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अदालत
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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जमानती मामलों में किशोर न्याय अधिनियम 2015 की धारा 94 और नियमावली 2016 को लागू करना आवश्यक नहीं माना। कोर्ट ने कहा कि यह धारा और नियमावली मुकदमे की सुनवाई के दौरान लागू होगी। केस निर्धारण के समय ही पीड़ित की उम्र का भी निर्धारण होगा। जमानत के समय यह तय नहीं किया जा सकता है।
हालांकि, कोर्ट ने यह माना कि जमानत अर्जी के दौरान पीड़ित की उम्र निर्धारण को लेकर रिकॉर्ड पर आए दस्तावेज विचारणीय हैं लेकिन इसका निर्धारण जमानत अर्जियों पर नहीं किया जा सकता। यह आदेश न्यायमूर्ति अजय कुमार भनोट मोनिस की जमानत अर्जी स्वीकार करते हुए दिया।
याची पर एक नाबालिग से रेप के आरोप था। याची की ओर से कहा गया कि प्राथमिकी रिपोर्ट के अनुसार पीड़ित की उम्र 14 साल है। जबकि, शैक्षिक प्रमाणपत्र में साढ़े तेरह वर्ष है। मेडिकल रिपोर्ट के मुताबिक वह बालिग है। लिहाजा, उसे जमानत दी जाए।
कोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए पाया कि उम्र का निर्धारण जमानती मामलों की सुनवाई के दौरान नहीं किया जा सकता है। यह मामला ट्रायल के दौरान ही तय किया जा सकता है। लिहाजा, कोर्ट ने याची को जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया। कहा कि याची को निजी मुचलके और दो प्रतिभूतियों के साथ रिहा किया जाए।
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