हाईकोर्ट : मुआवजे की मात्रा पर सुनवाई  नहीं कर सकतीं कामर्शियल कोर्ट

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– फोटो : istock

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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि कामर्शियल कोर्ट राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनियम (एनएचआई)-1956 के तहत दिए गए मुआवजे की मात्रा को चुनौती देने वाले मध्यस्थता और सुलह अधिनियम-2013 की धारा-34 के तहत दाखिल अर्जियों पर सुनवाई नहीं कर सकती हैं। कोर्ट ने कहा कि यह उनके अधिकार क्षेत्र से बाहर है। 

यह आदेश न्यायमूर्ति जेजे मुनीर ने महोबा के तहसील कल्पपुरा गांव रैमैपुरा निवासी तुलसारानी व अन्य की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया है। मामले में राष्ट्रीय राजमार्ग को चौड़ा करने के लिए केंद्र सरकार द्वारा याचिकाकर्ताओं की भूमि का एक हिस्सा अगस्त 2017 में अधिग्रहण किया गया था। जुलाई 2018 में संबंधित प्राधिकरण ने अवार्ड पारित कर दिया। 

इस अवार्ड पर याचिकाकर्ताओं ने आपत्ति उठाई और अधिक मुआवजे की मांग की। इस संबंध में उन्होंने मध्यस्थ के समक्ष अर्जी दी। लेकिन मध्यस्थ ने प्राधिकारी द्वारा पारित अवार्ड को सही माना। इस पर याचिकाकर्ताओं ने कामर्शियल कोर्ट झांसी में अर्जी दाखिल कर घोषित अवार्ड को रद्द करने की मांग की। इस पर कामर्शियल कोर्ट ने अर्जियों को उचित न्यायालय केसमक्ष प्रस्तुत करने का निर्देश दिया। याचिकाकर्ताओं ने कामर्शियल कोर्ट झांसी के इस निर्देश को हाईकोर्ट में चुनौती दी।

कोर्ट ने कहा कि राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनियम-1956 की धारा 3 जी (5) के तहत वैधानिक मध्यस्थ के निर्णय को मध्यस्थता और सुलह अधिनियम की धारा 34 के तहत क्षेत्राधिकार रखने वाले न्यायालय के समक्ष रखा जा सकता है। लेकिन कामर्शियल कोर्ट को अवार्ड की राशि की मात्रा को तय करने का अधिकार नहीं है, क्योंकि, यह कोई वाणिज्यिक लेनदेन नहीं है।

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विस्तार

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि कामर्शियल कोर्ट राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनियम (एनएचआई)-1956 के तहत दिए गए मुआवजे की मात्रा को चुनौती देने वाले मध्यस्थता और सुलह अधिनियम-2013 की धारा-34 के तहत दाखिल अर्जियों पर सुनवाई नहीं कर सकती हैं। कोर्ट ने कहा कि यह उनके अधिकार क्षेत्र से बाहर है। 

यह आदेश न्यायमूर्ति जेजे मुनीर ने महोबा के तहसील कल्पपुरा गांव रैमैपुरा निवासी तुलसारानी व अन्य की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया है। मामले में राष्ट्रीय राजमार्ग को चौड़ा करने के लिए केंद्र सरकार द्वारा याचिकाकर्ताओं की भूमि का एक हिस्सा अगस्त 2017 में अधिग्रहण किया गया था। जुलाई 2018 में संबंधित प्राधिकरण ने अवार्ड पारित कर दिया। 

इस अवार्ड पर याचिकाकर्ताओं ने आपत्ति उठाई और अधिक मुआवजे की मांग की। इस संबंध में उन्होंने मध्यस्थ के समक्ष अर्जी दी। लेकिन मध्यस्थ ने प्राधिकारी द्वारा पारित अवार्ड को सही माना। इस पर याचिकाकर्ताओं ने कामर्शियल कोर्ट झांसी में अर्जी दाखिल कर घोषित अवार्ड को रद्द करने की मांग की। इस पर कामर्शियल कोर्ट ने अर्जियों को उचित न्यायालय केसमक्ष प्रस्तुत करने का निर्देश दिया। याचिकाकर्ताओं ने कामर्शियल कोर्ट झांसी के इस निर्देश को हाईकोर्ट में चुनौती दी।

कोर्ट ने कहा कि राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनियम-1956 की धारा 3 जी (5) के तहत वैधानिक मध्यस्थ के निर्णय को मध्यस्थता और सुलह अधिनियम की धारा 34 के तहत क्षेत्राधिकार रखने वाले न्यायालय के समक्ष रखा जा सकता है। लेकिन कामर्शियल कोर्ट को अवार्ड की राशि की मात्रा को तय करने का अधिकार नहीं है, क्योंकि, यह कोई वाणिज्यिक लेनदेन नहीं है।



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