75वां महोत्सव विश्वास का: पाठकों का जुड़ा है भावनात्मक लगाव, कहा- हमारे लिए तो अखबार मतलब अमर उजाला

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सार

ताजनगरी में पाठकों का अमर उजाला से लगाव आत्मिक है। अमर उजाला से दिन की शुरुआत होती है। पढ़े बिना सुकून नहीं मिलता…क्योंकि आगरा वासियों के लिए अखबार का मतलब अमर उजाला है। एक के बाद एक पीढ़ियां गुजर गईं, बहुत कुछ बदला…नहीं बदला तो दिन की शुरुआत अमर उजाला के साथ होना।

ख़बर सुनें

आगरा के 90 साल के ख्याति प्राप्त होम्योपैथिक चिकित्सक डॉ. आरएस पारीक बताते हैं कि मेरी उम्र कोई 16 साल रही होगी। हम कूचा साधुराम में रहते थे। पिताजी वासुदेव प्रसाद बीपी ऑयल में मैनेजर थे। उसी साल अमर उजाला शुरू हुआ और घर में आने लगा। एक दिन पिताजी बोले, राधे…अखबार पढ़ा करो। इससे भाषा ज्ञान बेहतर होगा, कठिन शब्दों के लिए डिक्शनरी देखा करो। उस दिन से शुरू हुआ अखबार पढ़ने का सिलसिला बदस्तूर है।

पुरानी यादें कुरेदते हुए डॉ. पारीक बोले, अमर उजाला ने सामाजिक जिम्मेदारी भी निभाई। करीब 40 साल पहले की बात है, पथवारी के दिव्यांग मोहन की खबर छपी। डोरीलाल जी मुझे लेकर हकीकत जानने के लिए उसके घर पहुंचे। हालत दयनीय थी, ऑपरेशन के लिए रुपये तक नहीं थे। उसे जयपुर के अस्पताल में भर्ती कराया। आठ ऑपरेशन के बाद वह वैशाखी से चलने लायक हुआ। रोजीरोटी के लिए खोखा भी खुलवाया। 

74 वर्षों में नहीं किया कोई समझौता 

शहर के विकास, जन समस्याओं, सामाजिक सरोकार जैसे मुद्दों के साथ अखबार की सत्यता और निष्पक्षता से इन 74 साल में मैंने कोई समझौता नहीं देखा। संपादकीय और शिवकुमार जी का धार्मिक प्रसंग मेरे पसंदीदा हैं। मेरी तीनों पीढ़ियों में अमर उजाला पहली पसंद है। बेटे वरिष्ठ होम्योपैथिक चिकित्सक डॉ. आलोक पारीक बोले, अमर उजाला पढ़कर शहर-देश, दुनिया की हलचल का पता चलता है। अभी भी यही हाल है। 

डॉ. पारीक की तीसरी पीढ़ी के डॉ. प्रशांत पारीक और डॉ. आदित्य पारीक ने कहा कि बचपन में खेलकूद और रविवासरीय पेज से पढ़ने की रुचि बनी और खबरों की सत्यता की परख भी। पौत्रवधू डॉ. प्रियंका पारीक और डॉ. नितिका पारीक बोलीं, दादी गीतारानी और मां अनीता पारीक का धार्मिक- सांस्कृतिक खबरों से अखबार शुरू होता है। 

हमारी हर मुहिम का साथी रहा अमर उजाला

आगरा टूरिस्ट वेलफेयर चैंबर के अध्यक्ष प्रह्लाद अग्रवाल ने कहा कि अमर उजाला से जुड़ाव 7 दशकों का है। अमर उजाला के 75 वें वर्ष में प्रवेश पर वह घटना याद आती है जब अमर उजाला परिवार पर वज्रपात हुआ। संस्थापक डोरीलाल अग्रवाल का निधन हो गया। शोक व्यक्त करने वालों का तांता लगा हुआ था। अखबार के अगले दिन निकलने की संभावना पर विचार किया गया। अगले दिन सुबह अमर उजाला विकट, विषम परिस्थिति में पाठकों के हाथों में पहुंचा, जिसमें संपादकीय पेज पर शीर्षक … कारवां चलता रहेगा, अब तक याद है। 

