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अमर उजाला नेटवर्क, प्रयागराज
Published by: विनोद सिंह
Updated Fri, 18 Feb 2022 10:30 PM IST
सार
याचिकाकर्ता की जाति को लेकर मामला लंबित था। इस वजह से रेलवे प्रशासन ने सेवानिवृत्त केबाद पेंशन सहित अन्य लाभों को देने पर रोक लगा दी। याची गोरखपुर में तैनात था। वह 1970 में सहायक टेलीकम्युनिकेशन इंस्पेक्टर के रूप में नियुक्ति किया गया था।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि अनुशासनात्मक कार्रवाई लंबित होने से सेवानिवृत्त कर्मचारी को पेंशन व अन्य देयों का लाभ देने से नहीं रोका जा सकता है। यह आदेश न्यायमूर्ति सुनीता अग्रवाल और न्यायमूर्ति कृष्ण पहल की खंडपीठ ने गोरखपुर केसेवानिवृत्त रेलवे कर्मचारी चंद्र प्रकाश की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया है।
याचिकाकर्ता की जाति को लेकर मामला लंबित था। इस वजह से रेलवे प्रशासन ने सेवानिवृत्त केबाद पेंशन सहित अन्य लाभों को देने पर रोक लगा दी। याची गोरखपुर में तैनात था। वह 1970 में सहायक टेलीकम्युनिकेशन इंस्पेक्टर के रूप में नियुक्ति किया गया था।
उसके बाद रेलवे ने आरोप लगाया कि उसका जाति प्रमाण पत्र जाली है और मामले में जांच की गई। हालांकि याचिकाकर्ता को अनुशासनात्मक कार्रवाई में दोषमुक्त कर दिया गया था। लेकिन, उसकी सेवानिवृत्ति के बाद भी उसके जाति प्रमाण पत्र के संबंध में जांच जारी रही।
विपक्ष यह साबित नहीं कर सका कि जाति प्रमाण पत्र जाली था
कोर्ट ने कहा कि विपक्ष यह साबित नहीं कर सका कि याची का जाति प्रमाणपत्र जाली था। इसलिए याची कीपेंशन और अन्य सेवानिवृत्त लाभों को रोकने के लिए कोई अधिकार नहीं है।
कोर्ट ने याची को पेंशन सहित अन्य लाभों को दिए जाने का आदेश दिया और कहा कि चार महीने के भीतर सभी भुगतान कर दिया जाए। कोर्ट ने यह भी कहा कि उसके देयों का भुगतान 2016 से सात फीसदी की दर से ब्याज सहित किया जाए।
विस्तार
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि अनुशासनात्मक कार्रवाई लंबित होने से सेवानिवृत्त कर्मचारी को पेंशन व अन्य देयों का लाभ देने से नहीं रोका जा सकता है। यह आदेश न्यायमूर्ति सुनीता अग्रवाल और न्यायमूर्ति कृष्ण पहल की खंडपीठ ने गोरखपुर केसेवानिवृत्त रेलवे कर्मचारी चंद्र प्रकाश की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया है।
याचिकाकर्ता की जाति को लेकर मामला लंबित था। इस वजह से रेलवे प्रशासन ने सेवानिवृत्त केबाद पेंशन सहित अन्य लाभों को देने पर रोक लगा दी। याची गोरखपुर में तैनात था। वह 1970 में सहायक टेलीकम्युनिकेशन इंस्पेक्टर के रूप में नियुक्ति किया गया था।
उसके बाद रेलवे ने आरोप लगाया कि उसका जाति प्रमाण पत्र जाली है और मामले में जांच की गई। हालांकि याचिकाकर्ता को अनुशासनात्मक कार्रवाई में दोषमुक्त कर दिया गया था। लेकिन, उसकी सेवानिवृत्ति के बाद भी उसके जाति प्रमाण पत्र के संबंध में जांच जारी रही।
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