताल जाना पड़ता है।
जिला अस्पताल में बच्चों के तीन डॉक्टरों की तैनाती है। एक-एक डॉक्टर 200 से 250 बच्चों की ओपीडी कर रहे हैं। वह भी सामान्य बुखार के मरीजों को दवा व जांच करा रहे हैं। अगर कोई बच्चा गंभीर है और उसे एनआईसीयू (नेशनल इंटेंसिव केयर यूनिट) की आवश्यकता पड़ती है तो उन्हें कानपुर या लखनऊ रेफर किया जाता है।
ये है स्वास्थ्य केंद्रों की स्थिति
पुरवा सीएचसी में चार माह से बाल रोग विशेषज्ञ नहीं हैं। मौरावां सीएचसी में भी बच्चों के डॉक्टर की तैनाती ही नहीं हुई। सफीपुर सीएचसी में तीन महीने व असोहा सीएचसी में पांच साल से बच्चों के डॉक्टर नहीं हैं। पाटन सीएचसी में पांच साल से, फतेहपुर चौरासी सीएचसी में चार साल से और मौरावां सीएचसी में भी दस साल से बाल रोग विशेषज्ञ तैनात नहीं है।
वर्जन
सीएमओ डॉ. सत्यप्रकाश ने बताया कि डॉक्टरों की तैनाती के लिए शासन को कई बार पत्र भेजे गए हैं। वहीं से डॉक्टरों की तैनाती होनी है।
बेटी को फायदा नहीं मिला
फोटो- 18
जिला अस्पताल आए बदरका के करौंदी गांव निवासी सुशील ने बताया कि बेटी शिवांगी के पेट में दर्द हो रहा है। कई बार अचलगंज सीएचसी गया। फायदा न मिलने पर दिखाने आया हूं।
फोटो- 19
जिला अस्पताल आए मुर्तजानगर निवासी दिनेश ने बताया की बेटी रेशमा को काफी दिनों से बुखार आ रहा है। निजी अस्पताल में डॉक्टर को दिखा रहे थे। इंफेक्शन बढ़ने की बात डॉक्टर ने बताई तो यहां चले आए।

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बढ़ रहे रोगी, बाल रोग विशेषज्ञ नहीं

– 17 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में 13 में तैनाती नहीं

संवाद न्यूज एजेंसी

उन्नाव। सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में बाल रोग विशेषज्ञ नहीं हैं। संक्रामक रोगों की चपेट में आने वालों में सबसे ज्यादा संख्या बच्चों की है। जिला अस्पताल में रोजाना औसतन 250 मरीज पहुंच रहे हैं। स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के मुताबिक जिले के 17 सीएचसी में से 13 में बाल रोग विशेषज्ञ ही नहीं है। तहसील व ब्लॉक क्षेत्र के लोगों को बच्चों को इलाज के लिए जिला अस्पताल या निजी अस्पताल जाना पड़ता है।

जिला अस्पताल में बच्चों के तीन डॉक्टरों की तैनाती है। एक-एक डॉक्टर 200 से 250 बच्चों की ओपीडी कर रहे हैं। वह भी सामान्य बुखार के मरीजों को दवा व जांच करा रहे हैं। अगर कोई बच्चा गंभीर है और उसे एनआईसीयू (नेशनल इंटेंसिव केयर यूनिट) की आवश्यकता पड़ती है तो उन्हें कानपुर या लखनऊ रेफर किया जाता है।

ये है स्वास्थ्य केंद्रों की स्थिति

पुरवा सीएचसी में चार माह से बाल रोग विशेषज्ञ नहीं हैं। मौरावां सीएचसी में भी बच्चों के डॉक्टर की तैनाती ही नहीं हुई। सफीपुर सीएचसी में तीन महीने व असोहा सीएचसी में पांच साल से बच्चों के डॉक्टर नहीं हैं। पाटन सीएचसी में पांच साल से, फतेहपुर चौरासी सीएचसी में चार साल से और मौरावां सीएचसी में भी दस साल से बाल रोग विशेषज्ञ तैनात नहीं है।

वर्जन

सीएमओ डॉ. सत्यप्रकाश ने बताया कि डॉक्टरों की तैनाती के लिए शासन को कई बार पत्र भेजे गए हैं। वहीं से डॉक्टरों की तैनाती होनी है।

बेटी को फायदा नहीं मिला

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जिला अस्पताल आए बदरका के करौंदी गांव निवासी सुशील ने बताया कि बेटी शिवांगी के पेट में दर्द हो रहा है। कई बार अचलगंज सीएचसी गया। फायदा न मिलने पर दिखाने आया हूं।

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जिला अस्पताल आए मुर्तजानगर निवासी दिनेश ने बताया की बेटी रेशमा को काफी दिनों से बुखार आ रहा है। निजी अस्पताल में डॉक्टर को दिखा रहे थे। इंफेक्शन बढ़ने की बात डॉक्टर ने बताई तो यहां चले आए।

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