हाईकोर्ट : केस दायर करने की तिथि से किया जाए भरण पोषण का भुगतान

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अमर उजाला नेटवर्क, प्रयागराज
Published by: विनोद सिंह
Updated Mon, 21 Mar 2022 09:10 PM IST

सार

कोर्ट कहा कि सत्र न्यायाधीश का फैसला एकतरफा और गलत है। कोर्ट ने विपक्षी पक्ष को भरण भोषण के भुगतान को याचिका दाखिल करने के समय से करने का आदेश दिया। अपर सत्र न्यायाधीश ने मामले में फैसले के आदेश की तारीख से याची को और उसके नाबालिग बच्चों को भरण पोषण का भुगतान करने का आदेश दिया था।

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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रजनेश बनाम नेहा व अन्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले का उल्लेख करते हुए कहा है कि भरण-पोषण के भुगतान की गणना केस दायर करने की तिथि से करनी चाहिए न कि आदेश की तारीख से। यह आदेश न्यायमूर्ति समित गोपाल ने रेखा गौतम की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है। साथ ही कोर्ट ने अलीगढ़ के अपर सत्र न्यायाधीश के फैसले को रद्द कर दिया।

कोर्ट कहा कि सत्र न्यायाधीश का फैसला एकतरफा और गलत है। कोर्ट ने विपक्षी पक्ष को भरण भोषण के भुगतान को याचिका दाखिल करने के समय से करने का आदेश दिया। अपर सत्र न्यायाधीश ने मामले में फैसले के आदेश की तारीख से याची को और उसके नाबालिग बच्चों को भरण पोषण का भुगतान करने का आदेश दिया था।

याची ने उसी फैसले को हाईकोर्ट ने चुनौती दी थी। मामले में अपर सत्र न्यायाधीश के समक्ष 2005 में पुनरीक्षण याचिका दायर की गई थी। कोर्ट ने निर्देश दिया कि भुगतान छह महीने की अवधि के भीतर तीन समान किश्तों में किया जाएगा। 

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विस्तार

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रजनेश बनाम नेहा व अन्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले का उल्लेख करते हुए कहा है कि भरण-पोषण के भुगतान की गणना केस दायर करने की तिथि से करनी चाहिए न कि आदेश की तारीख से। यह आदेश न्यायमूर्ति समित गोपाल ने रेखा गौतम की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है। साथ ही कोर्ट ने अलीगढ़ के अपर सत्र न्यायाधीश के फैसले को रद्द कर दिया।

कोर्ट कहा कि सत्र न्यायाधीश का फैसला एकतरफा और गलत है। कोर्ट ने विपक्षी पक्ष को भरण भोषण के भुगतान को याचिका दाखिल करने के समय से करने का आदेश दिया। अपर सत्र न्यायाधीश ने मामले में फैसले के आदेश की तारीख से याची को और उसके नाबालिग बच्चों को भरण पोषण का भुगतान करने का आदेश दिया था।

याची ने उसी फैसले को हाईकोर्ट ने चुनौती दी थी। मामले में अपर सत्र न्यायाधीश के समक्ष 2005 में पुनरीक्षण याचिका दायर की गई थी। कोर्ट ने निर्देश दिया कि भुगतान छह महीने की अवधि के भीतर तीन समान किश्तों में किया जाएगा। 

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