हाईकोर्ट की टिप्पणी : धार्मिक भावनाओं के जरिये कोर्ट को प्रभावित करना सही नहीं

0
25

[ad_1]

अमर उजाला नेटवर्क, प्रयागराज
Published by: विनोद सिंह
Updated Mon, 09 May 2022 11:30 PM IST

सार

मामले में याची की ओर से अवमानना याचिका दायर की गई थी। कहा गया था कि हाईकोर्ट के 2013 में दिए गए आदेश का पालन नहीं किया जा रहा है। इस आदेश में निश्चित ध्वनि सीमा में लाउडस्पीकर लगाने की छूट देने को कहा गया था।

ख़बर सुनें

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अवमानना याचिका को खारिज करते हुए महत्वपूर्ण टिप्पणी की। कहा कि धार्मिक भावनाओं के जरिये कोर्ट को प्रभावित करना न्याय के लिए अच्छा नहीं है। कोर्ट ने मामले में पैरवी कर रहे अधिवक्ता के व्यवहार पर भी असंतोष जताया। यह आदेश न्यायमूर्ति सरल श्रीवास्तव ने जहूर की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया है।

मामले में याची की ओर से अवमानना याचिका दायर की गई थी। कहा गया था कि हाईकोर्ट के 2013 में दिए गए आदेश का पालन नहीं किया जा रहा है। इस आदेश में निश्चित ध्वनि सीमा में लाउडस्पीकर लगाने की छूट देने को कहा गया था। आदेश में राज्य सरकार को लाउडस्पीकर के उपयोग के संबंध में नीति तैयार करने का निर्देश दिया गया था। याची की ओर से बताया गया कि इस आदेश का उल्लंघन हुआ है।

वकील से कानून के ढांचे के भीतर बहस की उम्मीद

कोर्ट ने कहा कि 2013 का आदेश अंतरिम था और वह मामला अभी हाईकोर्ट में विचाराधीन है। फैसला आना बाकी है। इसलिए अवमानना का मामला बनता नहीं है। कोर्ट ने पाया कि याचिका में यह कहा गया था कि राज्य सरकार हाईकोर्ट के आदेश की आड़ में मनमाने ढंग से काम कर रही है और वह केवल अवैध मस्जिद को हटा रही है और मंदिरों को नहीं हटा रही है।

यह भी पढ़ें -  Allahabad High Court : हाईकोर्ट ने एक केस के आधार पर गुंडा एक्ट के तहत जारी नोटिस की रद्द

कोर्ट ने याची के अधिवक्ता का तर्क को अस्वीकार्य कर दिया। कोर्ट ने कहा कि क्योंकि एक वकील से कानून के ढांचे के भीतर बहस करने की उम्मीद की जाती है और इस तरह के तर्क को अदालत के सामने नहीं रखा जाना चाहिए। कोर्ट ने इसके पहले भी मस्जिद में लाउडस्पीकर के उपयोग के संबंध में दायर अवमानना याचिका को खारिज कर दिया था। कोर्ट ने उसे एक प्रायोजित मुकदमा बताया था। हाईकोर्ट अपने चार मई 2022 के आदेश में यह तय कर चुका है कि मस्जिदों में  लाउडस्पीकर का उपयोग मौलिक अधिकार नहीं है।

विस्तार

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अवमानना याचिका को खारिज करते हुए महत्वपूर्ण टिप्पणी की। कहा कि धार्मिक भावनाओं के जरिये कोर्ट को प्रभावित करना न्याय के लिए अच्छा नहीं है। कोर्ट ने मामले में पैरवी कर रहे अधिवक्ता के व्यवहार पर भी असंतोष जताया। यह आदेश न्यायमूर्ति सरल श्रीवास्तव ने जहूर की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया है।

मामले में याची की ओर से अवमानना याचिका दायर की गई थी। कहा गया था कि हाईकोर्ट के 2013 में दिए गए आदेश का पालन नहीं किया जा रहा है। इस आदेश में निश्चित ध्वनि सीमा में लाउडस्पीकर लगाने की छूट देने को कहा गया था। आदेश में राज्य सरकार को लाउडस्पीकर के उपयोग के संबंध में नीति तैयार करने का निर्देश दिया गया था। याची की ओर से बताया गया कि इस आदेश का उल्लंघन हुआ है।

[ad_2]

Source link

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here