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चंबल के टापू पर बैठे कछुए
– फोटो : अमर उजाला
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आगरा के बाह की चंबल नदी में कछुओं की आठ संकटग्रस्त प्रजातियां पल रही हैं। इनमें से साल प्रजाति के कछुए सिर्फ चंबल नदी में बचे हैं। चंबल सेंक्चुअरी की बाह रेंज में कछुओं की नेस्टिंग भी हो रही है। रेंजर आरके सिंह राठौड़ ने बताया कि पिछले साल 10 हजार से ज्यादा कछुओं का जन्म कराया गया। इस साल अधिक कछुओं के जन्म लेने की संभावना है।
साल के अलावा ढोर, पचेड़ा, कटहवा, स्योत्तर, सुंदरी, मोरपंखी कछुओं की नेस्टिंग चंबल नदी में हुई है। एक नेस्ट में कछुओं ने 10-30 तक अंडे दिए हैं। नदी किनारे की बालू और मिट्टी में कछुओं के घोसलों में रखे अंडों की सुरक्षा के लिए कुछ इलाकों में जाली लगाई गई है। मई में अंडों से कछुओं के बच्चे बाहर आने की संभावना है।
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300 घोंसले, जन्मेंगे 6000 कछुए
कछुओं के संरक्षण पर टर्टल सर्वाइवल एलायंस (टीएसए) काम कर रही है। टीएसए के प्रोजेक्ट अफसर पवन पारीक ने बताया कि कछुआ संरक्षण केंद्र गढ़ायता में हेचरी बनाई है। जिसमें 300 नेस्ट संरक्षित किए गए हैं। जिनसे करीब 6000 बच्चे जन्मेंगे। पिछले साल 311 नेस्ट संरक्षित हुए थे। जिनमें जन्मे 5 हजार से ज्यादा नन्हे मेहमान नदी में छोड़े गए थे।
कछुओं की प्रजातियां और उनकी खासियत
1- साल : साल कछुए का बाहरी कवच कठोर और पूरी तरह अस्थियों से बना होता है। नर कछुए मादा से आकार में छोटे और आकर्षक होते हैं।
2- मोरपंखी: मोरपंखी कछुओं का कवच मांसपेशियों से बना होने के कारण मुलायम होता है। नर कछुआ मादा से आकार में बड़ा और स्वभाव से आक्रामक होता है। यह नदी व तालाब में मरे सड़े-गले जीव-जंतुओं को खाते हैं और जल स्वच्छ करते हैं।
3- कटहेवा: कटहेवा कछुआ के कवच पर गोले बने होते हैं। यह कछुए 94 सेमी. तक बड़े हो सकते हैं।
4- पचेड़ा: पचेड़ा कछुओं की आंखों के नीचे भूरे व लाल रंग के डाट्स होते हैं। मादा कछुआ बड़ी होती है। इनका कवच टेंट की तरह होता है।
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