हाईकोर्ट ने कहा : एक ही मामले में दो से अधिक अपराधों के लिए एक साथ सजा चलने के लिए निर्देश देना बुनियादी नियम

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अमर उजाला नेटवर्क, प्रयागराज
Published by: विनोद सिंह
Updated Wed, 20 Apr 2022 11:11 AM IST

सार

सत्र न्यायालय ने विचारण के बाद याची पवन सिंह और सह अभियुक्त भगवान को एनडीपीएस अधिनियम की धारा 20 बी (2) और धारा 23 के तहत दोषी ठहराया था और प्रत्येक को 15-15 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई थी।

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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि एक ही मामले में अलग-अलग अपराधों के लिए अभियुक्तों की सजा को एक साथ चलने के लिए निर्देशित किया जाना चाहिए। यही बुनियादी नियम है। सीआरपीसी की धारा 31 अदालत के विवेक पर निर्भर करती है। वह एक मुकदमे में दो या अधिक अपराधों के लिए सजा का आदेश दे ताकि अपराधों की प्रकृति और परिचारक की परिस्थितियों को ध्यान में रखा जा सके। यह आदेश न्यायमूर्ति राजबीर सिंह की पीठ ने पवन सिंह की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया है।

मामले में गोरखपुर की सत्र अदालत ने याची को दोषी ठहराते हुए सजा सुनाई थी। याची के पास से बड़ी मात्रा में चरस बरामद हुई थी। मामले में याची की गिरफ्तारी 2003 को हुई थी। सत्र न्यायालय ने विचारण के बाद याची पवन सिंह और सह अभियुक्त भगवान को एनडीपीएस अधिनियम की धारा 20 बी (2) और धारा 23 के तहत दोषी ठहराया था और प्रत्येक को 15-15 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई थी।

ट्रायल कोर्ट के द्वारा सुनाए गए फैसले में कोई खामी नहीं

मामले में कोर्ट ने एक साथ सजा चलने के संबंध में कोई आदेश नहीं दिया था। मामले में याची ने हाईकोर्ट में अपील दाखिल की। मामले में सजा के बिंदु पर बहस हुई। दोष सिद्धि के निष्कर्षों पर विवाद नहीं किया गया। याची की ओर से कहा गया कि क्योंकि सत्र न्यायालय ने सजा के एक साथ चलने के संबंध में कोई आदेश नहीं दिया। इसलिए वह बाहर नहीं आ सके। जबकि, वे 18 साल, नौ महीने की सजा काट चुके हैं।

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कोर्ट ने पाया कि ट्रायल कोर्ट द्वारा सुनाई गई सजा में कोई गलती नहीं थी। कोर्ट ने कहा कि जहां अभियुक्त को एक मुकदमे में कई अपराधों के लिए दोषी ठहराया जाता है और सजा सुनाई जाती है, न्यायालय निर्देश दे सकता है कि सजाएं साथ-साथ चलेंगी। कोर्ट ने मामले को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए सजा को बरकरार रखा, लेकिन यह कहा कि अलग-अलग अपराधों के लिए सजाएं साथ-साथ चलेंगी।

विस्तार

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि एक ही मामले में अलग-अलग अपराधों के लिए अभियुक्तों की सजा को एक साथ चलने के लिए निर्देशित किया जाना चाहिए। यही बुनियादी नियम है। सीआरपीसी की धारा 31 अदालत के विवेक पर निर्भर करती है। वह एक मुकदमे में दो या अधिक अपराधों के लिए सजा का आदेश दे ताकि अपराधों की प्रकृति और परिचारक की परिस्थितियों को ध्यान में रखा जा सके। यह आदेश न्यायमूर्ति राजबीर सिंह की पीठ ने पवन सिंह की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया है।

मामले में गोरखपुर की सत्र अदालत ने याची को दोषी ठहराते हुए सजा सुनाई थी। याची के पास से बड़ी मात्रा में चरस बरामद हुई थी। मामले में याची की गिरफ्तारी 2003 को हुई थी। सत्र न्यायालय ने विचारण के बाद याची पवन सिंह और सह अभियुक्त भगवान को एनडीपीएस अधिनियम की धारा 20 बी (2) और धारा 23 के तहत दोषी ठहराया था और प्रत्येक को 15-15 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई थी।

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