हाईकोर्ट ने कहा : पर्याप्त और वास्तविक सबूत के बिना किसी को नहीं ठहराया जा सकता दोषी

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अमर उजाला नेटवर्क, प्रयागराज
Published by: विनोद सिंह
Updated Sat, 29 Jan 2022 02:09 AM IST

सार

याची ने हाईकोर्ट में निचली अदालत के फैसले को चुनौती दी थी। उसका आरोप था कि उसने अपनी बेटी शबाना की शादी हसमुद्दीन से की थी। विवाह के समय आभूषण, वस्त्र उपहार में दिए और तीन लाख रुपये खर्च किए थे।

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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आगरा जिले के शाहगंज थाने के निवासी मोहम्मद सादिक की पुनर्विचार याचिका को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने कहा है कि आरोपी के खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं हैं। पर्याप्त और वास्तविक सबूत के बिना किसी को भी दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। यह आदेश न्यायमूर्ति सैयद आफताब हुसैन रिजवी ने पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया था। 

याची ने हाईकोर्ट में निचली अदालत के फैसले को चुनौती दी थी। उसका आरोप था कि उसने अपनी बेटी शबाना की शादी हसमुद्दीन से की थी। विवाह के समय आभूषण, वस्त्र उपहार में दिए और तीन लाख रुपये खर्च किए थे। हसमुद्दीन की मांग पर उसे उसे मोटरसाइकिल भी दी थी। तब शादी में दी गई वस्तुओं की सूची भी तैयार की गई थी, जिस पर हसमुद्दीन के भी हस्ताक्षर थे।

याची का कहना है कि बाद में उसकी बेटी की ओर से आरोप लगाए गए कि उसका पति उसे प्रताड़ित कर रहा है। हसमद्दीन ने उसकी बेटी से एक लाख रुपये की भी मांग की। इंकार करने पर उसकी बेटी को जला दिया। इसके बाद जब उससे शादी में दिया गया सामान मांगा गया, तब उसने उसे देने से मना कर दिया।

इस मामले में हसमुद्दीन को दो बार पंजीकृत डाक से नोटिस बेजा गया, लेकिन कोई कार्रवाई न होने पर इस मामले में हसमुद्दीन के खिलाफ न्यायिक मजिस्ट्रेट के यहां वाद दायर किया।

न्यायिक मजिस्ट्रेट ने दहेज उत्पीड़न का आरोप सिद्द न होने पर हसमुद्दीन को बरी कर दिया। फिर उसने सत्र न्यायाधीश के यहां गुहार लगाई, लेकिन वहां भी उसकी याचिका खारिज कर दी गई। इसके बाद हाईकोर्ट ने भी निचली अदालत के फैसले को सही मानते हुए याची पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी।

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विस्तार

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आगरा जिले के शाहगंज थाने के निवासी मोहम्मद सादिक की पुनर्विचार याचिका को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने कहा है कि आरोपी के खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं हैं। पर्याप्त और वास्तविक सबूत के बिना किसी को भी दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। यह आदेश न्यायमूर्ति सैयद आफताब हुसैन रिजवी ने पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया था। 

याची ने हाईकोर्ट में निचली अदालत के फैसले को चुनौती दी थी। उसका आरोप था कि उसने अपनी बेटी शबाना की शादी हसमुद्दीन से की थी। विवाह के समय आभूषण, वस्त्र उपहार में दिए और तीन लाख रुपये खर्च किए थे। हसमुद्दीन की मांग पर उसे उसे मोटरसाइकिल भी दी थी। तब शादी में दी गई वस्तुओं की सूची भी तैयार की गई थी, जिस पर हसमुद्दीन के भी हस्ताक्षर थे।

याची का कहना है कि बाद में उसकी बेटी की ओर से आरोप लगाए गए कि उसका पति उसे प्रताड़ित कर रहा है। हसमद्दीन ने उसकी बेटी से एक लाख रुपये की भी मांग की। इंकार करने पर उसकी बेटी को जला दिया। इसके बाद जब उससे शादी में दिया गया सामान मांगा गया, तब उसने उसे देने से मना कर दिया।

इस मामले में हसमुद्दीन को दो बार पंजीकृत डाक से नोटिस बेजा गया, लेकिन कोई कार्रवाई न होने पर इस मामले में हसमुद्दीन के खिलाफ न्यायिक मजिस्ट्रेट के यहां वाद दायर किया।

न्यायिक मजिस्ट्रेट ने दहेज उत्पीड़न का आरोप सिद्द न होने पर हसमुद्दीन को बरी कर दिया। फिर उसने सत्र न्यायाधीश के यहां गुहार लगाई, लेकिन वहां भी उसकी याचिका खारिज कर दी गई। इसके बाद हाईकोर्ट ने भी निचली अदालत के फैसले को सही मानते हुए याची पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी।

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