उन्होंने कहा कि हालात कैसे भी रहे, अमर उजाला अपने उसूलों से टस से मस नहीं हुआ। शहर की नब्ज अमर उजाला ने स्थापना के बाद जो थामी है, वह और मजबूत हुई है। शहर के पर्यटन को प्रोत्साहन देने के लिए अमर उजाला हमारी हर मुहिम का साथी रहा है। एयरपोर्ट हो या आगरा में रात्रि प्रवास का मुद्दा जन-जन में अलख जगाने और हमारी पैरोकारी करने में अमर उजाला का योगदान अभूतपूर्व है।

निष्पक्ष और सटीक खबरों से बना भरोसा 

प्रतिष्ठित चिकित्सक के डॉ. एमसी गुप्ता ने कहा कि 1974 में आगरा में प्रेक्टिस शुरू की, तब से अमर उजाला को नियमित पढ़ रहा हूं। देश-विदेश और कारोबार का पेज पसंदीदा है। डोरीलाल जी से स्नेह मिलता था। समय के साथ अखबार में बदलाव हुए, लेकिन मैंने इन 48 वर्षों में अखबार को अपने सिद्धांतों से समझौता करते नहीं देखा। अमर उजाला पर जो भरोसा बना है वह आज भी कायम है। आज भी सुबह अमर उजाला पढ़कर ही खबरों की सत्यता का पता लगता है। जन समस्याएं उठाने के साथ कोरोना महामारी में अखबार ने शानदार पत्रकारिता की। 

उन्होंने कहा कि सकारात्मक और खामियां दोनों को बराबर प्रकाशित किया। इन खूबियों के कारण ही अफॉक्स मीडिया ब्रांड अवार्ड के तहत 2022 में अमर उजाला सर्वश्रेष्ठ अखबार बना है। समाचार पत्र बिना किसी राजनीतिक दबाव के इन 74 वर्षों से पत्रकारिता का धर्म निभाता चला आ रहा है। शहर में ऐसे सैकड़ों परिवार हैं जिनकी तीन पीढ़िया अमर उजाला से जुड़ी हुई हैं। मुझे आशा है अखबार ऐसे ही पत्रकारिता का धर्म आगे भी निभाता रहेगा। अमर उजाला के 75 वें वर्ष में प्रवेश की बधाई।

भरोसे का दूसरा नाम अमर उजाला

सर्जन डॉ. सुनील शर्मा ने कहा कि 36 साल से अमर उजाला से मेरा नाता रहा है। खबरों की परख और सत्यता के मामले में सबसे ज्यादा भरोसा शहर के लोग इसी अखबार पर दिखाते हैं। हर मुद्दे को गंभीरता से उठाना और लोगों की समस्याओं को अखबार के माध्यम से दूर करना ही इस समाचार पत्र का मुख्य उद्देश्य है। चिकित्सा के क्षेत्र में कमियों को जिम्मेदारों को अवगत कराया है तो वहीं अच्छा काम करने पर इसने चिकित्सकों को खूब सराहा भी है। 

इस अखबार में हर वर्ग के लिए जगह है। छोटे से छोट मुद्दे को भी यह अखबार उठाता है। हर समस्या, सांस्कृतिक, पारंपरिक आदि खबरों से समाचार पत्र का सरोकार है। यहीं कारण है कि यह हर दिन पाठकों के दिल को छूता गया और आज हर किसी की दिनचर्या में शामिल होने के साथ उसका चहेता अखबार बन गया है। जब तक खबर अमर उजाला में न पढ़ लें संतुष्टि नहीं होती।

छात्र आंदोलन की खबरों से प्रभावित

क्षेत्र बजाज कमेटी के निवर्तमान अध्यक्ष सुनील विकल ने कहा कि 55 साल से मैं इस अखबार को लगातार पढ़ता आ रहा हूं। छात्र जीवन में जब छात्र राजनीति में था। तब यह अखबार हमारी पाठशाला हुआ करता था। छात्र आंदोलन की खबरों को प्रमुखता से छापता था और प्रशासन और शासन को फिर छात्रों की बात पर सहमति देनी पड़ती थी। आंदोलन और आपातकाल में जेल जाने के बाद इस अखबार से मेरा लगाव और गहरा हो गया और युवा पीढ़ी के लिए एक आइडल अखबार हो गया और आज भी है। 

