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अमर उजाला नेटवर्क, प्रयागराज
Published by: विनोद सिंह
Updated Mon, 21 Mar 2022 09:29 PM IST
सार
मामले में सीआरपीसी की धारा 156 (3) के तहत पीड़िता ने सितंबर 2014 में न्यायिक मजिस्ट्रेट मेरठ के समक्ष आवेदन कर आरोप लगाया था कि 27 अगस्त 2014 को जब वह अपने कमरे में सो रही थी। तकरीबन 11 बजे आरोपी उसके कमरे में घुसकर उसके साथ दुष्कर्म करने की कोशिश की।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक बार फिर दोहराया कि समन जारी करते समय आरोपों की सत्यता को तय नहीं किया जा सकता है। यह आदेश न्यायमूर्ति संजय कुमार सिंह की खंडपीठ ने मेरठ के न्यायिक मजिस्ट्रेट के समन आदेश के खिलाफ दाखिल अर्जी को खारिज करते हुए दिया है। अर्जी पंकज त्यागी की ओर से दाखिल की गई थी।
मामले में सीआरपीसी की धारा 156 (3) के तहत पीड़िता ने सितंबर 2014 में न्यायिक मजिस्ट्रेट मेरठ के समक्ष आवेदन कर आरोप लगाया था कि 27 अगस्त 2014 को जब वह अपने कमरे में सो रही थी। तकरीबन 11 बजे आरोपी उसके कमरे में घुसकर उसके साथ दुष्कर्म करने की कोशिश की।
पीड़िता के चीखने-चिल्लाने पर उसकी मां जाग गई और आरोपी को पकड़ लिया। हालांकि, वह बल प्रयोग करते हुए वहां से फरार हो गया। उसने भागते हुए यह धमकी दी कि यदि पीड़िता ने यौन संबंध नहीं बनाया तो उस पर तेजाब से हमला कर देगा।
अपराध का संज्ञान लेना मजिस्ट्रेट के अधिकार क्षेत्र का मामला
आवेदन को न्यायिक मजिस्ट्रेट मेरठ ने स्वीकार कर लिया और संबंधित थाना प्रभारी को एफआईआर दर्ज कर मामले की जांच करने का निर्देश दिया गया। मामले में आईपीसी की धारा 354, 376, 511, 504, 506, 323, 452 के तहत एफआईआर दर्ज की गई। जांच अधिकारी ने आवेदक के खिलाफ आरोप पत्र प्रस्तुत किया। जिस पर संज्ञान लिया गया और आरोपित (याची) को समन जारी किया गया। याची की ओर से उसी समन के आदेश को चुनौती दी गई।
कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि मौजूदा मामला दुर्लभतम मामलों की श्रेणी में नहीं आता है, जिसे रद्द किया जा सके। कोर्ट ने आगे कहा कि अपराध का संज्ञान लेना मजिस्ट्रेट के अधिकार क्षेत्र का मामला है और इस स्तर पर मजिस्ट्रेट को मामले के गुणदोष में जाने की आवश्यकता नहीं है। अदालत ने कहा आरोपों की वास्तविकता का निर्धारण आरोपी को तलब करने के स्तर पर नहीं किया जा सकता है। याची के खिलाफ प्रथम दृष्टया संज्ञेय अपराध पाया गया है। इसे देखते हुए मौजूदा आवेदन खारिज कर दिया गया।
विस्तार
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक बार फिर दोहराया कि समन जारी करते समय आरोपों की सत्यता को तय नहीं किया जा सकता है। यह आदेश न्यायमूर्ति संजय कुमार सिंह की खंडपीठ ने मेरठ के न्यायिक मजिस्ट्रेट के समन आदेश के खिलाफ दाखिल अर्जी को खारिज करते हुए दिया है। अर्जी पंकज त्यागी की ओर से दाखिल की गई थी।
मामले में सीआरपीसी की धारा 156 (3) के तहत पीड़िता ने सितंबर 2014 में न्यायिक मजिस्ट्रेट मेरठ के समक्ष आवेदन कर आरोप लगाया था कि 27 अगस्त 2014 को जब वह अपने कमरे में सो रही थी। तकरीबन 11 बजे आरोपी उसके कमरे में घुसकर उसके साथ दुष्कर्म करने की कोशिश की।
पीड़िता के चीखने-चिल्लाने पर उसकी मां जाग गई और आरोपी को पकड़ लिया। हालांकि, वह बल प्रयोग करते हुए वहां से फरार हो गया। उसने भागते हुए यह धमकी दी कि यदि पीड़िता ने यौन संबंध नहीं बनाया तो उस पर तेजाब से हमला कर देगा।
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