हाईकोर्ट ने कहा : न्यायिक विवेक इस्तेमाल किए बगैर खारिज न करें जमानत अर्जी

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– फोटो : istock

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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि सत्र न्यायालयों को न्यायिक विवेक इस्तेमाल किए बिना छोटे मुद्दों पर जमानत आवेदनों को खारिज नहीं करना चाहिए। यह आदेश न्यायमूर्ति सुरेश कुमार गुप्ता ने बुलंदशहर के खुर्जानगर थानांतर्गत रूद्र दत्त शर्मा उर्फ  रूद्र सिंह की आईपीसी की धारा 147/353 के तहत दर्ज केस क्राइम में अग्रिम जमानत की मांग करने वाली अर्जी पर दिया।

 

इस मामले में आवेदक के वकील का कहना था कि आवेदक निर्दोष है और उसे मामले में झूठा फंसाया गया है। अभियोजन पक्ष के आरोप के अनुसार आवेदक ने कोई अपराध नहीं किया है। कहा गया था कि आवेदक के खिलाफ  लगाये गए अपराध में दो साल तक की सजा है। आरोप पत्र दाखिल करने के बाद आवेदक ने सत्र अदालत के समक्ष अग्रिम जमानत याचिका दायर की, लेकिन सत्र अदालत ने रिकॉर्ड पर उपलब्ध सामग्री की जांच किए बिना उसे खारिज कर दिया।

पीठ के समक्ष विचार का मुद्दा था कि क्या आवेदक को अग्रिम जमानत दी जा सकती है या नहीं। हाईकोर्ट ने मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करने के बाद कहा कि अक्सर यह देखा जाता है कि एक छोटे से मामले में भी सत्र न्यायालय न्यायिक विवेक का इस्तेमाल किए बिना नियमित तरीके से जमानत आवेदन को खारिज कर देता है। कोर्ट ने कहा कि यह अत्यंत खेदजनक स्थिति है। इस प्रकार की जमानत याचिका पर सत्र न्यायालय द्वारा विचार और निर्णय किया जाना चाहिए। यह आवेदक को अग्रिम जमानत देने के लिए उपयुक्त मामला है।

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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि सत्र न्यायालयों को न्यायिक विवेक इस्तेमाल किए बिना छोटे मुद्दों पर जमानत आवेदनों को खारिज नहीं करना चाहिए। यह आदेश न्यायमूर्ति सुरेश कुमार गुप्ता ने बुलंदशहर के खुर्जानगर थानांतर्गत रूद्र दत्त शर्मा उर्फ  रूद्र सिंह की आईपीसी की धारा 147/353 के तहत दर्ज केस क्राइम में अग्रिम जमानत की मांग करने वाली अर्जी पर दिया।

 

इस मामले में आवेदक के वकील का कहना था कि आवेदक निर्दोष है और उसे मामले में झूठा फंसाया गया है। अभियोजन पक्ष के आरोप के अनुसार आवेदक ने कोई अपराध नहीं किया है। कहा गया था कि आवेदक के खिलाफ  लगाये गए अपराध में दो साल तक की सजा है। आरोप पत्र दाखिल करने के बाद आवेदक ने सत्र अदालत के समक्ष अग्रिम जमानत याचिका दायर की, लेकिन सत्र अदालत ने रिकॉर्ड पर उपलब्ध सामग्री की जांच किए बिना उसे खारिज कर दिया।

पीठ के समक्ष विचार का मुद्दा था कि क्या आवेदक को अग्रिम जमानत दी जा सकती है या नहीं। हाईकोर्ट ने मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करने के बाद कहा कि अक्सर यह देखा जाता है कि एक छोटे से मामले में भी सत्र न्यायालय न्यायिक विवेक का इस्तेमाल किए बिना नियमित तरीके से जमानत आवेदन को खारिज कर देता है। कोर्ट ने कहा कि यह अत्यंत खेदजनक स्थिति है। इस प्रकार की जमानत याचिका पर सत्र न्यायालय द्वारा विचार और निर्णय किया जाना चाहिए। यह आवेदक को अग्रिम जमानत देने के लिए उपयुक्त मामला है।

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