60 और 70 के दशक में शहर में यही एकलौता अखबार था जो देश और शहर की खबरों से शहरवासियों को रूबरू कराता था। एक समय के बाद लोगों को अमर उजाला की आदत ऐसी लगी कि जब तक वह इस अखबार को न पढ़ लें उनका दिन ही शुरू नहीं होता। आज भी किसी के यहां कितने भी अखबार आएं लेकिन उसे संपूर्ण जानकारी अमर उजाला ही देता है।     

तीन पीढ़ियों का पसंदीदा अखबार

समाजसेवी बांकेलाल माहेश्वरी ने कहा कि मेरा अमर उजाला से 65 साल से नाता है। जब से इसकी शुरुआत हुई तब से हम यही अखबार पढ़ते आ रहे हैं। पहले हमारे पिता स्व. बाबू लाल माहेश्वरी इसे पढ़ा करते थे अब मैं और मेरे बच्चे भी इसी को पढ़ते हैं। तीन पीढ़ियों का यह पसंदीदा अखबार रहा है। आज का समय बदल गया है। मोबाइल पर शहर की खबरें आ जाती हैं। लेकिन जब तक सुबह खबर अमर उजाला में न पढ़ लें संतुष्टि ही नहीं होती। 

हमारे समय में शहर के समाचार प्राप्त करने का यही एक साधन था। घटना कोई भी हो लेकिन जब तक खबर अमर उजाला में नहीं छपे तो उसका सत्यापन करना मुश्किल हो जाता है। इसके अलावा इस अखबार ने समाजसेवियों को बढ़ावा और प्रोत्साहित किया है। शहर में जितने भी लोग सेवा भाव से काम कर रहे हैं, उन्हें अखबार में छाप कर लोगों को आगे आने के लिए प्रेरित किया है। बचपन से लेकर आज तक इसी अखबार के साथ मेरी सुबह होती है।     

शहर के विकास में निभाई है महत्वपूर्ण भूमिका

आगरा विकास मंच के अध्यक्ष राजकुमार जैन ने कहा कि यह अखबार हमारे यहां लगभग 73 वर्ष से आ रहा है। पहले पिता इसे पढ़ा करते थे और 50 साल से मैं और अब मेरे बच्चें भी इस अखबार के पाठक हैं। अमर उजाला ने आगरा में सेवा करने वालों को बढ़ावा दिया। उनके समाचार प्रकाशित करने से अन्य लोगों को समाजसेवा की प्रेरणा मिली और इसका परिणाम यह है। शहर में मेट्रो रेल, बैराज, स्मार्ट सिटी एयरपोर्ट आदि मुद्दों को अमर उजाला ने समय-समय पर बेहतर ढंग से उठाया है और जनप्रतिनिधियों को जागृत किया है। 

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मुझे अच्छी तरह याद है कि पहले जब सड़कों में गड्ढे या मेनहोल खुला होने की खबर प्रकाशित होते ही अधिकारी उसका संज्ञान लेते थे। शहर में दूसरा वाटरवर्क्स बनाने में अमर उजाला की महत्वपूर्ण भूमिका है। अखबार ने उद्यमियों, व्यापारियों आदि की समस्याओं को उठाकर और उनका समाधान करा कर आगरा के आर्थिक विकास में योगदान निभाया है। साक्षरता अभियान को गति दी है। आज भी यह अखबार लोगों के दिलों में खास जगह बनाए हुए है। 

अखबार में प्रकाशित समस्या का समाधान हो जाता

रंगकर्मी अनिल जैन ने कहा कि मैं जब से इस समाचार पत्र को पढ़ रहा हूं जब इसकी कीमत पांच या 10 पैसे हुआ करती थी। पिता को इस अखबार से बहुत लगाव था। शहर की समस्याओं को इसमें पढ़ कर लोग नुक्कड़ और चौराहों पर खबर की चर्चा किया करते थे कि अमर उजाला ने शहर के उस इलाके की समस्याओं उठाया तो शायद अब लोगों को इस समस्या से निजात मिल जाए। 

खबर का भी ऐसा प्रभाव था कि समस्या अखबार में प्रकाशित होने के बाद अधिकारी तुरंत उसका संज्ञान लेकर समस्याओं का समाधान करते थे। वहीं यह अखबार हमारे लिए फोटो देखने के काम आता था। रंगमंच की खबरों को इस अखबार में देख इसके प्रति लगाव होने लगा। फिर सुबह एक हाथ में चाय और दूसरे में अमर उजाला हुआ करता था। इस अखबार ने शहर के हर क्षेत्र की खबरों को प्रमुखता दी तो लोग इसे जुड़ते चले गए। आज भी लोग इसका दामन थामे हुए हैं। 

