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अमर उजाला नेटवर्क, प्रयागराज
Published by: विनोद सिंह
Updated Mon, 11 Apr 2022 11:09 PM IST
सार
यह बात न्यायमूर्ति मंजू रानी चौहान ने वाराणसी के अरविंद उपाध्याय की तरफ से दाखिल अर्जी को खारिज करते हुए कही। कोर्ट ने इस तरह की घटनाओं को रोकने और पत्नियों के भरण-पोषण अधिकार को संरक्षित रखने के लिए प्रदेश के डीजीपी को निर्देश दिया।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि बड़ी संख्या में ऐसे केस आ रहे हैं, जिसमें निचली अदालतों के आदेश के बावजूद पत्नियों को भरण-पोषण का लाभ नहीं मिल रहा है। कोर्ट ने कहा कि महिलाएं इससे पीड़ित हैं। ऐसी महिलाओं की हालत दयनीय है। कोर्ट ने कहा, महिलाएं आदेश लेकर यहां-वहां भटक रही हैं। आपराधिक न्याय व्यवस्था की खामियों का पति के परिवारवालों को फायदा मिल रहा है।
यह बात न्यायमूर्ति मंजू रानी चौहान ने वाराणसी के अरविंद उपाध्याय की तरफ से दाखिल अर्जी को खारिज करते हुए कही। कोर्ट ने इस तरह की घटनाओं को रोकने और पत्नियों के भरण-पोषण अधिकार को संरक्षित रखने के लिए प्रदेश के डीजीपी को निर्देश दिया।
कोर्ट ने कहा कि डीजीपी शादीशुदा महिलाओं के पक्ष में कोर्ट के भरण-पोषण आदेश का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए संबंधित व्यक्तियों को नोटिस तामील कराएं। कोर्ट का कहना था कि निचली अदालतों द्वारा पारित भरण पोषण आदेश के बावजूद संबंधित व्यक्तियों को नोटिस तामील नहीं हो पा रहे हैं। इससे आदेश का अनुपालन नहीं हो रहा है।
पति ने निचली अदालत के फैसले को दी थी चुनौती
मामले में अरविंद उपाध्याय ने निचली अदालत के चार नवंबर और आठ नवंबर 2016 को पारित आदेशों को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। उसके खिलाफ घरेलू हिंसा संरक्षण कानून अधिनियम-2005 के तहत केस था। कोर्ट ने याची की पत्नी और बच्चे को अलग से रहने की व्यवस्था करने और 1000 रुपए भरण-पोषण देने का आदेश दिया था। हाईकोर्ट ने याची के पक्ष में उक्त दोनों आदेशों के अमल पर रोक लगा दी थी।
इस बीच याची दो साल तक लापता रहा। बाद में कोर्ट के आदेश से वाराणसी प्रशासन ने उसे ढूंढ कर कोर्ट में हाजिर किया था। उसकी पत्नी भी कोर्ट में मौजूद थी। कोर्ट ने दोनों के बीच सुलह-समझौता कराने की भरपूर कोशिश की। मगर कोर्ट का यह प्रयास असफल रहा। हाईकोर्ट ने याची की अर्जी को खारिज कर दिया। साथ ही कोर्ट में उपस्थित पुलिसकर्मियों को निर्देश दिया कि वे याची को न्यायिक अभिरक्षा में केंद्रीय कारागार वाराणसी भेजें।
विस्तार
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि बड़ी संख्या में ऐसे केस आ रहे हैं, जिसमें निचली अदालतों के आदेश के बावजूद पत्नियों को भरण-पोषण का लाभ नहीं मिल रहा है। कोर्ट ने कहा कि महिलाएं इससे पीड़ित हैं। ऐसी महिलाओं की हालत दयनीय है। कोर्ट ने कहा, महिलाएं आदेश लेकर यहां-वहां भटक रही हैं। आपराधिक न्याय व्यवस्था की खामियों का पति के परिवारवालों को फायदा मिल रहा है।
यह बात न्यायमूर्ति मंजू रानी चौहान ने वाराणसी के अरविंद उपाध्याय की तरफ से दाखिल अर्जी को खारिज करते हुए कही। कोर्ट ने इस तरह की घटनाओं को रोकने और पत्नियों के भरण-पोषण अधिकार को संरक्षित रखने के लिए प्रदेश के डीजीपी को निर्देश दिया।
कोर्ट ने कहा कि डीजीपी शादीशुदा महिलाओं के पक्ष में कोर्ट के भरण-पोषण आदेश का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए संबंधित व्यक्तियों को नोटिस तामील कराएं। कोर्ट का कहना था कि निचली अदालतों द्वारा पारित भरण पोषण आदेश के बावजूद संबंधित व्यक्तियों को नोटिस तामील नहीं हो पा रहे हैं। इससे आदेश का अनुपालन नहीं हो रहा है।
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