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अमर उजाला नेटवर्क, प्रयागराज
Published by: विनोद सिंह
Updated Thu, 03 Mar 2022 12:05 AM IST
सार
मामले के तथ्यों और परिस्थितियों का विश्लेषण करने के बाद हाईकोर्ट ने याची के अधिवक्ता के तर्कों पर असहमति जताई और याचियों को आईपीसी की धारा 57 के तहत रिहा करने की मांग को खारिज कर दिया।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2003 की हत्या के मामले में पांच दोषियों की उम्रकैद की सजा को बरकरार रखा है। इसके साथ ही कहा कि आईपीसी की धारा 57 के तहत प्रदान किया गया लाभ अपीलकर्ताओं को केवल इस आधार पर नहीं दिया जा सकता है कि वे 18 साल से जेल में हैं।
मामले के तथ्यों और परिस्थितियों का विश्लेषण करने के बाद हाईकोर्ट ने याची के अधिवक्ता के तर्कों पर असहमति जताई और याचियों को आईपीसी की धारा 57 के तहत रिहा करने की मांग को खारिज कर दिया।
कोर्ट ने कहा कि आईपीसी की धारा 57 के अनुसार सजा की गणना में आजीवन कारावास की सजा को बीस साल के कारावास के बराबर माना जाता है। मामले में अबरार नामक युवक की हत्या अहसान, नौशे, अहमद हसन, अब्दुल हसन और शेर अली ने मिलकर की थी और सुनवाई के बाद उन्हें रामपुर जिले की निचली अदालत ने चारों को आईपीसी की धारा 147, 148, 302, 149 के तहत दोषी पाते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई। याचियों ने निचली अदालत केफैसले को चुनौती दी थी।
कोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष घटना की तारीख समय और स्थान को एक उचित संदेह से परे साबित करने में सक्षम था। कोर्ट ने कहा कि मृतक पर अंधाधुंध गोलीबारी के तथ्य का समर्थन अभियोजन पक्ष के गवाहों ने मुकदमे के दौरान किया था और पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट से यह भी पता चला है कि मृतक के शरीर पर आग्नेयास्त्रों की चोटों की संख्या पाई गई थी। इस आधार पर कोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया।
विस्तार
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2003 की हत्या के मामले में पांच दोषियों की उम्रकैद की सजा को बरकरार रखा है। इसके साथ ही कहा कि आईपीसी की धारा 57 के तहत प्रदान किया गया लाभ अपीलकर्ताओं को केवल इस आधार पर नहीं दिया जा सकता है कि वे 18 साल से जेल में हैं।
मामले के तथ्यों और परिस्थितियों का विश्लेषण करने के बाद हाईकोर्ट ने याची के अधिवक्ता के तर्कों पर असहमति जताई और याचियों को आईपीसी की धारा 57 के तहत रिहा करने की मांग को खारिज कर दिया।
कोर्ट ने कहा कि आईपीसी की धारा 57 के अनुसार सजा की गणना में आजीवन कारावास की सजा को बीस साल के कारावास के बराबर माना जाता है। मामले में अबरार नामक युवक की हत्या अहसान, नौशे, अहमद हसन, अब्दुल हसन और शेर अली ने मिलकर की थी और सुनवाई के बाद उन्हें रामपुर जिले की निचली अदालत ने चारों को आईपीसी की धारा 147, 148, 302, 149 के तहत दोषी पाते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई। याचियों ने निचली अदालत केफैसले को चुनौती दी थी।
कोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष घटना की तारीख समय और स्थान को एक उचित संदेह से परे साबित करने में सक्षम था। कोर्ट ने कहा कि मृतक पर अंधाधुंध गोलीबारी के तथ्य का समर्थन अभियोजन पक्ष के गवाहों ने मुकदमे के दौरान किया था और पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट से यह भी पता चला है कि मृतक के शरीर पर आग्नेयास्त्रों की चोटों की संख्या पाई गई थी। इस आधार पर कोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया।
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