सच को सामने लाने वाला है अमर उजाला

सेवा आगरा के संस्थापक अध्यक्ष मुरारी लाल गोयल ने कहा कि अमर उजाला आज पाठकों की दिनचर्या का हिस्सा बन गया है। इस अखबार के साथ लोगों के दिन की शुरुआत होती है। क्योंकि अमर उजाला ने सदैव सच को जनता के सामने लाने का सफल प्रयास किया है। हिंदी पत्रकारिता में इस अखबार ने अपनी अलग पहचान बनाई है। 45 साल से अधिक समय से इस अखबार को पढ़ रहा हूं। बचपन भी इसे पढ़ते हुए बीता है। 

अब बच्चे भी इस अखबार को प्राथमिकता देते हैं। लोगों का सच से सामना कराने के अलावा शहर में सामाजिक कार्यों को करने वालों का यह अपनी लेखनी से सहयोग करता है। जिसकी वजह से शहर में यह सबसे ज्यादा लोकप्रिय अखबार है। वहीं विश्वसनीयता के मामले में इस अखबार का कोई मुकाबला नहीं है। लोगों को अगर किसी भी खबर की पुष्टि करनी पड़ती है तो वह सीधे उमर उजाला पढ़ते हैं। शहर के हर मुद्दे पर इसकी पैनी नजर रहती है। 

तेवर धारदार व आक्रामक 

विकलांग सहायता संस्था के संस्थापक सचिव ने कहा कि मेरी यादें 62 साल से जुड़ी हुई हैं। अमर उजाला से जुड़ाव वर्ष 1960 से हुआ, जब नौ साल की उम्र में अखबार पढ़ना शुरू किया। तब 5 पैसे का था अमर उजाला। तब से अमर उजाला के तेवर वैसे ही धारदार और आक्रामक हैं। इसका कलेवर और प्रस्तुतिकरण बेहद प्रभावी है। आपातकाल में संपादकीय पृष्ठ को खाली रखकर विरोध जताने का निर्भीकता भरा कदम मेरे दिल में जगह बना गया। 

उस समय के संपादक का यह साहस अमर उजाला को श्रेष्ठतम अखबारों में से एक बनाता है। इसके बाद हल्ला बोल के समय अमर उजाला के साहस और निर्भीकता को हमने देखा है। स्थानीय समस्याओं के लिए पिछले तीन-चार सालों से अमर उजाला ने जो प्रभावशाली रिपोर्टिंग की है, उसका लाभ हमें दिख रहा है। सामाजिक सरोकार, अपने शहर की पैरोकारी का यह भाव अमर उजाला में बना रहे। 

मेरे आंदोलन को अमर उजाला ने दी ताकत 

वरिष्ठ चिकित्सक के डॉ. मुनीश्वर गुप्ता ने कहा कि पिताजी चख्खन लाल गुप्ता चूड़ी के व्यापारी थे और घर में अमर उजाला अखबार आता था। मेरी आयु 10 वर्ष की थी और उस वक्त अखबार में राजी बिटिया का कॉलम आता था, जिसमें चित्रों के जरिये संदेश देते थे। उससे अखबार पढ़ने की लत लगी। 1979 से संपादक के नाम पत्र लिखना शुरू किया। 1980 में ‘देश टिका है इन कंधों पर’ कॉलम भाने लगा। वर्ष 1983 में असम में नल्ली हत्याकांड होने पर दौरा किया, वहां भूपेन हजारिका से साक्षात्कार भी हुआ, लौटकर आने पर मेरे लेख अमर उजाला में प्रकाशित हुए। 

इसके बाद 1984 भोपाल गैस त्रासदी की भी रिपोर्ट प्रकाशित हुई। वर्ष 1984 में आत्महत्या के खिलाफ आंदोलन हो या फिर 1987 से 1993 तक हिंदी हितरक्षक समिति की ओर से किया आंदोलन, सभी को अमर उजाला ने प्रकाशित किया। अखबार के शब्दों से मिली ताकत से जोश और बढ़ा। आज खेलकूद, अंतरराष्ट्रीय और माई सिटी पेज पसंदीदा हैं। अखबार की खासियत रही कि इसके मालिकों ने कभी राजनीतिक लाभ के लिए निष्पक्षता से कोई समझौता नहीं किया। 

