हाईकोर्ट का अहम फैसला : शिकायतकर्ता की मौत से खत्म नहीं होगा धारा138 का आपराधिक केस

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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इटावा की महिला व उसके प्रेमी को सुरक्षा देने से इनकार कर दिया। हाईकोर्ट ने कहा कि दोनों अपने अवैध संबंधों पर हाईकोर्ट की मुहर चाह रहे हैं। कोर्ट ने याची पर पांच हजार रुपये का हर्जाना भी लगाया है। यह आदेश न्यायमूर्ति डॉ. कौशल जयेंद्र ठाकर और न्यायमूर्ति अजय त्यागी की खंडपीठ ने महिला व अन्य की याचिका को खारिज करते हुए दिया है।


कोर्ट ने कहा कि भारत का संविधान लिव-इन-रिलेशन की अनुमति देता है, लेकिन यह याचिका अवैध संबंधों पर न्यायालय की मुहर प्राप्त करने के उद्देश्य से दायर की गई है। कोर्ट ने यह भी कहा कि सामाजिक नैतिकता की धारणा की बजाय व्यक्तिगत स्वायत्तता पर ध्यान दिया जा सकता था, लेकिन दोनों के साथ रहने की अवधि कम है तो ऐसा नहीं किया जा सकता है।

मामले में याचियों ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर अपनी सुरक्षा की मांग की थी। उनका तर्क था कि प्रतिवादी उन्हें परेशान कर रहे हैं। कोर्ट ने सुनवाई के दौरान पाया कि याची के बच्चे भी हैं। शिकायत थी कि याची का पति उसे उसके दोस्तों के साथ अवैध संबंध बनाने के लिए कहता था। इस वजह से उसने पति का साथ छोड़ दिया। कोर्ट ने कहा कि लिव-इन-रिलेशन एक ऐसा रिश्ता है, जिसे भारत में कई अन्य देशों के विपरीत सामाजिक रूप से स्वीकार नहीं किया गया है।

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                इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इटावा की महिला व उसके प्रेमी को सुरक्षा देने से इनकार कर दिया। हाईकोर्ट ने कहा कि दोनों अपने अवैध संबंधों पर हाईकोर्ट की मुहर चाह रहे हैं। कोर्ट ने याची पर पांच हजार रुपये का हर्जाना भी लगाया है। यह आदेश न्यायमूर्ति डॉ. कौशल जयेंद्र ठाकर और न्यायमूर्ति अजय त्यागी की खंडपीठ ने महिला व अन्य की याचिका को खारिज करते हुए दिया है।
                                
           
                                 

                                
                                
                                                                
                                 
                

                                
           
                                 

                                
                                
                                
                                 
                
                                
           
                                 

                                
                                
                                
                                 
                

                                
           
                                 

                                
                                
                                
                                 
                
                                
           
                                 

                                
                                
                                
                                 
                

                                
           
                                 

                                
                                
                                
                                 
                कोर्ट ने कहा कि भारत का संविधान लिव-इन-रिलेशन की अनुमति देता है, लेकिन यह याचिका अवैध संबंधों पर न्यायालय की मुहर प्राप्त करने के उद्देश्य से दायर की गई है। कोर्ट ने यह भी कहा कि सामाजिक नैतिकता की धारणा की बजाय व्यक्तिगत स्वायत्तता पर ध्यान दिया जा सकता था, लेकिन दोनों के साथ रहने की अवधि कम है तो ऐसा नहीं किया जा सकता है।
                                
           
                                 

                                                                
                                                
                                
                                
                                                                
                                 
                

                                
           
                                 

                                
                                
                                
                                 
                

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