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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के आधार पर अभियुक्त को दोषी पाते समय अदालतों को अत्यधिक सावधानी बरतने की आवश्यकता है। कोर्ट ने इसके साथ ही हत्या के प्रयास के मामले में सत्र न्यायाधीश मिर्जापुर द्वारा पारित बरी करने के आदेश को बरकरार रखा और याचिका को खारिज कर दिया। यह आदेश न्यायमूर्ति ओम प्रकाश सप्तम और न्यायमूर्ति उमेश चंद्र शर्मा ने स्टेट ऑफ़ यूपी बनाम बैज नाथ व अन्य की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया है।
खंडपीठ ने कहा कि तत्काल मामले में गवाह आरोपी व्यक्तियों को पहचानने में सक्षम नहीं थे और आरोपी व्यक्तियों को दुश्मनी के कारण प्राथमिकी में नामित किया गया था। कोर्ट ने कहा कि परिस्थितियों की श्रृंखला के आधार पर अभियोजन पक्ष आरोपों को साबित करने में नाकाम रहा।
मामले में गुलाब ने रिक्शा चलाने वाले भाई पागल पर हत्या करने केइरादे से बम फेकने के आरोप में दो नवंबर 1981 में एफआईआर दर्ज कराई थी। बम से मिर्जापुर शहर में उसके इक्के के कई टुकड़े हो गए थे। उसमें भाई पागल घायल हो गया था। इक्के पर अमरनाथ सहित तीन लोग बैठे थे। कोर्ट ने पाया कि पीड़ित यह बताने में नाकाम रहा कि उस पर बम किसने फेंके थे। उसके बयान में कई विसंगतियां भी थीं।
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