गीत और कविताओं के जरिए जुड़ा नाता 

वरिष्ठ साहित्यकार व कवि सोम ठाकुर ने कहा कि अमर उजाला से जुड़ाव युवावस्था से हुआ। 1948 में अमर उजाला के प्रकाशन के बाद संस्थापक डोरीलाल अग्रवाल के संपर्क में आया।  बहुत कम लोगों को पता है कि डोरीलाल जी कविताएं और गीत भी लिखते थे। अमर उजाला के कार्यालय में जब भी जाता था तो वह अपने लिखे गीत और कविताएं मुझे सुनाते थे। इस तरह उनके कमरे में गीत और कविताओं से जुड़ा नाता मजबूत होता चला गया। 

कविताओं और गीतों का साथ अब तक कायम है। आगरा कॉलेज और सेंट जोंस कॉलेज में अध्यापन के दौरान की कई यादें अमर उजाला से जुड़ी हैं। ‘मां तुझे प्रणाम’ के जरिए अमर उजाला ने देशभक्ति की जो लौ युवा पीढ़ी में जगाई है वह काबिलेतारीफ है। यह मुहिम रुकनी नहीं चाहिए। सांस्कृतिक गतिविधियों को जैसे आगे बढ़ाया गया उससे अमर उजाला मेरे दिल के और करीब हो गया।

विस्तार

आगरा के 90 साल के ख्याति प्राप्त होम्योपैथिक चिकित्सक डॉ. आरएस पारीक बताते हैं कि मेरी उम्र कोई 16 साल रही होगी। हम कूचा साधुराम में रहते थे। पिताजी वासुदेव प्रसाद बीपी ऑयल में मैनेजर थे। उसी साल अमर उजाला शुरू हुआ और घर में आने लगा। एक दिन पिताजी बोले, राधे…अखबार पढ़ा करो। इससे भाषा ज्ञान बेहतर होगा, कठिन शब्दों के लिए डिक्शनरी देखा करो। उस दिन से शुरू हुआ अखबार पढ़ने का सिलसिला बदस्तूर है।

पुरानी यादें कुरेदते हुए डॉ. पारीक बोले, अमर उजाला ने सामाजिक जिम्मेदारी भी निभाई। करीब 40 साल पहले की बात है, पथवारी के दिव्यांग मोहन की खबर छपी। डोरीलाल जी मुझे लेकर हकीकत जानने के लिए उसके घर पहुंचे। हालत दयनीय थी, ऑपरेशन के लिए रुपये तक नहीं थे। उसे जयपुर के अस्पताल में भर्ती कराया। आठ ऑपरेशन के बाद वह वैशाखी से चलने लायक हुआ। रोजीरोटी के लिए खोखा भी खुलवाया। 

74 वर्षों में नहीं किया कोई समझौता 

शहर के विकास, जन समस्याओं, सामाजिक सरोकार जैसे मुद्दों के साथ अखबार की सत्यता और निष्पक्षता से इन 74 साल में मैंने कोई समझौता नहीं देखा। संपादकीय और शिवकुमार जी का धार्मिक प्रसंग मेरे पसंदीदा हैं। मेरी तीनों पीढ़ियों में अमर उजाला पहली पसंद है। बेटे वरिष्ठ होम्योपैथिक चिकित्सक डॉ. आलोक पारीक बोले, अमर उजाला पढ़कर शहर-देश, दुनिया की हलचल का पता चलता है। अभी भी यही हाल है। 

डॉ. पारीक की तीसरी पीढ़ी के डॉ. प्रशांत पारीक और डॉ. आदित्य पारीक ने कहा कि बचपन में खेलकूद और रविवासरीय पेज से पढ़ने की रुचि बनी और खबरों की सत्यता की परख भी। पौत्रवधू डॉ. प्रियंका पारीक और डॉ. नितिका पारीक बोलीं, दादी गीतारानी और मां अनीता पारीक का धार्मिक- सांस्कृतिक खबरों से अखबार शुरू होता है। 

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