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अमर उजाला नेटवर्क, प्रयागराज
Published by: विनोद सिंह
Updated Thu, 17 Feb 2022 05:29 AM IST
सार
यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम लेहरू व अन्य में 2003 में दिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए न्यायमूर्ति सुभाष चंद्र शर्मा की पीठ ने कहा कि नियोक्ता से यह उम्मीद नहीं होती कि वह रोजगार के समय जारीकर्ता प्राधिकरण से ड्राइविंग लाइसेंस की वास्तविकता सत्यापित करेगा।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मोटर दुर्घटना दावा के मामले में कहा कि ड्राइविंग लाइसेंस नकली होने के आधार पर बीमा कंपनी देयों के भुगतान से बच नहीं सकती है। बीमा कंपनी को सभी देयों का भुगतान करना होगा।
यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम लेहरू व अन्य में 2003 में दिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए न्यायमूर्ति सुभाष चंद्र शर्मा की पीठ ने कहा कि नियोक्ता से यह उम्मीद नहीं होती कि वह रोजगार के समय जारीकर्ता प्राधिकरण से ड्राइविंग लाइसेंस की वास्तविकता सत्यापित करेगा।
मामले में नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड ने मोटर दुर्घटना दावा प्राधिकरण गाजियाबाद के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। प्राधिकरण ने मृतक को छह फीसदी ब्याज के साथ 12 लाख, 70 हजार, 406 रुपये की राशि का भुगतान करने का निर्देश दिया था। याची (बीमा कंपनी) ने यह दावा किया कि यह रिकॉर्ड में है कि दुर्घटना ट्रक चालक की लापरवाही से हुई थी।
हाईकोर्ट ने बीमा कंपनी के तर्कों को किया दरकिनार
ट्रक का मालिकाना बीमाधारक के पास था। उन्होंने तर्क दिया कि दुर्घटना के समय चालक के पास वैध ड्राइविंग लाइसेंस नहीं था। न्यायाधिकरण ने बीमा कंपनी पर मुआवजे के भुगतान की देनदारी तय करने में गलती की है। लेकिन, कोर्ट ने बीमा कंपनी के तर्कों को दरकिनार कर दिया। कहा कि यदि बीमाधारक ने लाइसेंस की वास्तविकता या अन्यथा सत्यापित करने के लिए उचित और पर्याप्त सावधानी नहीं बरती तब भी दायित्व का विकल्प मौजूद होगा।
न्यायाकरण के फैसले में कोई गड़बड़ी नहीं- हाईकोर्ट
कोर्ट ने कहा कि बीमा कंपनी ने ड्राइविंग लाइसेंस की जांच कराई। जांचकर्ता अरविंद कुमार मिश्रा की रिपोर्ट के अनुसार ड्राइविंग लाइसेंस नकली पाया गया था। हालांकि उन्होंने अपनी रिपोर्ट की सामग्री को साबित करने के लिए उनसे कोई आधार नहीं दिया। रिपोर्ट डीलिंग असिस्टेंट के अवलोकन पर आधारित है। जबकि डीलिंग असिस्टेंट के बारे में कोई जानकारी जिला परिवहन अधिकारी मुजफ्फरपुर के कार्यालय में नहीं जुटाई गई कि जिससे यह साबित हो सके कि लाइसेंस नकली या अमान्य था।
हाईकोर्ट ने बीमा कंपनी द्वारा दायर अपील को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि ऐसी परिस्थितियों में यह नहीं कहा जा सकता है कि नियोक्ता ने एक ऐसे व्यक्ति को नियुक्त करने में गलती की है, जिसका लाइसेंस बीमा कंपनी ने न्यायाधिकरण के समक्ष फर्जी पाया है। इसलिए न्यायाधिकरण द्वारा दिए गए फैसले में कोई गड़बड़ी नहीं नजर आ रही है।
विस्तार
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मोटर दुर्घटना दावा के मामले में कहा कि ड्राइविंग लाइसेंस नकली होने के आधार पर बीमा कंपनी देयों के भुगतान से बच नहीं सकती है। बीमा कंपनी को सभी देयों का भुगतान करना होगा।
यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम लेहरू व अन्य में 2003 में दिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए न्यायमूर्ति सुभाष चंद्र शर्मा की पीठ ने कहा कि नियोक्ता से यह उम्मीद नहीं होती कि वह रोजगार के समय जारीकर्ता प्राधिकरण से ड्राइविंग लाइसेंस की वास्तविकता सत्यापित करेगा।
मामले में नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड ने मोटर दुर्घटना दावा प्राधिकरण गाजियाबाद के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। प्राधिकरण ने मृतक को छह फीसदी ब्याज के साथ 12 लाख, 70 हजार, 406 रुपये की राशि का भुगतान करने का निर्देश दिया था। याची (बीमा कंपनी) ने यह दावा किया कि यह रिकॉर्ड में है कि दुर्घटना ट्रक चालक की लापरवाही से हुई थी।
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