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अमर उजाला नेटवर्क, प्रयागराज
Published by: विनोद सिंह
Updated Wed, 22 Jun 2022 10:59 PM IST
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि मुकदमे की कार्यवाही में देरी होने से सीआरपीसी की धारा 311 के तहत दाखिल अर्जी को रद्द नहीं किया जा सकता है। कोर्ट ने मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा मंजू देवी के मामले में दिए गए फैसले का उदाहरण देते हुए निचली अदालत को गवाहों को बुलाकर परीक्षण का निर्देश दिया। कोर्ट ने कहा कि छह महीने की समयावधि में यह गवाही पूरी कर ली जाए। यह आदेश न्यायमूर्ति शेखर कुमार यादव की खंडपीठ ने मधुसूदन शुक्ला की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया।
कोर्ट ने कहा कि विवादित मामले की उम्र अपने आप में मामले की निर्णायक नहीं हो सकती है। भौतिक गवाह केपरीक्षण के लिए प्रार्थना की गई है तो उसे रद्द नहीं किया जा सकता है, क्योंकि धारा 311 भौतिक गवाह को बुलाने या उपस्थित व्यक्ति की जांच करने की शक्ति से संबंधित है। कोई भी न्यायालय इस संहिता के तहत किसी भी जांच, परीक्षण या कार्यवाही के किसी भी चरण में, किसी भी व्यक्ति को गवाह के रूप में बुला सकता है। किसी भी व्यक्ति को दोबारा परीक्षण के लिए बुलाया जा सकता है और मामले में पहले की तरह जांच की जा सकती है। न्यायालय को समन का अधिकार है।
यह था मामला
गोरखपुर निवासी याची (आरोपी) मधुसूदन शुक्ला 1996 में हुई एक हत्या के मामले में आरोपी बनाया गया है। 1997 में आरोप पत्र प्रस्तुत किया गया था। लगभग 25 वर्षों के बाद अप्रैल 2022 में उसने ट्रायल कोर्ट के समक्ष दो व्यक्तियों की गवाही के लिए एक आवेदन किया। इसमें से एक घटना का चश्मदीद गवाह भी था। उसका नाम जांच अधिकारियों द्वारा गवाहों की सूची में दर्ज किया गया था, लेकिन अभियोजन पक्ष की ओर से उसे पेश नहीं किया गया।
मामले में निचली अदालत ने याची के आवेदन को रद्द कर दिया। तर्क दिया कि इस मामले को हाईकोर्ट ने सुनवाई पूरी कर छह महीने में फैसला सुनाने का आदेश पहले ही दिया है। निचली अदालत के फैसले को याची ने हाईकोर्ट के समक्ष चुनौती दी। कोर्ट ने आरोपी की अर्जी को स्वीकार करते हुए निचली अदालत को गवाहों को बुलाकर परीक्षण करने का आदेश दिया।
विस्तार
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि मुकदमे की कार्यवाही में देरी होने से सीआरपीसी की धारा 311 के तहत दाखिल अर्जी को रद्द नहीं किया जा सकता है। कोर्ट ने मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा मंजू देवी के मामले में दिए गए फैसले का उदाहरण देते हुए निचली अदालत को गवाहों को बुलाकर परीक्षण का निर्देश दिया। कोर्ट ने कहा कि छह महीने की समयावधि में यह गवाही पूरी कर ली जाए। यह आदेश न्यायमूर्ति शेखर कुमार यादव की खंडपीठ ने मधुसूदन शुक्ला की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया।
कोर्ट ने कहा कि विवादित मामले की उम्र अपने आप में मामले की निर्णायक नहीं हो सकती है। भौतिक गवाह केपरीक्षण के लिए प्रार्थना की गई है तो उसे रद्द नहीं किया जा सकता है, क्योंकि धारा 311 भौतिक गवाह को बुलाने या उपस्थित व्यक्ति की जांच करने की शक्ति से संबंधित है। कोई भी न्यायालय इस संहिता के तहत किसी भी जांच, परीक्षण या कार्यवाही के किसी भी चरण में, किसी भी व्यक्ति को गवाह के रूप में बुला सकता है। किसी भी व्यक्ति को दोबारा परीक्षण के लिए बुलाया जा सकता है और मामले में पहले की तरह जांच की जा सकती है। न्यायालय को समन का अधिकार है।
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