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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि अगर किसी आरोप पर हुई विभागीय जांच में सरकारी कर्मचारी दोषमुक्त पाया जाता है। ऐसी स्थिति में उसी आरोप पर नई जांच विशेष कारणों के प्रकटीकरण पर ही हो सकती है।
यह आदेश न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा ने जनपद मिर्जापुर के भगवती प्रसाद की याचिका स्वीकार करते हुए दिया है। याची को 2011 में सिंचाई विभाग में हेल्पर के पद पर नियुक्त किया गया था। 2020 में याची को कूटरचित दस्तावेज एवं जन्मतिथि में हेरफेर आदि आरोपों के सिद्ध होने पर बर्खास्त कर दिया गया था।
याची के अधिवक्ता ने अदालत को बताया कि 2016 में भी इन्हीं आरोपों पर हुई विभागीय जांच में कर्मचारी निर्दोष पाया गया था। जिसके बाद हुई दूसरी जांच में याची की सेवा समाप्त कर दी गई हैं। उन्होंने तर्क दिया कि विभागीय जांच के दौरान याची की आयु का निर्धारण वैज्ञानिक प्रणाली से कराए जाने की आवश्यकता थी। इसके अलावा अभिलेखों की जांच में भी विद्यालय के प्रबंधक व प्रधानाचार्य को शामिल नहीं किया गया है।
न्यायालय ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद कहा कि आयु निर्धारण के लिए जांच दल को आधुनिक मेडिकल पद्धति का सहयोग लेना था, जबकि अभिलेखों के सत्यापन के लिए विद्यालय के अधिकारियों को जांच में शामिल कर रिकॉर्ड तलब करने चाहिए थे। इसके साथ ही न्यायालय ने कहा कि चूंकि विभाग ने याची को इन्हीं आरोपों पर 2016 में दोषमुक्त पाया था, ऐसी स्थिति में दोबारा जांच नए ठोस कारणों के मिलने पर ही की जा सकती थी।
विस्तार
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि अगर किसी आरोप पर हुई विभागीय जांच में सरकारी कर्मचारी दोषमुक्त पाया जाता है। ऐसी स्थिति में उसी आरोप पर नई जांच विशेष कारणों के प्रकटीकरण पर ही हो सकती है।
यह आदेश न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा ने जनपद मिर्जापुर के भगवती प्रसाद की याचिका स्वीकार करते हुए दिया है। याची को 2011 में सिंचाई विभाग में हेल्पर के पद पर नियुक्त किया गया था। 2020 में याची को कूटरचित दस्तावेज एवं जन्मतिथि में हेरफेर आदि आरोपों के सिद्ध होने पर बर्खास्त कर दिया गया था।
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